Tana Bhagat: कौन हैं टाना भगत, जानिए उनकी ऐतिहासिक क्रांतिकारी दास्तान
बिरसा मुंडा के बाद आदिवासी जनजाति को संगठित करने वाले इस वीर जतरा उरांव का जन्म वर्तमान गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में 1888 में हुआ था. उन्होंने अपने समाज को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हजारों लोगों का बड़ा आंदोलन खड़ा किया. जानिए टाना भगत की ऐतिहासिक क्रांतिभरी दास्तान.
नई दिल्लीः टाना भगत, यह नाम सुनते हुए आज भले ही माथे पर अनजान होने के बल पड़ते हैं, लेकिन भारत की स्वतंत्रता के इतिहास का एक पूरा काल टाना भगत समुदाय को समर्पित है. महात्मा गांधी स्वाधीनता के जिन आंदोलनों के कारण आज पूजनीय हैं, टाना भगत समुदाय ने अहिंसा के उस पाठ को पहले ही पढ़ लिया था. आदिवासी क्रांति में बिरसा मुंडा काल के कुछ दशक बीतने के बाद टाना भगत समुदाय का समय शुरू होता है. जिसके प्रणेता थे जतरा उरांव.
1914 में ब्रिटिश सरकार का जिसने फुलाया दम
साल था 1914. तब के बिहार के छोटा नागपुर जिले में ब्रिटिश सरकार जंगलों में रहन वाले, फल-फूल और पशुधन से गुजारा करने वाली वन्य जनजाति के अहिंसक प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा. सैकड़ों आदिवासियों ने अंग्रेजी शासन के शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की और इससे भयभीत अंग्रेजों ने इनके अगुआ जतरा उरांव भगत को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया.
लेकिन जतरा उरांव के प्रभाव ऐसा था कि 26 हजार आंदोलन करने वाले घबराए नहीं बल्कि उनके अहिंसक प्रदर्शन और तेज हो गए.
1888 में जन्मे थे जतरा उरांव भगत
बिरसा मुंडा के बाद आदिवासी जनजाति को संगठित करने वाले इस वीर जतरा उरांव का जन्म वर्तमान गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में 1888 में हुआ था. किशोर से युवा होते जतरा ने महसूस किया कि उनके समाज में बेगारी है, और वे शोषण में पूरी तरह फंसे हुए हैं.
इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की तो उन्हें अपना समाज कई दुर्गुणों से भरा लगा, जिसमें पशु- बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन जैसे दुर्गुण हैं.
जतरा ने लोगों को संगठित कर आंदोलन खड़ा किया
इसके बाद उन्होंने पहले सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर लोगों को संगठित किया और उन्हें सही आदिवासी जीवन शैली अपनाने की ओर प्रेरित किया, जिसमें वे अपने जल-जंगल, जमीन, संस्कृति और यहां तक कि अपने श्रम का भी महत्व समझ सकें.
इस आंदोलन ने ऐसा विस्तृत स्वरूप लिया कि यह क्षेत्रीयता से मुक्त हो गया और फिर देश की मुख्य धारा की क्रांति में शामिल हो गया. यह था साल 1919 जब टाना भगतों का आंदोलन महात्मा गांधी के आंदोलनों से जा मिला और अहिंसा की विचारधार को एक बड़ा जनसमर्थन मिला.
बनाया नया पंथ और अहिंसक सेना में शामिल हुए हजारों लोग
जतरा भगत ने भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों के खिलाफ सात्विक एवं निडर जीवन की नयी शैली की अवधारणा रखी. उस शैली से शोषण और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए नई चेतना आदिवासी समाज में पनपने लगी. तब आंदोलन का राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट होने लगा. सात्विक जीवन के लिए एक नये पंथ पर चलने वाले हजारों आदिवासी जैसे सामंतों, साहुकारों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संगठित 'अहिंसक सेना' के सदस्य हो गए.
ब्रिटिश सरकार ने दी सजा
जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ- माल गुजारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और टैक्स नहीं देंगे. उसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह 'टाना भगत आंदोलन' के रूप में सुर्खियों में आ गया. अंग्रेज सरकार ने घबराकर जतरा उरांव को 1914 में गिरफ्तार कर लिया.
उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गयी. जेल से छूटने के बाद जतरा उरांव का अचानक देहांत हो गया, लेकिन उन्होंने आंदोलन की जो लौ जलाई थी, वह डिगी नहीं.
महात्मा गांधी के साथ जुड़ गया टाना भगत समुदाय
टाना भगत आंदोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण विकसित होता रहा और महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया. उन्होंने आजादी के लिए लड़ रही कांग्रेस में कदम मिलाकर साथ दिया और हर आंदोलन में अपनी बड़ी उपस्थिति हमेशा दर्ज कराई.
1922 के गया कांग्रेस सम्मेलन और 1923 के नागपुर सम्मेलन में बड़ी संख्या में टाना भगत शामिल हुए थे.
आज फिर आंदोलन के लिए मजबूर टाना भगत
1948 में देश की आजाद सरकार ने 'टाना भगत रैयत एग्रिकल्चरल लैंड रेस्टोरेशन एक्ट' पारित किया था. इस अधिनियम में 1913 से 1942 तक की अवधि में अंग्रेज सरकार की ओर से टाना भगतों की नीलाम की गई जमीन को वापस दिलाने का प्रावधान किया गया था. विडंबना है कि टाना भगत आज एक बार फिर अपनी मांगों के लिए आंदोलन करने को मजबूर हैं.
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