नई दिल्लीः 22 मार्च 2020. भारत के इतिहास का वह दिन था, जब लोगों की आंख अल सुबह खुली तो उन्होंने अपने आस-पास सन्नाटा बिखरा पाया. न ट्रैफिक का शोर, न मशीनों की धक-धक, न ऑफिस जाने की तेजी और न ही किसी तरह के इंतजाम की कोई जरूरत. फैमिली वाले लोगों ने तब भी रोज मर्रा के काम निपटाए, बैचलर और अकेले रहने वाले लोगों का तो पूरा दिन शायद सोकर उठने के बाद भी बिस्तर पर ही गुजर गया.
लेकिन, यह कोई बड़े आराम और खुशी का दिन नहीं था. यह दिन डर से भरा हुआ था. यह वह दिन था जब हर खाली वक्त में आदमी यह सोचने लगा था कि आगे क्या होगा? आगे क्या होने वाला है. क्या सब खत्म होने वाला है. क्या तबाही??? यह दिन था जनता कर्फ्यू का.
आज जनता कर्फ्यू के एक साल
आज इस जनता कर्फ्यू को एक साल पूरे हो रहे हैं. 19 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता को संबोधित किया. उनका यह संबोधन देश में धीरे-धीरे फैल रहे कोरोना संक्रमण को लेकर था. इस दौरा ही लोगों को पहली बार एक नया शब्द युग्म सुनने को मिला- जनता कर्फ्यू. कर्फ्यू कोई नया शब्द नहीं था. लेकिन जनता के साथ उसका जुड़ जाना अपने आप में नया था.
यह भी पढ़िएः देश के कई राज्यों में फिर से कोरोना विस्फोट, राजस्थान महाराष्ट्र में सख्ती बढ़ी
पीएम मोदी ने दिया था संबोधन
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा, "इस रविवार, यानी 22 मार्च को, सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक, सभी देशवासियों को, जनता-कर्फ्यू का पालन करना है. जरूरी न हो तो घरों से बाहर न निकले. हमारा यह प्रयास, हमारे आत्म-संयम, देशहित में कर्तव्य पालन के संकल्प का एक प्रतीक होगा. 22 मार्च को जनता-कर्फ्यू की सफलता, इसके अनुभव, हमें आने वाली चुनौतियों के लिए भी तैयार करेंगे."
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "मैं चाहता हूं कि 22 मार्च, रविवार के दिन हम ऐसे सभी लोगों को धन्यवाद अर्पित करें. रविवार को ठीक 5 बजे, हम अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर, बाल्कनी में, खिड़कियों के सामने खड़े होकर 5 मिनट तक ऐसे लोगों का आभार व्यक्त करें. पूरे देश के स्थानीय प्रशासन से भी मेरा आग्रह है कि 22 मार्च को 5 बजे, सायरन की आवाज से इसकी सूचना लोगों तक पहुंचाएं."
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में कहा, "ये है जनता-कर्फ्यू, यानी जनता के लिए, जनता द्वारा खुद पर लगाया गया कर्फ्यू" प्रधानमंत्री के संदेश में ये बात छिपी है कि इस बीमारी से सरकार अकेले नहीं निपट सकती जब तक जनता उनका साथ न दे. कोरोना से लड़ने की कोशिश में उन्हें जनता की भागीदारी चाहिए.
कहां से आया जनता कर्फ्यू
जनता कर्फ्यू कहां से आया. इसका जवाब खुद पीएम मोदी ने अपने संबोधन में दिया था. उन्होंने कहा था आज की पीढ़ी इससे बहुत परिचित नहीं होगी, लेकिन पुराने समय में जब युद्ध की स्थिति होती थी, तो गांव-गांव में ब्लैकआउट किया जाता था." पुराने जमाने के उस ब्लैकआउट का जिक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा,
"घरों के शीशों पर कागज लगाया जाता था, लाइट बंद कर दी जाती थी, लोग चौकी बनाकर पहरा देते थे. मैं आज प्रत्येक देशवासी से एक और समर्थन मांग रहा हूं."
भारत के इतिहास में जनता कर्फ़्यू कोई नई बात नहीं है.
गुजरात आंदोलन के समय का नजारा
जनता कर्फ्यू जैसा नजारा भारत एक आंदोलन में देख चुका है. पुराने लोगों के पास बैठिए तो वह पुराने जमाने की कई बातें बताते हैं. इनमें यह भी शामिल है कि जब अंग्रेज अफसर किसी गांव में पहुंचते थे तो वहां खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए जाते थे. हड़ताल के दौरान भी बाजार बंद, शटर गिरे जैसे तमाम नजारे लोगों ने बचपन से देखे हैं. ठीक ऐसा ही हुआ था गुजरात आंदोलन के समय में.
अहमदाबाद में लगा था जनता कर्फ्यू
साल 1950 में इंदुलाल याग्निक ने जनता कर्फ्यू की शुरुआत की थी. इंदुलाल याग्निक महा गुजरात आंदोलन के बड़े नेता थे. वह अलग गुजरात राज्य की मांग को लेकर हुए जोरदार आंदोलन के सूत्रधार थे. उस वक्त केंद्र और तत्कालीन बंबई सरकार ने आंदोलन को दबाने की काफी कोशिश की लेकिन इंदुलाल ने अपनी लोकप्रियता के बल पर अहमदाबाद में जनता कर्फ्यू लगवा दिया था.
उस समय अहमदाबाद में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और बंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई की रैलियां थीं. सभाओं में जाने के लिए जनता कर्फ्यू लगे होने के कारण जनता अपने घरों से बाहर नहीं निकली और कुछ इस तरह गुजरात के अलग राज्य की मांग मान ली गई.
कहां से आया कर्फ्यू का कॉन्सेप्ट
भाषा को कर्फ्यू शब्द फ्रेंच भाषा के एक पुराने शब्द couvre-feu से मिला है. इसका अर्थ आग को ढकना होता है. इंग्लिश में इसे curfeu कहा गया जो मॉडर्न इंग्लिश में curfew हो गया. 1066 से 1087 तक इंग्लैंड का राजा था William The Conqueror. उसके दौर में एक कानून बनाया गया था जिसे curfeu के नाम से पुकारा जाता था. उन दिनों अकसर लकड़ी के बने मकानों में भयंकर आग लग जाती थी.
उसे रोकने के लिए वह कानून लागू किया गया था. उस कानून के मुताबिक, 8 बजे की घंटी बजने के बाद सभी रोशनी और आगों को बुझा देना होता था ताकि आग न लग पाए. तब चर्च से घंटी बजाकर इस आदेश की जानकारी दी जाती थी.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.