नई दिल्ली.  अमेरिका दुनिया का सबसे धनी देश है इसलिए कोरोना के खिलाफ जान की कीमत भी यहां सबसे ज्यादा लगाईं गई है. और ऐसा हुआ अमेरिका के सिएटल शहर के रहने वाले माइकल फ्लोर के साथ. माइकल फ्लोर को कोरोना ने ऐसा पकड़ा कि जकड़ ही लिया और वे 62 दिनों तक अस्पताल के मेहमान बने रहे.


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लोगों ने कहा कि चमत्कार हुआ


इस कोरोना मरीज के जीवन के बच जाने की उम्मीद उसके रिश्तेदारों को ज़रा कम ही लग रही थी. सत्तर साल के इस मरीज को लगातार दो महीनों से ज्यादा अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा जिसके कारण हर दिन उनके परिजनों को यही डर सताता रहता था कि कहीं माइकल का आज आखिरी दिन न हो. लेकिन बासठ दिन बाद जब माइकल ठीक हो कर घर लौटा तो उनके परिजनों समेत सभी पड़ौसियों ने उनका स्वागत किया और कहा कि ये चमत्कार हुआ है.


अस्पताल ने वसूली 'चमत्कार' की कीमत 


जिस अस्पताल में माइकल की परिचर्या चल रही थी वह एक स्वीडिश अस्पताल है. सिएटल में इसे बहुत महंगे अस्पतालों में एक माना जाता था. इसलिए भी माइकल के परिजन उम्मीद कर रहे थे कि आखिर में जब बिल बनेगा तो एक बड़े बिल का भुगतान करना होगा.  लेकिन बिल इतना बड़ा बनेगा इसकी आशंका किसी को न थी. 


एक सौ इक्यासी पन्नों का बिल भेजा 


माइकल और उसके परिजन हैरान रह गए जब हॉस्पिटल की ओर से उनको 181 पन्नों का बिल भेजा गया. इस बिल में भुगतान करने वाली कुल राशि थी 8.35 करोड़ की जो उनको चुकानी थी. हॉस्पिटल के इस बिल में करीब एक चौथाई खर्च दवाइयों का था अर्थात दो करोड़ की तो सिर्फ दवाइयां खाएं थी माइकल ने.


आईसीयू और वेंटिलेटर का खर्चा भी जुड़ा 


पौने दो सौ पेज के बिल में माइकल के द्वारा इस्तेमाल किये गए आईसीयू और वेंटिलेटर का भारी खर्चा भी जोड़ा गया था. 42 दिन की आईसीयू की मेहमाननवाजी का उनको चुकाना था 3.1 करोड़ रुपये और 29 दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने की कीमत चुकानी थी 62 लाख रुपये. 


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