'राजनीति की युद्धभूमि' में बिहार अब क्या नया गुल खिलाने वाला है ?

बिहार में सियासी पारा फिलहाल बड़ा शांत लग रहा हो लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इसमें एक हलचल आने के आसार नजर आने लगे हैं. बिहार में भाजपा-जदयू के बीच की डोर भले जितनी भी मजबूत बताई जा रहा हो लेकिन सच तो यह है कि दोनों ही दल एक दूसरे पर बढ़त बनाने में लगे हुए हैं.   

Written by - Satyam Dubey | Last Updated : Nov 17, 2019, 08:12 AM IST
    • राजद नहीं जदयू है भाजपा के लिए रूकावट
    • तेजस्वी ने इस डर से बदले अपने तेवर
    • पप्पू यादव से तेजस्वी को क्या है समस्या
    • उपचुनाव के परिणामों से जदयू की बढ़ी मुश्किल
'राजनीति की युद्धभूमि' में बिहार अब क्या नया गुल खिलाने वाला है ?

पटना: सूबे में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कई पूर्व निर्धारित समीकरण ध्वस्त हो सकते हैं तो कई चेहरे मुख्यधारा से हाशिए पर भी लुढ़क सकते हैं. अगर आपको यह बातें घुमावदार लग रहीं हों तो आपको सीधे और सरल शब्दों में बताते हैं.

समीकरण का मतलब यहां चुनाव के मद्देनजर बनाईं जा रहीं योजनाओं से है. फिर चाहे वह दलगत स्थिति की बात हो या सीट शेयरिंग से लेकर उम्मीदवार चयन की. बिहार का चुनाव इस बार बिल्कुल अलग होगा. हर बार से अलग. इस चुनाव में पिछले चुनाव की तरह लालू यादव और नीतीश कुमार की जुगलबंदी दिखने की संभावना सबसे कम है. इस चुनाव में दिखेगा मोदी मैजिक और अमित शाह की दूरदर्शिता का नजारा.

सूत्रों के हवाले से यह खबरें लगातार आ रही है कि भाजपा की सारी प्लानिंग सिर्फ इस पर केंद्रित है कि आखिर कैसे पार्टी सूबे में सबसे बड़ी जनाधार वाली पार्टी बने और सबसे ज्यादा सीटें जीते

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राजद नहीं जदयू है भाजपा के लिए रूकावट

देखा जाए तो भाजपा के लिए इस मुकाम को पाना हालिया स्थितियों को देख बहुत मुश्किल भी नहीं लगता. राजद के नेतृत्व में कमजोर महागठबंधन तो पार्टी के लिए रोड़ा न के बराबर है. असली बाधा जदयू है, भाजपा की अपनी सहयोगी दल.

दरअसल, पिछले कुछ दिनों से भाजपा ने जदयू के बहुत से नखरों को सह लिया और अब सूत्रों के मुताबिक गृहमंत्री अमित शाह ने पूरी योजना पेपर पर लिख दी है और उसपर काम भी किया जाने लगा है. राजनीतिक गलियारों में दबी आवाजों में ही सही, यह खबर मिलने लगी है कि भाजपा की धुर-विरोधी माने जाने वाली राजद पार्टी ने बिहार से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या यूं कहें कि जदयू को साइडलाइन करने के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया है. आधिकारिक तौर पर गठबंधन कर के नहीं, खुफिया तरीके से. बात जरा आसानी से विश्वास कर लेने लायक है भी नहीं.

क्योंकि, भाजपा-राजद के बीच का संघर्ष किसी से छिपा नहीं. लेकिन यह भी समझना आवश्यक है कि यह राजनीति है जहां हित पहले साधा जाता है. 

तेजस्वी ने इस डर से बदले अपने तेवर

कुछ प्रमाण भी मिलने लगे हैं. हाल के दिनों में अगर आप राजद के सर्वेसर्वा तेजस्वी यादव या पार्टी के किसी भी नेता के बयानों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि पार्टी ने केंद्र सरकार से अपना ध्यान हटा कर राज्य सरकार पर टिका लिया है. इतना कि हर दिन आलोचनाओं से जदयू सरकार के नाक में दम कर रखा है.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर राजद की क्या मजबूरी है कि पार्टी भाजपा के साथ गुटबाजी कर रही है. दरअसल, लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ी महागठबंधन को बुरी तरह से हार के सिवा कुछ नहीं मिला. अब स्थितियां यूं बन आईं हैं कि महागठबंधन के अंदर तेजस्वी को रिप्लेस करने की बातें जोर पकड़ने लगी हैं.

रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पहले ऐसे नाम हैं जो नेतृ्त्वकर्ता की भूमिका अदा करने को आतुर हैं. महागठबंधन के घटक दलों के अलावा राजद के अंदर भी कलह से तेजस्वी यादव आहत हो गए हैं. 

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पप्पू यादव से तेजस्वी को क्या है समस्या ?

इसके अलावा सबसे दिलचस्प मोड़ यहां आया है कि पप्पू यादव अब दिल्ली के निचले सदन से पटना के विधानसभा में पहुंचने की तैयारी में हैं. उन्हें महागठबंधन के घटक दलों और नेताओं से सहयोग भी मिल रहा है. यह बात शायद तेजस्वी यादव को हजम नहीं हो रही.

राजद से बागी हो कर अपनी पार्टी जाप बनाने वाले पप्पू यादव हाल के दिनों में बिहार में किसी भी नेता से ज्यादा सुर्खियों में रहें हैं. फिर चाहे मुजफ्फरपुर चमकी बुखार में मदद पहुंचाने की बात हो या बिहार बाढ़ में अग्रणी भूमिका निभाने की, हर जगह राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव छाए रहे. शायद यहीं कारण है कि पप्पू यादव की निखरती छवि राजद में लालू कुनबे के नेताओं को रास नहीं आ रही.

यह डर कि पप्पू यादव का प्रभाव राजद से पारंपरिक यादव वोटरों को उनके पाले से छीन न ले, तेजस्वी यादव को गहरा नुकसान लग रहा है.

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उपचुनाव के परिणामों से जदयू की बढ़ी मुश्किल

बिहार में उपचुनाव के बाद जदयू की मुश्किल और भी बढ़ गई है. चार सीटों पर उतरी पार्टी बमुश्किल 1 सीट ही बचा पाई. इसके अलावा हाल के दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कई मौकों पर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है. बिहार की राजनीति में अनुभव रखने वाले कुछ विश्लेषकों की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ प्रदेश में कई जगहों पर एंटी-इंकमबेंसी का माहौल भी दिखने लगा है. 

ऐसे में बिहार में नया सियासी खेल किस मोड़ पर आ कर अपना असल रंग दिखाता है, यह देखना दिलचस्प होगा. 

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