नई दिल्ली: पुलवामा हमले की पहली बरसी पर राहुल गांधी ने ट्विटर पर तीन सवाल पूछा है. उन्होंने अपने ऑफिशल ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया है कि इस हमले का सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ?



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दुनिया जानती है कि पुलवामा का हमला पाकिस्तान की साजिश का नतीजा था. लेकिन राहुल गांधी इस पर सवाल खड़े करके केन्द्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन राहुल गांधी और गांधी परिवार से पूछे जाने वाले ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब देश सालों से जानना चाहता है.


1. पहला सवाल- देश के बंटवारे से किसका फायदा हुआ
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु थे. यानी राहुल गांधी के परनाना. जो कि देश के बंटवारे के बाद पहले प्रधानमंत्री बने. इस बंटवारे में लाखों लोग मारे गए. सड़कों पर लाशें सड़ती रहीं. बर्बर बलात्कार हुए. हजारों मासूम बच्चे अपने मां बाप के बिना भूख से बिलखकर मर गए.


ऐसे में ये सवाल पूछना लाजिमी है कि देश के बंटवारे से किसे फायदा हुआ? क्या भारत माता के इस दर्दनाक बंटवारे के बाद पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाले नेहरु के परनाती राहुल गांधी इसका जवाब देंगे...



लोहिया ने भी किया है नेहरु की पदलिप्सा की तरफ इशारा
देश के बंटवारे से आखिर किसे फायदा हुआ इस पर कई लोगों ने अपने विचार रखें हैं. देश के विख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया देश के बंटवारे के समय युवा थे. उन्होंने इस दर्दनाक घटना को बेहद नजदीक से देखा था. 1960 में राम मनोहर लोहिया की किताब 'guilty men of india's partition’ प्रकाशित हुई. हिंदी में इस किताब का नाम ’भारत विभाजन के गुनहगार’ है.


इस किताब में लोहिया जी एक घटना का उल्लेख करते हैं. साल 1946 में बंगाल के नोआखली में नेहरू से उनकी मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात के लिए महात्मा गांधी ने लोहिया जी को विवश किया था. इस मुलाकात में नेहरू ने लोहिया से कहा कि वो भारत देश से पूर्वी बंगाल को अलग कर देना चाहते हैं.


नेहरू की इस बात से लोहिया हतप्रभ रह गए. उन्होंने अपनी किताब में नेहरु के लिए लिखा कि 'ये लोग बूढ़े हो गए थे और थक गए थे. वो अपनी मौत के निकट आ गए थे या कम से कम ऐसा उन्होंने सोचा जरूर ही होगा. यह भी सच है कि पद के आराम के बिना ये अधिक दिनों तक जिंदा भी नहीं रहते.’



लोहिया जी ने स्वाभाविक तौर पर नेहरु जी की पद लिप्सा और इसके लिए देश विभाजन भी स्वीकार कर लेने की उनकी मंशा की तरफ इशारा किया.


हाल ही में दलाई लामा ने भी कह दिया था सच
भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के धर्मगुरु परम पावन दलाईलामा ने साल 2018 में निजी विचार प्रकट किया कि यदि जवाहर लाल नेहरू मोहम्मद अली जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री मान लेते तो भारत विभाजन रुक सकता था.
दलाई लामा ने ये विचार अगस्त 2018 को एक निजी संस्थान के एक कार्यक्रम में प्रकट किए.



उस समय दिए गए दलाई लामा के बयान के मुताबिक 'महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना प्रधानमंत्री बनें लेकिन पंडित नेहरु इसके लिए तैयार नहीं हुए. दलाई लामा ने कहा कि तब प्रधानमंत्री बनने की चाहत में नेहरू ने आत्मकेंद्रित रवैया नहीं अपनाया होता तो देश का बंटवारा नहीं होता'.


2. दूसरा सवाल- प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत से किसे फायदा हुआ
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी की रुस में संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत हो गई. उनकी मृत्यु के बाद कई दशकों तक इससे संबंधित फाइलें छिपाई गईं.


लेकिन सूचना क्रांति के इस युग में कोई भी सच छिपाना मुश्किल है. विख्यात पत्रकार अनुज धर ने शास्त्री जी की मौत से संबंधित फाइलें बाहर लाने के लिए आरटीआई डाली. जिसके बाद बहुत आनाकानी करने के बाद ये सरकारी फाइलें सार्वजनिक की गईं.
इन फाइलों के आधार पर अनुज धर ने किताब लिखी 'योर प्राइम मिनिस्टर इज डेड'. जिसका हिंदी संस्करण है 'शास्त्री जी के साथ क्या हुआ था'.



अनुज धर की ये किताब शास्त्री जी की मौत से संबंधित कई रहस्यों से पर्दा उठाती है.


अनुज धर ने अपनी किताब में साफ तौर पर बताया है कि 'पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत के बाद पीएम की कुर्सी संभालने वाली राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने बेहद कड़े शब्दों में शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री को धमकाया था. क्योंकि वह अपने पति की मौत की जांच की मांग कर रही थीं.


यही नहीं अनुज धर की किताब में यह स्पष्ट तौर पर संकेत दिया गया है कि शास्त्री जी की मौत के बाद इंदिरा गांधी का चेहरा भावहीन था, बल्कि कई बार उन्हें अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए देखा गया था.



यह सभी घटनाएं अनुज धर की किताब के आधार पर बनी विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' में भी दिखाई गई हैं.


3. तीसरा और सबसे अहम सवाल- राजेश पायलट, माधव राव सिंधिया और जितेन्द्र प्रसाद की मौत से किसे फायदा हुआ
राहुल गांधी के पिता स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी की मृत्यु के बाद नरसिंह राव भारत के प्रधानमंत्री बने. राहुल गांधी की माताजी सोनिया गांधी ने सत्ता से दूर रहने का फैसला किया. लेकिन अचानक उनका मन बदला और उन्होंने कांग्रेस की कमान संभालने का फैसला किया. तभी आश्चर्यजनक रुप से कांग्रेस पार्टी के तीन बड़े अहम नेता राजेश पायलट, जितेन्द्र प्रसाद और माधव राव सिंधिया की मृत्यु हो गई. इसमें से जितेन्द्र प्रसाद ने तो वंशवादी राजनीति का विरोध करते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव भी लड़ने की गुस्ताखी कर दी थी. 


सबसे पहले 11 जून, 2000 को वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश पायलट की सड़क हादसे में मौत हो गई. पेशे से पायलट राजेश पायलट का एक्सीडेंट जयपुर में हुआ. गंभीर चोट की वजह से वो बच नहीं सके. खास बात ये थी जब जितेन्द्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया था, तो राजेश पायलट उनके साथ थे.



इसके बाद 16 जनवरी 2001 को जितेन्द्र प्रसाद की मौत हुई, जिन्होंने कांग्रेस के वंशवाद के खिलाफ ताल ठोंकते हुए  सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें हार मिली थी. इसके बाद वह रहस्यमय तरीके से बीमार हुए. उनके मस्तिष्क से रक्त स्राव हुआ जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई.  



इसके  बाद नंबर आता है माधवराव सिंधिया का. जिनका निधन 30 सितंबर 2001 को उस समय हुआ था, जब वे दिल्ली से कानपुर एक रैली को संबोधित करने स्पेशल एयरक्राफ्ट से जा रहे थे. उत्तर प्रदेश में मैनपुरी के भैंसरोली गांव के ऊपर एयरक्राफ्ट में आग लग गई.



माधव राव सिंधिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और बेहद लोकप्रिय थे. जिसकी वजह से वह कभी भी गांधी परिवार के वर्चस्व को चुनौती देने की स्थिति में थे.


लेकिन ये सवाल देश के करोड़ों लोगों के मन में अभी भी उठता है कि आखिर कैसे राहुल गांधी की माताजी सोनिया गांधी के राजनीति में पदार्पण करते ही कांग्रेस के इन तीनों वरिष्ठ नेताओं की असामयिक मौत हो गई.


शहीदों की मृत्यु पर सवाल उठाने वाले राहुल गांधी क्या इन सवालों का जवाब दे पाने की स्थिति में हैं? क्योंकि उपरोक्त सवाल तो महज बानगी हैं, पिछले 70 सालों में गांधी खानदान के कारनामों पर सवालों की पूरी फेहरिस्त तैयार हो सकती है


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