महाराष्ट्र के सियासी समंदर में बीते तीन सालों में कब-कब आया तूफान? मगर अब हो रही तबाही!

पिछले 3 साल से ऐसा कोई साल नहीं गुजरा.. जब बगावत की आवाज बुलंद नहीं हुई. कभी एनसीपी में, कभी कांग्रेस में और अब शिवसेना में. महाराष्ट्र की सियासत में महाभारत का इतिहास पुराना है. बस चेहरे बदल जाते हैं, चाहत सबकी कुर्सी ही होती है.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jun 23, 2022, 03:15 PM IST
  • 3 साल से महाराष्ट्र में बदस्तूर जारी है संग्राम
  • क्या तीन साल में गिर जाएगी उद्धव सरकार?
महाराष्ट्र के सियासी समंदर में बीते तीन सालों में कब-कब आया तूफान? मगर अब हो रही तबाही!

नई दिल्ली: ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र में पहली बार सियासी बवाल मचा है, पिछले 3 साल से ऐसा कोई साल नहीं गुजरा.. जब बगावत की आवाज बुलंद नहीं हुई. कभी एनसीपी में, कभी कांग्रेस में और अब शिवसेना में. महाराष्ट्र की सियासत में महाभारत का इतिहास पुराना है. बस चेहरे बदल जाते हैं, चाहत सबकी कुर्सी ही होती है.

महाराष्ट्र के सियासी समंदर में बार-बार आया तूफान

जीत के बाद शिवसेना का बीजेपी से अलग हो जाना. अजित पवार का डिप्टी सीएम बनने के बाद इस्तीफा देकर वापस एनसीपी में आना. कांग्रेस विधायकों का सरकार से नाराज हो जाना. शिवसेना का मौसम के हिसाब से गठबधंन चुन लेना. शुरुआत से गंभीर संकेत दे रहा था. इन सबकी बंटी हुई जुबानें जनता के बीच और पार्टी में शामिल नेताओं के बीच दीवार खींच रही थी.

बीजेपी और शिवसेना ने साथ-साथ वोट मांगा था. जनता को ये भरोसा दिलाया था कि हमारी सरकार बना दीजिए, आपकी जिंदगी को रॉकेट बना देंगे लेकिन जीत के बाद दोस्ती में दरार आ गई. कुर्सी की चाहत में रास्ते अलग हो गएं और कई महीनों तक महाराष्ट्र की जनता धोखे के बवंडर में फंसी रह गई, लेकिन उसके बाद इस तस्वीर ने सबको भ्रम में डाल दिया था.

जब अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली

अजित पवार सुबह-सुबह डिप्टी सीएम पद की शपथ ले रहे थे. कई दिग्गजों के दिल.. इस तस्वीर को देखकर टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे, क्योंकि डिप्टी सीएम बनने का सपना महाराष्ट्र में किसी एक ने नहीं देखा था. इस तस्वीर को शरद पवार बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. सियासी जोड़-तोड़, गुणा-भाग.. शरद पवार ने सारा जोर लगा दिया. नतीजा ये हुआ कि अजित पवार का सपना-सपना रह गया. फडणवीस की सरकार तो बच नहीं पाई, मगर अजित पवार की घर वापसी हो गई.

मगर देवेंद्र फडणवीस को जब इस्तीफा देना पड़ा, तब उन्होंने एक बात कही कि मैं समंदर हूं वापस आऊंगा. इस वक्त की तस्वीर देख कर ऐसा लग रहा है कि समंदर का पानी वापस आने वाला है.

पहले एनसीपी, फिर कांग्रेस में आई बवाल की बारी

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में मचे घमासान को शरद पवार ने अपने सियासी रणनीतियों से किसी तरह मैनेज तो कर दिया, लेकिन एनसीपी में बवाल थमने के बाद कांग्रेस की बारी आई. सोनिया गांधी से मिलने विधायक दिल्ली पहुंच गएय विधायकों ने सोनिया से शिकायत की उद्धव सरकार के मंत्री सुनते नहीं हैं.

विधायकों की नाराजगी की चिट्टी वायरल हो गई. महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के खिलाफ बोलने लग गए. माहौल ऐसा बन गया कि कांग्रेस में भी तोड़फोड़ मच सकती है. ऐसा देख कर ये लगने लगा कि अब ये महाविकास अघाड़ी की सरकार ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है. हालांकि हर बार इस सरकार को संकट से उभारने का जिम्मा शरद पवार ने ही उठाया.

मौसम की तरह बदल रहा है सियासत का चरित्र

शिवसेना को भला कहां मालूम था कि उनके विधायक मौसम की तरह बदल जाएंगे. एकनाथ शिंदे ने भले ही ये सारा खेल बीते दो दिनों में किया हो, लेकिन इसकी पठकथा काफी लंबे समय से लिखी जा रही होगी. सियासत में चिंगारी ही तबाही के लिए काफी है. बूंद-बूंद से तालाब बनकर आज समंदर बनता दिख रहा है. ऐसा समंदर जिसमें उद्धव ठाकरे की सरकार डूबती दिख रही है और उन्हें नैया भी नहीं मिल रही.

पिछले तीन साल में महाराष्ट्र की राजनीति की चालें और उसका चरित्र मौसम की तरह बदल रहा है. भाजपा ये बार-बार आरोप लगाती नजर आई कि जनता वोट देकर तीन साल से उदास है, हताश है, निराश है क्योंकि सत्ता के बनते बिगड़ते समीकरण को संभालने में ही सियासी पार्टियां का समय गुजर रहा है.

कभी बीजेपी के किरिट सोमैया ऐलान करते हैं कि उद्धव सरकार गिरने वाली है तो कभी कोई और आज ये सवाल एक बार फिर सबके सामने हैं कि क्या महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे गिर जाएगी?

इस वक्त महाराष्ट्र की राजनीति  का यही सबसे बड़ा सवाल है और यह संकट महाविकास अघाड़ी सरकार के सहयोगी एनसीपी और कांग्रेस के तरफ से नहीं खड़ा हुआ है, बल्कि उद्धव ठाकरे के बेहद करीबी और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे इसके सूत्रधार हैं.

'शिवसैनिक को पार्टी से गद्दारी नहीं करनी चाहिए'

महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना कार्यकर्ताओं से भावुक अपील की. उन्होंने कहा कि शिवसैनिक को पार्टी से गद्दारी नहीं करनी चाहिए. फेसबुक लाइव में पार्टी कार्यकर्ताओं से उद्धव ने कहा कि आप मुझे सीएम पद पर नहीं देखना चाहते तो सामने आकर बात करें, मैं पद छोड़ने को तैयार हूं.

आज भले ही उद्धव ठाकरे ये बात कह रहे हो कि वो इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं, एक भी विधायक ये कह दे तो वो इस्तीफा दे देंगे. लेकिन उद्धव ठाकरे को 2019 की याद नहीं आई, जब उन्होंने खुद सामना में इस बात का ऐलान किया था कि एक शिवसैनिक ही महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनेगा. बैठकों का दौर चला और उद्धव ठाकरे अपनी लिखी हुई बात से पलट गए.

शिवसेना की तरफ से एक लेटर जारी किया गया और उसमें ये ऐलान हुआ कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. सत्ता की लालच क्या-क्या करा सकती है ये उस वक्त सभी ने देखा. हिंदुत्व की सियासत करने वाली शिवसेना ने अपने वैचारिक मूल्यों से समझौता कर लिया और कुर्सी के खातिर कांग्रेस और एनसीपी को अपना यार बना लिया.

उस वक्त महाराष्ट्र के कई जगहों पर एकनाथ शिंदे के पोस्टर चिपका दिए गए थे, उसमें शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी की गई थी. माना जा रहा था कि शिवसैनिकों में से यदि कोई सीएम बन सकता है, तो वो हैं एकनाथ शिंदे.. मगर उद्धव ने खुद को कुर्सी पर विराजमान कर लिया. ये वही चिंगारी जिसे शिंदे में अपने दिल में पाल रखा था, वक्त बीतने के साथ वो चिंगारी भड़क गई और आज नतीजा सबके सामने है.

उद्धव ठाकरे ने इस पूरे विवाद पर क्या बोला?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि 'मुझे कुर्सी पर बैठने का मोह नहीं है. मैं जबरदस्ती इस कुर्सी पर नहीं बैठना चाहता, मगर जो कुछ भी कहना है, वो सामने आकर कहें. एक तरफ ये कहना कि मैं शिवसैनिक हूं और फिर ऐसा काम करना है. कहावत है कि कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था लगा होता है और वही पेड़ काटता है. पार्टी से गद्दारी ठीक नहीं है.'

उद्धव ने ये कहकर बागी नेता एकनाथ शिंदे को संदेश देने की कोशिश की कि अगर कोई और शिवसैनिक सीएम बनता है तो उन्हें खुशी होगी. उन्होंने कहा कि वो पार्टी अध्यक्ष पद तक छोड़ने को तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि 'अगर आप चाहते हैं कि मैं सीएम की कुर्सी पर न रहूं तो बोलें. विधायक अगर मुझसे बोलते हैं तो मैं कुर्सी छोड़ दूंगा. जब तक शिवसैनिक मेरे साथ हैं मैं हर चुनौती का सामना करूंगा. जो कहते हैं कि मैं शिवसेना का नेतृत्व करने के लायक नहीं हूं तो मैं उन्हें तवज्जो नहीं देता. मैं संकटों से जूझने वाला शिवसैनिक हूं, शिवसैनिक बोलें कि मैं पद छोड़ूं तो मैं छोड़ दूंगा. उद्धव ठाकरे नहीं चाहिए तो भी सही है, पर मेरे सामने आकर ये बात करो.'

उद्धव ने कहा कि एकनाथ शिंदे को पार्टी ने काफी सम्मान दिया. शिंदे.. आदित्य ठाकरे के साथ उयोध्या भी गए थे. उद्धव ने कहा कि शिवसेना ने हिंदुत्व की राह कभी नहीं छोड़ी.

अब उद्धव ठाकरे की ये सारी बातें एकनाथ शिंदे को नहीं भाने वाली है. अब उद्धव की बातें उन्हें लाग-लपेट लग रही होंगी. अब उद्धव की कुर्सी बचती है या फिर सत्ता छिनती है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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