Bagor की हवेली में है सांस्कृतिक वैभव का अकूत खजाना

बागोर की हवेली मशहूर है अपनी लोक संस्कृति को बचाए रखने के लिए. पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साथ धरोहर नाम की एक संस्था जुड़ी हुई, जिसके कलाकार यहां कठपुतली नृत्य, थाली नृत्य, जनजातियों के सांस्कृतिक नृत्य प्रदर्शित करते हैं.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Sep 1, 2020, 03:57 PM IST
    • पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय है बागोर की हवेली
    • उदयपुर में पिछोला झील के किनारे आज भी हर शाम लगता है संस्कृति का जमघट
Bagor की हवेली में है सांस्कृतिक वैभव का अकूत खजाना

नई दिल्लीः रत्नगर्भा भारतभूमि के कण-कण में रत्न बिखरे पड़े हैं. कहीं कोई खंडहर इतिहास और विकास की कहानी सुनाता मिल जाएगा तो कहीं किसी दरिया की बहती धारा अपने किनारे पनपी सभ्यताओं की कथा कल-कल में समेटे दिखेगी. भारत में राजाओं-रजवाड़ों की विरासत संभार रहे राजस्थान में ऐसी कई कहानियां जो देश भर में ही नहीं विदेशियों तक को अपने आंगन में खींच लाती हैं.

बागोर की हवेली की दास्तान
केसरिया बालम की तान सुनाती इसी भूमि पर  झीलों की नगरी के नाम से मशहूर है उदयपुर. इसमें भी यहां बहती पिछोला झील और इसके किनारे बनी बागोर की हवेली का दास्तान तो अद्भुत है. जब सूरज ढलने की ओर हो.

दिन का उजाला रात के अंधेरे को जिम्मेदारी सौंप कर जा रहा हो तो इस समय रौशन हो उठती है बागोर की हवेली, जल उठते हैं इसके दीप और इसके आंगन में फिर जी उठती है राजस्थान की लोक संस्कृति

हवेली के बारे में
इतिहास के पन्नों को देखें तो बागोर की हवेली का निर्माण मेवाड़ के सुधी मंत्री अमर चंद बड़वा ने 18वीं शताब्दी में करवाया था. पिछोला झील के गंगोरी गेट के दाहिनी ओर यह हवेली शान से खड़ी है. स्थापत्य कला को देखें तो 100 से अधिक कमरों वाली इस हवेली में आज भी विरासत ने खुद को संभाल रखा है.

हालांकि इतिहासकार इसे लेकर एक मत नहीं हैं. एक दावा यह भी कहता है कि हवेली का निर्माण महाराणा संग्राम सिंह ने अपने पुत्र नाथ सिंह के लिए कराया था. 

नक्काशी दार. दीवारें, सजे हुए मेहराब, बड़ा स्नानघर और एक समृद्ध आंगन. इस हवेली की विशेषता है. कमरों के बड़े-बड़े झरोखे, राजस्थान के कई महलों की स्थापत्य कला से मेल खाते हैं. 

पेट्राड्यूरा का भी काम मोह लेता है मन
अमर चन्द बड़वा कि मेवाड़ राज्य के मंत्री थे जिन्होंने 1751 से 1778 तक का कार्यकाल देखा था.  जिसमें महाराणा प्रताप द्वितीय ,अरीसिंह ,राज सिंह द्वितीय और हमीर सिंह राज किया था. हवेली में कांच का कार्य पेट्राड्यूरा भी किया गया है. इनके अलावा इस हवेली में मेवाड़ के महाराणाओं और महारानियों की पेंटिंगें भी लगाई हुई है जो बहुत सुंदर दिखती है. 

हवेली की खासियत
राजा-महाराजाओं के भवन कई मामलों में खास होते हैं. बागोर की हवेली की खासियत इसकी रंगत है. प्रत्येक मौसम में यहां अलग-अलग रंग में रंगे कक्ष पर्यटकों को खूब लुभाते हैं. दरअसल, तकरीबन 300 साल पुरानी यह हवेली अब भी उसी कलेवर में है, जैसी यह अपने वैभव के समय हुआ करती थी.

इसके कमरों को आज भी मौसम के अनुकूल रंगत में सुंदर वस्त्रों से सजाया जाता है. इन कक्षों में सुसज्जित वस्त्रों का इस्तेमाल भी उसी के अनुरूप होता था, जैसे फाल्गुन माह में फगुनियां एवं श्रावण में लहरिया कपड़े आकर्षक लगते हैं.

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय
मेवाड़ रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह हवेली 'लोकनिर्माण विभाग' के अधिकार में चली गई. साल 1986 में तब प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने सांस्कृतिक विकास के लिए देश में सांस्कृतिक विकास केन्द्रों की स्थापना की और इसी क्रम में 'पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र' का मुख्यालय इस हवेली में बनाया गया. इसके बाद हवेली की साफ-सफाई हुई तो इसे इसका खोया वैभव वापस मिल गया. 

आज गूंजती है लोक कला की तान
अभी कोरोना संक्रमण के दौर में तो नहीं, लेकिन सामान्य दिनों में बागोर की हवेली मशहूर है अपनी लोक संस्कृति को बचाए रखने के लिए. पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साथ धरोहर नाम की एक संस्था जुड़ी हुई, जिसके कलाकार यहां कठपुतली नृत्य, थाली नृत्य, जनजातियों के सांस्कृतिक नृत्य प्रदर्शित करते हैं.

एक वृद्धा कलाकार अपने सिर पर सात गगरियां रखकर कांच के टुकड़ों पर नृत्य करती हैं. विदेशी कलाकार इसे देखकर दांतो तले अंगुली दबा लेते हैं. 

हवेली से मिले थे दो सौ साल पुराने भित्तिचित्र
इस हवेली में राजा रजवाड़े के जमाने के शतरंज, चौपड़, सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं, जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं. हवेली में स्वर्ण तथा अन्य बेशकीमती अलंकारों को रखने के लिए अलग से तहखाना बना हुआ था.

केन्द्र के अधिकारियों के अनुसार साफ-सफाई के दौरान हवेली के जनाना महल में दो सौ वर्ष पुराने मेवाड़ शैली के भित्तिचित्र मिले हैं, जो यहां के राजा-रजवाड़े के जमाने के रहन-सहन एवं ठाट-बाट को प्रदर्शित करते हैं. हवेली को आज म्यूजियम बना दिया गया है.

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