गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे. इनका जन्म पंजाब के अमृतसर में वैसाख कृष्ण पंचमी में हुआ था. गुरु तेग बहादुर सिंह का स्थान अद्वितीय है. उन्होंने धर्म और मानवीय सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने के लिए अपने प्राण दे दिए थे. इनका बचपन का नाम त्यागमल था. गुरु तेग बहादुर ने केवल 14 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध में अपनी वीरता प्रमाणित कर दी थी. इस बात से खुश होकर उनके पिता ने उनका नाम बदल दिया था.
गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे. इनका जन्म पंजाब के अमृतसर में वैसाख कृष्ण पंचमी में हुआ था. गुरु तेग बहादुर सिंह का स्थान अद्वितीय है. उन्होंने धर्म और मानवीय सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने के लिए अपने प्राण दे दिए थे. इनका बचपन का नाम त्यागमल था. गुरु तेग बहादुर ने केवल 14 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध में अपनी वीरता प्रमाणित कर दी थी. इस बात से खुश होकर उनके पिता ने उनका नाम बदल दिया था.
गुरु तेग बहादुर जी को सिखों के नौवें गुरु के रूप में जाना जाता है. इनका जन्म 21 अप्रैल को हुआ था. वे सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी के पुत्र हैं.
गुरु तेग बहादुर जी हरगोबिंद साहिब जी के सबसे छोटे बेटे थे. उन्होंने मुगलों से हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए मुगल बादशाह औरंगजेब से टक्कर ली थी.
गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम को कबूल करने से साफ इंकार कर दिया था जिसकी वजह से मुगल शासक औरंगजेब ने उनका सिर कटवा दिया था. गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम को कबूलने की जगह अपना सर कटवाना सही समझा और औरंगजेब के आगे सिर नहीं झुकाया.
गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम न कबूलने की वजह से 24 नवंबर 1675 ईसवी में मुगल शासक औरंगजेब की ओर से सिर कलम करवा दिया था.
जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश धड़ से अलग किया गया था उस स्थान पर आज के समय में गुरुद्वारा शीश गंज साहिब मौजूद है. गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा गुरु तेग बहादुर जी के शीश को आनंदपुर गंज में अंतिम श्रद्धांजलि दी गई थी.