धरती के लिए बुरी खबर है बर्फ का रंग बदलना

इटली का एक ग्लेशियर रंग बदल रहा है और गुलाबी रंग की दिखाई देने वाली इस बर्फ ने पर्यावरण विशेषज्ञों के बीच रेड अलर्ट जैसे स्थिति पैदा कर दी है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 20, 2020, 05:17 PM IST
    • रंग बदलती बर्फ पर्यावरण के लिए खतरा
    • कई ग्लेशियर की बर्फ का रंग बदला
    • ज्यादा तेजी से पिछलेंगे ग्लेशियर
    • 5 फुट बढ़ जाएगा समुद्र का जल स्तर
धरती के लिए बुरी खबर है बर्फ का रंग बदलना

नई दिल्ली: यूरोप के सबसे ऊंचे पहाड़ों यानी इटालियन ऐल्प्स में एक ग्लेशियर की एल्गी यानि काई गुलाबी रंग की होती जा रही है और ये तेज़ी से सफेद बर्फ को ढकती जा रही है. इटली के सफेद से गुलाबी पड़ते ग्लेशियर को लेकर चिंता बढ़ रही है और इसका अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक गुलाबी ग्लेशियर का क्षेत्रफल बढ़ने से बर्फ के जल्दी पिघल जाने का ख़तरा बढ़ रहा है.

क्यों गुलाबी पड़ रहे हैं ग्लेशियर?
इटली के इंस्टीट्यूट ऑफ पोलर साइंसेज के शोधकर्ता बियाजियो डि मौरो ने उत्तरी इटली के प्रेसेना ग्लेशियर में गुलाबी पड़ती बर्फ की पुष्टि की है. हालांकि इस जगह हर साल इस मौसम में "वॉटरमेलन स्नो" यानि तरबूज़ जैसी दिखने वाली बर्फ कभी-कभी दिखाई पड़ती है लेकिन इस साल इसका रंग गहरा है और प्रसार बढ़ा है.
इसकी वजह है एक ख़ास एल्गी यानि शैवाल. जिसकी एक वजह है इस साल वसंत और गर्मियों में हुई कम बर्फबारी और उच्च वायुमंडलीय तापमान. ये दोनों वजहें शैवाल के बढ़ने के लिए सही वातावरण बनाती हैं.

गुलाबी बर्फ है धरती के लिए ख़तरे की घंटी
गहरे रंग के शैवाल का बढ़ना ग्लेशियरों के लिए बुरी ख़बर है क्योंकि इसके चलते बर्फ सूर्य की किरणों को अवशोषित कर लेती है और जल्दी पिघलने लगती है. आमतौर पर, सूर्य के 80 फीसदी से ज़्यादा रेडियेशन को बर्फ वायुमंडल में वापस फेंक देती है. लेकिन जैसे ही बर्फ का रंग बदलता है, ये गर्मी को प्रतिबिंबित करने की क्षमता खो देती है जिसका सीधा परिणाम ये कि ग्लेशियर तेजी से पिघलना शुरू कर देते हैं.

 ख़तरे में है इटली का स्वर्ग
इटली का प्रेसेना ग्लेशियर, जिसे अक्सर " giant of the alps " कहा जाता है समुद्र तल से 3,069 मीटर की ऊंचाई पर है और ये पर्यटकों का स्वर्ग कहा जाता है. बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से पिघलती बर्फ को रोकने के लिए एक स्थानीय स्की रिज़ॉर्ट ने 2008 में एक संरक्षण परियोजना शुरू की थी. ये लोग गर्मियों में ग्लेशियरों को ढंकने के लिए जियोटेक्सटाइल के विशाल टुकड़ों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें ठंडा रखते हैं और पिघलने से बचाते हैं.
इस एल्गी यानि शैवाल को पहले एंकिलोनिमा नॉर्डेंसकोइल्डि (एक ग्लेशियर अल्गा) माना रहा था लेकिन डि मौरो ने एक ट्वीट में ये स्पष्ट किया कि ये क्लैमाइडोमोनस निवालिस (एक हिम शैवाल) हो सकता है.

 स्विट्जरलैंड में बैंगनी बर्फ
इतालवी शोधकर्ता डि मौरो ने इससे पहले स्विट्जरलैंड में मोरटेरटस ग्लेशियर का अध्ययन किया था, जहां एंकिलोनिमा नॉर्डेंसकोइलडी नाम के शैवाल ने बर्फ को सफेद से बैंगनी रंग में बदल दिया. ये शैवाल ग्रीनलैंड, एंडीज़ पर्वत श्रंखला और हिमालय में भी पाया गया है.

हरे भी हुए ग्लेशियर!
मई के महीने में अंटार्कटिका में शैवाल के बढ़ते क्षेत्रफल के चलते बर्फ हरी पड़ गई थी, और इसका क्षेत्रफल इतना बड़ा था कि ये अंतरिक्ष से भी दिखाई पड़ रही थी. इसकी वजह भी क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग को ही माना गया था.

ग्लेशियर के लिए गुलाबी अलार्म!
पिछले साल, एक अध्ययन ने अनुमान लगाया था कि अगली सदी तक आल्प्स के दो तिहाई ग्लेशियरों की बर्फ पिघल जाएगी. जर्नल द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित एक शोध में चेतावनी दी गई है कि पर्वत श्रृंखला के 4,000 ग्लेशियरों में से आधी बर्फ 2050 तक पिघल जाएगी और दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन के हानिकारक प्रभावों की वजह से दो तिहाई ग्लेशियर 2100 तक पिघल गए होंगे. अब गुलाबी पड़ती बर्फ ने इस ख़तरे में और इज़ाफा कर दिया है.


शोधकर्ताओं की चेतावनी 5 फीट बढ़ जाएगा समुद्र का स्तर
जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अक्टूबर 2019 में, स्विटज़रलैंड में शोध में सामने आया कि ग्लेशियर पिछले पाँच सालों में 10% सिकुड़ गए हैं और ये तेज़ी भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है. ये एक ऐसी चौंकाने वाली दर है जिसे पिछली एक सदी से भी ज़्यादा समय में नहीं देखा गया. मार्च में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक अंटार्कटिका में विशाल डेनमैन ग्लेशियर पिछले 22 सालों में लगभग तीन मील पीछे हट गया है. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर ये पूरी तरह से पिघल जाता है, तो समुद्र का स्तर लगभग पांच फीट बढ़ जाएगा.

 

 

 

 

 

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