'रंगरलियों का भवन', महल में प्रेम मंदिर नाम का 'खास कमरा', स्वीमिंग पूल में प्रेमिकाओं संग नहाता था महाराजा

पटियाला घराने के महाराजार भूपिंदर से जुड़ी हुई कई दिलचस्प कहानियां प्रचलित हैं. पटियाला और कपूरथला राजघरानों में मंत्री रह चुके दीवान जरमनी दास ने महाराजाओं को लेकर कई कहानियां लिखी हैं. इनमें भूपिंदर सिंह से भी जुड़ा किस्सा है. यह किस्सा दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा में बताया गया है.

पटियाला घराने के महाराजार भूपिंदर से जुड़ी हुई कई दिलचस्प कहानियां प्रचलित हैं. पटियाला और कपूरथला राजघरानों में मंत्री रह चुके दीवान जरमनी दास ने महाराजाओं को लेकर कई कहानियां लिखी हैं. इनमें भूपिंदर सिंह से भी जुड़ा किस्सा है. यह किस्सा दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा में बताया गया है. जरमनी दास को पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में योगदा के कारण वेटिकन और फ्रांस, स्पेन, मोरक्को, मिस्र और कई अन्य देशों की सरकारों द्वारा सम्मानित किया गया था.

 

1 /5

जवानी के दिनों में भूपिंदर सिंह ने अपने महल में 'रंगरलियों का महल' बनवाया था. यह महल वारादरी बाग के नजदीक बना हुआ था. इस महल की दीवारें 30 फुट ऊंची और घमावदार बनी हुई हैं. यूकेलिप्टस जैसे पेड़ों ने इस महल को बाहरी लोगों की निगाह से छुपाकर रखा हुआ था. इस महल में अंग्रेजी ढंग से सजे हुए कई सोने के कमरे हैं, आगे बरामदे बने हैं. 

2 /5

इस महल में एक खास कमरा था जो 'प्रेम-मंदिर' कहलाता था. यह कमरा सिर्फ राजा के लिए रिजर्व था. इस कमरे में सैंकड़ों तैलचित्र लगे हुए थे जिनमें शारीरिक संबंधों को दर्शाया गया था. इस कमरे के फर्श पर हीरे-मोती और कीमती जवाहरात बिखरे हुए थे.   

3 /5

महल के बाहर महाराजा ने एक 'स्वीमिंग पूल' बनवाया था. यह स्वीमिंग पूल इतना बड़ा था कि इसमें एक साथ 150 लोग नहा सकते थे. भूपिंदर सिंह बड़ी आलीशान पार्टियां देने के लिए मशहूर थे. उन पार्टियों में शरीक होने के लिए महाराजा अपने चेहती महिलाओं और प्रेमिकाओं को बुलाया करते थे.   

4 /5

इनमें से कई महिलाएं महाराजा के साथ स्वीमिंग पूल में नहाती थीं और तैरती थीं. गरमी के मौसम में इस स्वीमिंग पूल को नहर और बावली के पानी से भर दिया जाता था. पानी गर्म होता तो उसे बर्फ के जरिए ठंडा किया जाता था. 

5 /5

'रंगरलियों' में शरीक होने वाली महारानियों और रानियों की गाड़ियों की एंट्री खास महल के अंदर तक थी. इन कार्यक्रमों में विदेशी और गैर-हिंदुस्तानी लोग बेहद कम बुलाए जाते थे.