मुख्तार अंसारी.. एक समय था जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग इस नाम से डर जाते थे. यहां तक कि यूपी में कई सरकारें आई और गईं, पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का रुतबा और दबदबा कभी कम नहीं हुआ. लेकिन दूसरों के लिए डर का दूसरा नाम मुख्तार अंसारी की परेशानी बढ़ गई है. जिस योगी सरकार में डरकर वो पंजाब की रोपड़ जेल में छिपा था, अब अंसारी यूपी की जेल में वापस लौटने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते में मुख्तार को यूपी भेजने का आदेश दे दिया है.


गली के गुंडे से माफिया डॉन तक का सफर


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गली के मुंडे से माफिया डॉन और सियासत में घुसकर राजनीतिक चोला ओढ़ने वाले मुख्तार के खिलाफ हत्या, अपहरण से जुड़े 45 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. कहने को तो इसके गुर्गे इसे माफिया डॉन समझते हैं, लेकिन उसकी असल पहचान एक गली के गुंडे के तौर पर ही है. इस अपराधी के गुनाहों की एक-एक दास्तां से आपको रूबरू करवाते हैं. कैसे मुख्तार ने हत्या, अपहरण, फिरौती और दंगा.. के बाद राजनीति में कदम रखा और जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया.


मुख्तार अंसारी पर हत्या का केस


डॉन मुख्तार अंसारी के खिलाफ हत्या के कई मामले दर्ज थे. उनमें से एक था मऊ में PWD ठेकेदार की हत्या का केस.. 2009 में मऊ में ठेकेदार मन्ना सिंह की हत्या हुई थी. मुख्तार अंसारी पर हत्या करवाने आरोप था. 10 प्रतिशत गुंडा टैक्स न देने के कारण हत्या का आरोप लगा. 2010 में गवाह  राम सिंह मौर्य की हत्या हुई थी. गवाह की हत्या केस में भी मुख्तार का नाम था. निचली अदालत ने मुख्तार को बरी कर दिया था. मन्ना सिंह के परिवार ने हाईकोर्ट में अपील की.



अपराध की दुनिया को राजनीति के पर्दे से ढंकने वालों में मुख्तार अंसारी भी शामिल है. वो 1996 से लगातार विधायक चुना जाता रहा है. माना जाता है कि मऊ के मुहम्मदाबाद में उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं है. गुनाह की गलियों से मुख्तार अंसारी ने राजनीति के गलियारे तक का सफर तय किया है.


मुख्तार अंसारी दंगा भड़काने का आरोप


हत्या, अपहरण, फिरौती, गैंगस्टर एक्ट और दंगा.. मुख्तार अंसारी पर दर्ज 45 मुकदमों में से ये कुछ संगीन इल्जाम हैं. इनके अलावा भी कई गंभीर आपराधिक मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज हैं. हालांकि इनमें 3 केस में उसे क्लीन चिट मिल चुकी है. लेकिन उसकी जिंदगी पर लगा माफिया डॉन का ठप्पा अभी भी लगा हुआ है.


90 के दशक में पूर्वांचल ने गैंगवार का वो दौर भी देखा है, जब लोगों को पता नहीं होता था कि कब-कहां से गोलियों की आवाज सुनाई दे जाए. पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का सबसे बड़ा दुश्मन अगर कोई था, तो उसका नाम ब्रजेश सिंह है. ब्रजेश सिंह और मुख्तार अंसारी गैंग के बीच कई बार गैंगवार की घटनाएं पूर्वांचल को दहला चुकी हैं.



अपराध के काले धब्बों को छिपाने के लिए मुख्तार ने राजनीति का सफेद कुर्ता पहना लिया. मुख्तार की मंशा थी कि वो विधानसभा के बाद लोकसभा में सांसदों की कुर्सी पर भी बैठे और इसी ख्वाहिश में 2009 में मुख्तार अंसारी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन हार उसे हार मिली थी.


हालांकि उसके भाई अफजाल अंसारी मौजूदा समय में गाजीपुर से बीएसपी सांसद हैं. मुख्तार अंसारी को यूपी के लोग माफिया डॉन समझते हैं, लेकिन उसके परिवार का राजनीति और देश सेवा से नाता पुराना था.


मुख्तार का राजनीति से पुराना नाता


मुख्तार अंसारी के परदादा मुख्तार अहमद अंसारी आजादी के पहले भारतीय नेशनल कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं. जबकि नाना ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी कश्मीर में देश के लिए शहीद हुए थे.


अच्छे पारिवारिक इतिहास के बावजूद मुख्तार ने अपराध का रास्ता चुना. आरोप तो यहां तक लगते रहे हैं कि वोटरों को डरा धमका उसने कई बार चुनाव में जीत हासिल की.


कब सुर्खियों में आया मुख्तार अंसारी


मुख्तार अंसारी का नाम तब सुर्खियों में आया था, जब 2005 में बीजेपी के पूर्व विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हुई थी. हालांकि इस केस में 2019 में CBI की विशेष अदालत मुख्तार अंसारी और उनके भाई सांसद अफजाल अंसारी को क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन परिवार ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है. कृष्णानंद राय की पत्नी ने कांग्रेस पर मुख्तार को संरक्षण देने का आरोप लगा दिया है.


वैसे तो मुख्तार अंसारी यूपी के मऊ जिले से बीएसपी विधायक है, लेकिन उसकी पहली और सबसे बड़ी पहचान नेता की नहीं.. बल्कि माफिया डॉन के रूप में होती है. जिस पूर्वांचल में कभी मुख्तार के नाम का खौफ था, वो मुख्तार उत्तर प्रदेश वापस लौटने से डरता है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2017 में अपराधियों और माफियाओं के लिए सार्वजनिक मंच से कहा था कि 'सत्ता के संरक्षण में पल रहे माफिया, अपराधी, लुटेरे गुंडे ये सबके सब मेहरबानी करके या तो उत्तर प्रदेश छोड़कर चले जाएं और अगर उत्तर प्रदेश में रहेंगे तो उनके लिए दो जगह रहेगी. मुझे लगता है वहां  कोई भी नहीं जाना चाहेगा.'



इस बयान का असर मुख्तार अंसारी पर डर की तरह हुआ. 2017 के बाद से मुख्तार यूपी की अलग-अलग जेलों में शिफ्ट होने लगा. 2018 में यूपी के बांदा जेल में बंद मुख्तार को दिल का दौरा भी पड़ा था. 2019 में पंजाब पुलिस मुख्तार को रंगदारी के एक मामले में अपने साथ पंजाब ले गई और तब से एक साल बीत गया मुख्तार अंसारी यूपी आने से बच रहा है.


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अब 2005 से मुख्तार जेल में बंद है, लेकिन जेल से रहकर ही हर बार चुनाव लड़ता है और जीतता आया है. मऊ और गाजीपुर मुख्तार अंसारी की राजनीति और अंडरवर्ल्ड का गढ़ रहा है, लेकिन योगी सरकार में अब उसके अपराध का साम्राज्य जमीदोंज हो रहा है.


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