नई दिल्ली: हिंदू धर्म के चरित्रों को आधार बनाकर हिंदी साहित्य लेखन में समय-समय पर कई तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं. साहित्य में धर्म चरित्र के प्रयोग अब भी हो रहे हैं लेकिन इस्लाम धर्म में ऐसी कोई परंपरा क्यों नहीं है? जब यह सवाल उर्दू के जाने माने उपन्यासकार ख़ालिद जावेद से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म में कहानी कहने के लिए ज़मीन ही नहीं है.
नेमतखाना के लिए मिला पुरस्कार
2014 में लिखे गए अपने उपन्यास ‘नेमतखाना’ (द पैराडाइज आफ फूड) के लिए ख़ालिद जावेद को हाल ही में वर्ष 2022 के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस मौके पर उन्होंने एक इंटरव्यू दिया है. ‘एक खंजर पानी में’,‘आखिरी दावत’, ‘मौत की किताब’, और ‘नेमतखाना’ के लेखक ख़ालिद जावेद विभिन्न पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं और न केवल भारत बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं .
अमीश त्रिपाठी, देवदत्त पटनायक का उदाहरण
बता दें कि अमीश त्रिपाठी, देवदत्त पटनायक जैसे लेखकों द्वारा हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के चरित्रों को आधार बनाकर उपन्यासों की रचना की गई है. इस पृष्ठभूमि में ख़ालिद जावेद से जब यह सवाल किया गया कि इस प्रकार के प्रयोग इस्लाम धर्म के साथ क्यों नहीं किए गए तो उनका कहना था, ‘‘ हिंदू धर्म, पूरा का पूरा धर्म होने के साथ ही जीवन शैली है . हिंदू धर्म आचार संहिता नहीं है बल्कि वह संस्कृति है. भारतीय दर्शन और उसके सभी छह स्कूल पूरी तत्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा की सांस्कृतिक मूल के संग व्याख्या करते हैं . इसके चलते हिंदू धर्म में लचीलापन है . उसमें चीजों को ग्रहण करने की बहुत बड़ी शक्ति हमेशा से मौजूद रही है. ’’
कहानी कहने के लिए ज़मीन पहले से मौजूद होती है
ख़ालिद जावेद ने आगे कहा, ‘‘ हिंदू धर्म उस तरह का धर्म नहीं है जो कानूनी एतबार से चले . इसके भीतर मानवीय मूल्य, सांस्कृतिक तत्वों के साथ मिलकर सामने आते हैं . ऐसी जगह पर कहानी कहने के लिए ज़मीन पहले से मौजूद होती है. ’’
'इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है'
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफेसर ख़ालिद जावेद कहते हैं, नियम बनाए गए हैं . इस धर्म में आचार संहिता बहुत ज्यादा है. सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं . इस्लाम में अगर ईद को छोड़ दें तो सांस्कृतिक परिदृश्य बहुत कम नजर आएगा . कुछ नियमों के ऊपर आपको चलना है.’’ वह कहते हैं, ‘‘इस्लाम के अपने खास नियम है . जिन्हें तोड़ना बहुत मुश्किल है. वहां कोई कहानी कहने के लिए जमीन ही नहीं है. उसके चरित्र ही इस तरह के नहीं हैं जिसके भीतर एक किरदार बनने की संभावनाएं पाई जाती हों . इस्लाम के चरित्र इतने ज्यादा ठोस हैं कि उनमें इस तरह का कहानी का चरित्र बनने के लिए, कल्पनाशीलता के लिए गुंजाइश बहुत कम है.’’
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