क्या तेजस्वी का हो रहा है भगवाकरण ?
कुछ वक्त पहले यह खबरें सुर्खियों में थी कि भाजपा और राजद अब एक ही नाव पर सवार होने को तैयार हैं. यह बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा उलटफेर होता अगर दो ध्रुवीय पार्टियां जो एक दूसरे की मुखर विरोधी रही हैं, वे ही साथ आ जाएं. बड़े लंबे समय से इन कयासों पर चुप्पी साधे हुए विपक्ष के नेता और राजद के सर्वेसर्वा तेजस्वी यादव ने आज मुंह खोल सब साफ करने के संकेत दिए.
पटना: बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सदन में आज भाजपा के करीब होने के कयासों पर चुप्पी तोड़ी. उन्होंने कहा कि राजद ने भाजपा के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया है. उन्होंने कहा कि अगर पार्टी समझौता करती तो सूबे में राजद का मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से सुशील कुमार मोदी ही उपमुख्यमंत्री होते.
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है. इतना संभव कि कल को एक दूसरे को कोसने वाली दो पार्टियां अगली ही सुबह एक दूसरे से हाथ मिलाए अपने ही सहयोगियों के खिलाफ खड़ी नजर आ सकती हैं.
तेजस्वी यादव पिछले कुछ दिनों से चुप थे लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ट्विटर पर भी आग उगलते रहते थे. भाजपा को या यूं कहें कि केंद्र सरकार को थोड़ी छूट दे दी थी. ऐसे में कयासों का बाजार गर्म हुआ और बात भाजपा-राजद गठबंधन तक पहुंच गई.
जदयू से नाराजगी के बाद भाजपा ने राजद से बढ़ाई नजदीकी
बिहार में किसी भी राजनीतिक हलचल के पीछे एक छिपी हुई सच्चाई होती है. यहां भी है. दरअसल, एनडीए गठबंधन की पार्टी जदयू और उसके मुखिया नीतीश कुमार से भाजपा की रार इसका मुख्य कारण है.
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी को लेकर जिस प्रकार जदयू अड़ गई, उसके बाद से ही भाजपा उसे सबक सिखाना चाहती थी. कुछ दिनों पहले जब बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर जो बहस छिड़ी, उसमें कई भाजपा नेताओं ने भी नीतीश सरकार को घेरा.
लेकिन तभी तक जब तक गृहमंत्री अमित शाह ने यह न ऐलान कर दिया कि 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के अगुआई में लड़ेगी.
उधर पार्टी के कुछ नेता छुपे रुस्तम तरीके से राजद के तेजस्वी यादव से मांडवली करने में लगे हुए थे. हालांकि, तेजस्वी यादव ने यह तो बयान दे दिया कि भाजपा के साथ उनकी कोई नजदीकी नहीं, लेकिन अब भी बिहार विधानसभा चुनाव तक कुछ कहा नहीं जा सकता.
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महागठबंधन में लॉबी की वजह से तेजस्वी हुए मजबूर
अब सवाल यह भी उठता है कि राजद की या यूं कहें कि तेजस्वी यादव की ऐसी क्या मजबूरी है कि आखिर वे भाजपा से हाथ मिलाएंगे, महागठबंधन छोड़कर.
दरअसल, सवाल में ही जवाब है. महागठबंधन ही मुख्य वजह है तेजस्वी के मोह-भंग हो जाने का. लोकसभा परिणाम के बाद बिहार में सबकुछ बदल गया है. पार्टियों के प्रमुख चेहरे से लेकर बिहार का नेतृ्त्व करने वाले नेता भी. और क्योंकि लोकसभा में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा और बुरी तरह हारा गया तो ठीकरा भी उन्हीं पर फूटेगा, यह भी तय है. हुआ भी यहीं.
सूत्रों की मानें तो महागठबंधन के अंदर एक लॉबी खड़ी होने लगी है. उसके नेतृत्वकर्ता हैं रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा.
राजनीतिक गलियारों से आती हुई खबरों की मानें तो रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा खुद को महागठबंधन के नेतृत्वकर्ता के रूप में देखने लगे हैं. उनका मानना है कि तेजस्वी यादव के नाम को लेकर महागठबंधन के नेताओं में अविश्वास का भाव आ गया है.
अब हालात कुछ अच्छे नहीं लग रहे
हालांकि, खबरें तो यह भी है कि न सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा बल्कि हम प्रमुख जीतनराम मांझी भी महागठबंधन के नेतृत्वकर्ता की भूमिका में खुद को फिट बैठता हुआ पाते हैं. अब ऐसे में महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद राजद के तेजस्वी यादव कैसे यह सब स्वीकार कर लें.
बिहार में भाजपा तेजी से अपने पैर जमा रही है, इस बात को समझने के बाद तेजस्वी यादव भी भाजपा से नजदीकी चाहते थे. लेकिन शायद वह समीकरण जिसपर दोनों की सहमति और वह स्थिति या यूं कहें कि सूबे की अवस्था वैसी नहीं कि दोनों दल साथ आ कर राजनीतिक जगत में एक झटका दें.
सदन में केंद्र सरकार की भी की आलोचना
इसके अलावा तेजस्वी यादव ने महाराष्ट्र समेत कई और मुद्दों पर राज्य और केंद्र की सरकार को घेरा. उन्होंने कहा कि "जब से बिहार में एनडीए की सरकार बनी है, तब से एक से बढ़कर एक मामले सामने आ रहे हैं, जिनको हल नहीं किया जा रहा है. हम विपक्ष में हैं. हम आम लोगों से जुड़े मुद्दों को सड़क से सदन तक उठाने का काम करेंगे.
उन्होंने कांग्रेस के प्रदर्शन पर लाठीचार्ज की निंदा की और कहा कि हम इसकी निंदा करते हैं. रामदेव राय जैसे सीनियर सदस्य को पीटा गया है, जिससे वो जख्मी हो गये हैं." विपक्ष के नेता ने सदन में अपने माइक के बंद रहने पर सवाल उठाया और कहा कि मंत्रियों का माइक खुला रहता है, लेकिन हमारा माइक तभी खोला जाता है, जब विधानसभा अध्यक्ष की ओर से इशारा किया जाता है.
तेजस्वी ने कहा मुद्दे ज्यादा हैं और सत्र छोटा
विपक्ष के नेता ने कहा कि लोकतंत्र में ऐसा हो रहा है. सरकार की ओर से सवालों के वाजिब जवाब नहीं दिये जा रहे हैं. तेजस्वी यादव ने शीतकालीन सत्र के छोटे होने पर भी सवाल उठाया और कहा कि सत्र छोटा है, लेकिन मुद्दे ज्यादा हैं. उन्होंने विधानसभा में चपरासी और माली जैसे पदों की बहाली में एम टेक के फार्म भरने का सवाल उठाया और सरकार को कठघरे में खड़ा किया.
विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार के काम की उपलब्धि यही है कि कुछ पदों पर बहाली आई है और लाखों की संख्या में अभ्यार्थियों ने आवेदन किए हैं. बेरोजगारी के मामले में सरकार विफल रही है.