पश्चिम बंगाल में चुनावी शंखनाद हो गया है.यहां आठ चरणों में मतदान होगा. राज्य में 27 मार्च, एक अप्रैल, छह अप्रैल, दस अप्रैल, 17 अप्रैल, 22 अप्रैल, 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को अलग-अलग क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे. ऐसे में एक नजर उन नेताओं पर डाल लेते हैं जिन पर अपनी पार्टी को जीत दिलवाने का जिम्मा है.
बंगाल के इस चुनाव में जिस नेता की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वह शुवेंदु अधिकारी हैं. कुछ दिनों पहले तक ममता बनर्जी के दाएं हाथ माने जाने वाले और सूबे में ममता के बाद सबसे अधिक जनाधार वाले नेता शुवेंदु इस बार नंदीग्राम से मुख्यमंत्री के ही खिलाफ मैदान में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं. फिलहाल कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले शुवेंदु ने एक समय ममता को गद्दी दिलाई थी. इतना ही नहीं राज्य सरकार में कैबिनेट पद पर भी काबिज थे. इस बार बीजेपी की ढेर सारी उम्मीदें उन पर टिकी हुई हैं. वैसे भी अगर शुवेंदु का जादू चल गया तो बीजेपी का बंगाल की कुर्सी का सफर आसानी से तय हो जाएगा.
ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. मध्य प्रदेश से सियासत की शुरुआत करने वाले विजयवर्गीय बीजेपी के कद्दावर नेता हैं. उन पर पार्टी ने जब भी भरोसा वह उस पर खरे उतरे हैं. इससे पहले हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जोरदार जीत का श्रेय इन्ही को जाता है. कैलाश विजयवर्गीय बेहतरीन रणनीतिकार हैं. पार्टी ने जब इनको बंगाल का प्रभार दिया तो लोकसभा में 18 सीट जितवाकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि वो किसी बाजीगर से कम नहीं हैं. अभी ये पार्टी में महासचिव के पद पद कार्यरत हैं. फिलहाल ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो विधानसभा में बीजेपी को कुर्सी दिलाने में कामयाब होते हैं या नहीं.
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी 2001 से लगातार विधायक हैं. जमीन से जुड़े पार्थ चटर्जी ममता के सबसे खास सिपहसालार हैं. तमाम तरह के उतार चढ़ाव के बावजूद पार्थ दीदी के साथ चट्टान बनकर खड़े हैं. अभी चुनावी मौसम में पार्थ चटर्जी को सीबीआई ने समन भी भेजा था. उस दौरान यह आरोप लगा कि केंद्र सरकार जानबूझकर उन्हें परेशान कर रही है. बेहला पश्चिम सीट से विधायक पार्थ चटर्जी ने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है. उनकी गिनती अच्छे रणनीतिकारों में होती है. फिलहाल अगर पार्थ चटर्जी का मैजिक चलता है तो दीदी की राह आसान रहेगी.
अगर हम बंगाल में कांग्रेस की बात करें तो वह लेफ्ट के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. साथ ही ज्यादातर जगहों पर नेता अधीर रंजन दिखाई पड़ते हैं लेकिन उनसे इतर एक और नेता का नाम राजनीति के जानकारों के जुबान पर है. वो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं वर्तमान राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधत्व करने वाले प्रदीप भट्टाचार्य का है. संसद में वह बंगाल से जुड़े विषयों को बखूबी उठाते हैं. साथ ही राज्य में चुनावी रणनीति बनाने वाले चुनिंदा लोगों में शुमार हैं. वैसे भी 2016 में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी थी. लेकिन इस बार ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कांग्रेस का प्रदर्शन बंगाल में कैसा रहता है. कुछ हद तक इसका दारोमदार प्रदीप भट्टाचार्य पर है.
34 साल लगातार पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने और पिछले एक दशक से सत्ता से बाहर सीपीएम को इस चुनाव में नेता मोहम्मद सलीम से बहुत उम्मीद है. इस उम्मीद को पूरा करने के लिए सलीम भी पुरजोर तैयारी के साथ चुनावी अभियान में लगे हुए हैं. छात्र राजनीति के जरिए मुख्य धारा की राजनीति में कदम रखने वाले सीपीएम के सीनियर नेता मोहम्मद सलीम के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें रायगंज संसदीय सीट से हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि इस बार उनकी तैयारी जोर शोर से चल रही है. फिलहाल लेफ्ट के पास ऐसे नेता का होना सकारात्मकता की तरफ इशारा करता है.
शुवेंदु के तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के बाद इस विधानसभा चुनाव का दारोमदार पार्टी के वरिष्ठ नेता सौगत राय पर आ गया है. ममता दीदी के भरोसेमंद साथियों में शुमार सौगत राय अभी दमदम लोकसभा से सांसद हैं. उनके पास न सिर्फ पांच छह दशकों का लंबा राजनीतिक अनुभव है, बल्कि पढ़े लिखे नेताओं में उनका नाम लिया जाता है. वह कुशल रणनीतिकार हैं और लंबे समय से चुनावी जीत हासिल करते रहे हैं. इस बार चुनावी मौसम में सौगत राय की तमाम जगह मौजूदगी यह साबित कर रही है कि दीदी ने उन पर भरोसा जताया है. वैसे जानकारों का कहना है कि अगर सौगत का जादू चल गया तो बंगाल में ममता का कुर्सी पर कब्जा बरकरार रहेगा.