गौतमीपुत्र शातकर्णि दक्षिणापथ के बेहद प्रभावशाली शासक थे. उन्होंने विदेशी शक जाति के बर्बर अत्याचार से भारत भूमि की रक्षा की थी. उन्होंने 26 वर्ष तक शासन किया. उनके शासनकाल का अधिकतर हिस्सा युद्धों में ही बीता था.


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तीन समुद्रों के अधिपति थे शातकर्णि महाराज
गौतमीपुत्र शातकर्णि ने 'त्रि-समुद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की थी.  जिससे यह पता चलता है कि उनका साम्राज्य पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक फैला हुआ था. गौतमी पुत्र शातकर्णि का शासन ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) जैसे प्रदेशों तक फैला हुआ था. उनके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था.



 



 


 


 


24 साल तक किया शासन
गौतमी पुत्र शातकर्णि का शासन काल 106 से 130 ईस्वी का माना जाता है. उन्होंने कुल 24 साल तक शासन किया. वह सातवाहन वंश के 23 वें शासक थे. वह अपने पूर्ववर्ती सातवाहन शासकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रतिभाशाली थे. उनके पिता का नाम शिवस्वाति और माता का नाम गौतमी बलश्री था.
गौतमी पुत्र शातकर्णी ने ही सबसे पहले अपने नाम के साथ माता के नाम का उल्लेख शुरु किया. यह नारीशक्ति को सम्मान देने का उनका तरीका था. जिसके बाद सातवाहन वंश के शासकों के नाम के साथ उनकी माता का नाम भी जोड़ा जाने लगा.
गौतमी पुत्र शातकर्णी के समय को सातवाहनों का पुनरुद्धार काल कहा गया. उनके शासनकाल में सातवाहनों ने अपनी खोई हुई शक्ति एवं प्रतिष्ठा फिर से हासिल कर ली. उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी. भारतीय इतिहास में सातवाहन वंश ने 300 वर्ष(60ई.पू से 240 ईस्वी) तक शासन किया था. शातकर्णि का वंश इतिहास में आंध्र वंश के नाम से जाना जाता है.


 



 


 


 


कई विदेशी आक्रमणकारियों के दांत खट्टे किए शातकर्णि महाराज ने
गौतमी पुत्र शातकर्णि के साम्राज्य और उनकी उपलब्धियों के बारे में उनकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से जानकारी प्राप्त होती है. गौतमी पुत्र शातकर्णी के तीन अभिलेख प्राप्त होते हैं. जिसमें से दो नासिक से तथा एक कार्ले से मिला है. नासिक का पहला लेख उसके शासन काल के 18वें तथा दूसरा 24 वें साल में तैयार किया गया.  कार्ले का लेख भी उसके शासन काल के 18 वें वर्ष का ही है. इन अभिलेखों के अलावा गौतमी पुत्र शातकर्णी के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं. जो उनके गौरव की कहानी बताते हैं.



शातकर्णि महाराज ने  शक, यवन तथा पह्लव जैसी विदेशी शक्तियों का विनाश किया. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक राजा नहपान को पराजित करना और उसके राज्य पर कब्जा करना था.
नहपान के साथ गौतमीपुत्र शातकर्णि का युद्ध उनके शासनकाल के 17वें साल में हुआ. इस युद्ध में शातकर्णि महाराज ने नहपान का विनाश करके अनूप, सौराष्ट्र और अवन्ति जैसे क्षेत्रों को हासिल किया.
नासिक से शातकर्णि काल के सिक्के प्राप्त होते हैं, जो मूल रुप से नहपान के सिक्के थे. जिन्हें गौतमीपुत्र ने दोबारा अपनी मुहर डालकर ढलवाया था.



 



 


 


 


 


बेहद प्रजापालक थे गौतमीपुत्र शातकर्णि
गौतमी पुत्र शातकर्णि ने नासिक के समीप वेणाकटक नगर बसाया. वह ब्राह्मण थे. लेकिन उन्होंने दूसरे धर्मों का भी संरक्षण किया. उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को अजकालकीम(महाराष्ट्र) तथा करजक (महाराष्ट्र) जैसे क्षेत्र प्रदान किये. गौतमी पुत्र शातकर्णी को नासिक प्रशस्ति में “वेदों का आश्रय” (आगमाननिलय) तथा “अद्वितीय ब्राह्मण” (एकब्राह्मण) के नाम से पुकारा गया है. उन्हें “द्विजों” तथा “द्विजेतर” जातियों के कुलों का वर्धन करने वाला ( द्विजावरकुटुंब विवधन ) कहा गया है.



गौतमीपुत्र शातकर्णि अपनी प्रजा के  बीच बेहद लोकप्रिय राजा थे. उनके जीवन काल में ही उनपर गाथाएं और कविताएं लिख दी गई थीं.


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