नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को स्वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती के अवसर पर 125 रुपए का एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया. इस मौके पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उन्होंने सभा को भी संबोधित किया. मोदी ने कहा कि परसो श्री कृष्ण जन्माष्टमी थी और आज हम श्रील प्रभुपाद जी की 125वीं जन्मजयंती मना रहे हैं. ये ऐसा है जैसे साधना का सुख और संतोष एक साथ मिल जाए. इसी भाव को आज पूरी दुनिया में श्रील प्रभुपाद स्वामी के लाखों करोड़ों अनुयायी और लाखों करोड़ों कृष्ण भक्त अनुभव कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं प्रभुपाद...
स्वामी प्रभुपाद कौन हैं?
भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1896 में कोलकाता में बिजनेसमैन के घर हुआ था. उनके पिता ने अपने बेटे अभय चरण का पालन पोषण ही एक कृष्ण भक्त के रूप में किया जिससे उनकी श्रद्धा कृष्ण में बढ़ती ही चली गई. प्रभुपाद ने 26 साल की उम्र में अपने गुरु सरस्वती गोस्वामी से मुलाक़ात की और 37 की उम्र में उनके विधिवत दीक्षा प्राप्त शिष्य बन कर पूरी तरह कृष्ण भक्ति में लीन हो गए.
अंग्रेजी में किया गीता का प्रचार
प्रभुपाद अलग अलग गुरुओं से मिलते रहे और एक गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने उन्हें सुझाया कि वे अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ज्ञान का प्रसार करें. प्रभुपाद ने श्रीमद् भगवद्गीता पर एक टीका लिखी और गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया.
आज हम श्रील प्रभुपाद जी की 125वीं जन्मजयंती मना रहे हैं। ये ऐसा है जैसे साधना का सुख और संतोष एक साथ मिल जाए। इसी भाव को आज पूरी दुनिया में श्रील प्रभुपाद स्वामी के लाखों करोड़ों अनुयाई और लाखों करोड़ों कृष्ण भक्त अनुभव कर रहे हैं: PM मोदी https://t.co/M8FKpQyCtS pic.twitter.com/DXHMXxDaql
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 1, 2021
पत्रिका भी चलाई
1944 में श्री प्रभुपाद ने बिना किसी सहायता के एक अंग्रेजी पत्रिका आरंभ की जिसका संपादन, पाण्डुलिपि का टंकन और मुद्रित सामग्री के प्रूफ शोधन का सारा कार्य वह स्वयं करते थे. ‘बैक टू गॉडहैड’ नामक यह पत्रिका पश्चिमी देशों में भी चलाई जा रही है और तीस से अधिक भाषाओं में अभी भी छप रही है. प्रभुपाद के दार्शनिक ज्ञान एवं भक्ति की महत्ता पहचान कर गौड़ीय वैष्णव समाज ने 1947 में उन्हें ‘भक्ति वेदांत’ की उपाधि से सम्मानित किया जो अब उनके नाम के साथ जुड़ा है.
इस्कॉन की स्थापना
करीब एक वर्ष के बाद जुलाई 1966 ई. में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ यानि इस्कॉन की स्थापना की. उन्होंने अपने जीवन का आखिरी दशक संस्था को स्थापित करने में ही बिताया. चूंकि वह सोसायटी के नेता भी थे, इसलिए उनका व्यक्तित्व और प्रबंधन कौशल इस्कॉन के विकास और उनके मिशन की पहुंच के लिए ज़िम्मेदार थे.
इस्कॉन क्या है?
स्वामी प्रभुपाद विश्व में दो चीज़ों के लिए चर्चित हैं. एक कृष्ण भक्ति के लिए और दूसरा कृष्ण भक्ति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए. इस्कॉन (ISKCON) संस्था यानी 'इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कांशसनेस' यही काम करती है और इसे स्वामी प्रभुपाद ने ही 1966 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में शुरू किया था.
केवल 52 साल पुरानी इस संस्था के दुनिया भर में आज 850 से ज़्यादा मंदिर और 150 से ज़्यादा स्कूल और रेस्टोरेंट हैं. यह सभी कृष्ण की भक्ति पर ही आधारित हैं. जैसा की इस्कॉन का नाम भी सुझाता है, वे केवल कृष्ण का प्रचार प्रसार करते हैं.
इस्कॉन और बीटल्स
1977 तक खोले गए 108 विश्वव्यापी मंदिरों में से एक, भारत के वृंदावन में कृष्णा-बलराम को समर्पित था. इस्कॉन की स्थापना के बाद सैन फ्रांसिस्को मंदिर से कुछ भक्तों को लंदन, इंग्लैंड भेजा गया जहां वे 60 और 70 के दशक के सबसे पॉपुलर रॉक बैंड द बीटल्स के संपर्क में आए. बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन ने सबसे इस्कॉन में सबसे ज़्यादा रुचि दिखाई. उनके साथ लम्बा समय बिताया और बाद में लंदन राधा कृष्ण मंदिर के सदस्यों के साथ एक रिकॉर्ड तैयार किया.
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