क्या डेटा प्रोटेक्शन बिल से हल हो जाएंगी दिक्कतें
डेटा प्रोटेक्शन बिल आपके डाटा को सुरक्षित कैसे रखेगा, यह एक बड़ा सवाल है. दरअसल, सेवा प्रदाता कंपनियों की सेवाएं लेने के लिए आम आदमी को अपनी जानकारियां तो देनी ही होंगी. भारत एक ऐसा देश है जो जाति-धर्म के आधार पर वर्गीकृत है. यानी कि नाम पता चलते ही किसी का लिंग, उसकी जाति और उसका धर्म पता लगाया जा सकता है. तमाम कोशिशों के बाद यह मुश्किल कैसे हल होगी? यह तो विधेयक के सामने आने के बाद ही तय हो पाएगा.
नई दिल्लीः आम आदमी का पर्सनल डेटा कितना सुरक्षित यह बड़ी बहस है. केंद्र सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसकी चुनौतियों से निपटने के लिए डेटा प्रोटेक्शन बिल को मंजूरी दे दी है. शीतकालीन सत्र के जारी समय में यह बिल सदन में पेश किया जाना है. आईबी मंत्री रविशंकर प्रसाद इसकी जानकारी दे चुके हैं.
बिल के प्रावधानों पर बात हो चुकी है, लेकिन एक सवाल है कि क्या डेटा प्रोटेक्शन बिल, सूचना के विस्तार वाले इस समय में उपजी चुनौतियों से निपटने में सहायक सिद्ध हो जाएगा. अभी तक किस तरह के कानून कंपनियों के हथियार बने हुए हैं. डालते हैं इन पर एक नजर
अभी तक कंपनियों को छूट है
विधेयक के जरिये भारतीय कानून और टैक्स के दायरे में आना कंपनियों पर सबसे बड़ा नियंत्रण होगा. अभी तक एक कानूनी लूपहोल है कि कंपनियां, वेबसाइट्स आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत खुद को सुरक्षित मानती हैं. यह एक तरीके से खुद को महज माध्यम (इंटरमीडिएट) मानती हैं और समझती हैं कि वह डेटा का इस्तेमाल कैसे भी कर सकती हैं. क्योंकि कानूनी लिहाज से उन्हें कई तरह की छूट मिली हैं.
एक उदाहरण से इसे समझिए कि कुछ साल पहले तक आप फोन मेसेज भेजते थे. यह सोशल एप आने से पहले की बात है. तब सिर्फ नेट का डाटा खरीदने के लिए आप पैसे खर्च करते थे और कई वेबसाइट आपको फ्री मेसेज भेजने की सुविधा देती थीं. अब आप सोचिए कोई वेबसाइट बिना किसी शुल्क के यह सुविधा कैसे देती थीं ? कंपनियां आपके डेटा के इस्तेमाल कारोबार भी कर रही हैं और उससे बरी भी हो रही हैं.
सवाल, कंपनियों की आय कैसे, जवाब- आप से
कंपनियां लोगों को फ्री में कंटेंट दे रही हैं, बिना कोई शुल्क लिए आपकी मार्केटिंग कर रही हैं इसके बावजूद विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों में से हैं. तो सवाल है कि उनकी आय का जरिया क्या है? इसका सीधा जवाब है कि कंपनियों के लिए सबसे बड़ा उपभोक्ता यूजर ही है, वही उनकी आय है और वही उनका मार्केट भी और वही उनका उत्पाद (प्रॉडक्ट) भी है.
कंपनियों की आय का जरिया आपका कंटेंट है. कंपनियां अपने समझौते की शर्तों (टर्म ऑफ एग्रीमेंट) के तहत आपसे सहमति ले लेती हैं कि वह आपके डेटा का इस्तेमाल कर सकती हैं. अफसोस... आपके बिना हां किए. या ऐसे कहिए कि आपको नहीं पता कि आप हां कह चुके हैं.
आईटी एक्ट 79 को भी समझना जरूरी है
साल 2000 में संसद ने सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम पारित किया था. इसके तहत 52 प्रावधान अलग-अलग धाराओं के तहत बनाए गए. इस अधिनियम की धारा 79 के तहत साइबर मामलों पर नियंत्रण की व्याख्या की जाती है. सबसे पहले तो यह साइबर कैफों को पूरी तरह कानूनी दायरे में लाने की बात करता है.
साइट हैक होने या फिर किसी साइट से देश की एकता, अखण्डता पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए उन पर नियंत्रण का अधिकार देता है. इसी एक्ट के तहत ऑनलाइन कंपनियों को अभी तक महज मीडियम माना जाता है. यानी कि डेटा के संरक्षण को लेकर बात नहीं की गई है.
...लेकिन दिक्कतें कम नहीं होंगी?
रिपोर्ट में यह तर्क है कि सरकारी सेवाओं को यूज़र्स की इजाजत लेने से छूट दे दी जाए. असली मुश्किल और विरोध यहीं से शुरू होता है. इस छूट में आधार भी शामिल है. आधार हर जगह होने से हमारी असुरक्षा बढ़ जाती है. आधार हर तरह के डेटाबेस में डला हुआ है. अब तो सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य से भी आधार को जोड़ रही है. सवाल यह है कि डेटा पर स्वामित्व किसका हो.
ट्राई ने इसकी व्याख्या की थी कि डेटा पर उपभोक्ता का अधिकार है. ऐसे में अगर डेटा का गलत इस्तेमाल या किसी प्रकार के उल्लंघन हो तो इस स्थिति में उपभोक्ता मुकदमा दायर कर सकते हैं. जरूरी है कि यूजर का डेटा उनकी संपत्ति के तौर पर देखा जाए, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद यह होता नहीं दिख रहा है.
संवेदनशील डेटा एक अलग सेक्शन है, लेकिन बचेगा कैसे?
बीएन कृष्णा समिति ने अपनी जो रिपोर्ट दी थी उसमें उन्होंने पर्सनल जानकारी को अलग-अलग तरीके से वर्गीकृत किया था. संवेदनशील डेटा में जाति और धर्म को रखा गया है, जबकि नाम को साधारण कैटिगरी में रखा गया है. यह एक तरीके का लूपहोल है.
भारत एक ऐसा देश है, जहां आप नाम के साथ ही जाति व धर्म का सही अंदाजा लगा सकते हैं. इसके अलावा लैंगिक पहचान में भी नाम सहायक है. हालांकि एक तर्क है कि कुछ नाम लैंगिक भेद नहीं रखते. जैसे सुमन, नीरज जैसे नाम स्त्री-पुरुष दोनों में शामिल हैं. लेकिन ऐसे नाम कुछ ही हैं. इसकी सुरक्षा के लिए रिपोर्ट में अधिक व्याख्या नहीं है.
इसलिए पड़ रही है डेटा प्रोटेक्शन बिल की जरूरत
फोन नंबर को भी सुरक्षित रखना होगा
कंप्यूटर साइंस टेक्नॉलजी के इस दौर में फोन या मोबाइल नंबर सबसे छोटी लेकिन एक अहम कड़ी हैं. यह भले ही आपकी अपनी संपत्ति है, लेकिन इसकी जानकारी देने भर से आप अपनी सारी जानकारी साझा कर लेते हैं. कॉलर आइडेंटिटी बताने वाली साइट्स इसका सटीक उदाहरण हैं. आपके मोबाइल नंबर की जानकारी मात्र होने से आपकी उम्र, आपका पता और आपके लिंग की जानकारी मिल सकती है.
लिहाजा पहचान छिपा कर रखे गए डेटा के जरिए आसानी से संवेदनशील डेटा की जानकारी मिल सकती है. जरूरी है कि यूजर का डेटा उनकी संपत्ति के तौर पर देखा जाए, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद यह होता नहीं दिख रहा है. फिलहाल विधेयक को कानून बनते हुए देखते हैं. फिर देखेंगे कि इसमें क्या-क्या खास होगा?
आपकी निजी जानकारी की सुरक्षा कुछ इस तरह करेगा डेटा प्रोटेक्शन बिल