माघ मेला कल्पवास, जो पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों की कमाई का जरिया बना
अंग्रेजी शासन काल में प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले को बाधित करने की कोशिश की गई थी. इस दौरान पहले तो माघ मेले को बंद कराने की ही कोशिश की गई. दरअसल अंग्रेजों में 1857 की क्रांति के बाद एक भय बैठ गया था कि भारतीय कहीं भी ऐसी एक जगह अगर बिना किसी पूर्व सूचना के इकट्ठे हो सकते हैं तो वह कुछ भी कर सकते हैं.
नई दिल्लीः हिंदी महीने में माघ मास आते ही उत्तर भारतीय घरों में अलग ही धार्मिक और चहल-पहल का माहौल होता है. अगर आपके घर में बुजुर्ग हैं तो उनकी बातों में अक्सर गंगा नहाने का जिक्र होगा. दरअसल गंगा नहाने के लिए माघ की अमावस्या और पूर्णिमा साल के दो खास मौके होते हैं. इन दोनों मौकों पर हरिद्वार में गंगा किनारे और उत्तर प्रदेश में प्रयाग के संगम तट पर लोग पहुंचते हैं.
इन तिथियों को खास स्नान, लोग करते हैं कल्पवास
यह तो हुई दो दिनों की बात, लेकिन माघ मास में गंगा स्नान इससे भी कहीं अधिक का महत्व रखता आया है. युगों से चली आ रही इस परंपरा में संगम तट पर एक महीने तक रहकर लोग ध्यान-साधना किया करते थे. इसे कल्पवास कहा जाता था.
इस दौरान माघ महीने की कृष्ण पक्ष की तिथियों से लेकर शुक्ल पक्ष की पूर्णिंमा तक पौष पूर्णिमा, माघ कृष्ण प्रतिपदा, माघ कृष्ण पंचमी, माघ दशमी. मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, भीष्म अष्टमी और माघ पूर्णिमा हुआ करता है.
पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक का समय खास
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को माघ पूर्णिमा कहते हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस तिथि पर स्नान, दान और जप को बहुत पुण्य फलदायी बताया गया है. माघ माह में चलने वाला यह स्नान पौष मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर माघ पूर्णिमा तक होता है.
तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास करके त्रिवेणी स्नान करने का अंतिम दिन माघ पूर्णिमा ही है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माघ स्नान करने वाले मनुष्यों पर भगवान विष्णु प्रसन्न रहते हैं तथा उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान और मोक्ष प्रदान करते हैं. इस दिन चंद्रमा का खास व्रत भी होता है, जिसके जरिए विभिन्न उपायों के जरिए सुख-शांति पाई जा सकती है.
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माघ पूर्णिमा का महत्व
मघा नक्षत्र के नाम से माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति होती है. मान्यता है कि माघ माह में देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्य रूप धारण करके प्रयाग में स्नान, दान और जप करते हैं. इसलिए कहा जाता है कि इस दिन प्रयाग में गंगा स्नान करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में लिखे कथनों के अनुसार यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है.
ब्रिटिशकाल में माघ मेला
अंग्रेजी शासन काल में प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले को बाधित करने की कोशिश की गई थी. इस दौरान पहले तो माघ मेले को बंद कराने की ही कोशिश की गई. दरअसल अंग्रेजों में 1857 की क्रांति के बाद एक भय बैठ गया था कि भारतीय कहीं भी ऐसी एक जगह अगर बिना किसी पूर्व सूचना के इकट्ठे हो सकते हैं तो वह कुछ भी कर सकते हैं.
दरअसल, अंग्रेजों को यह बात आश्चर्य करती थी कि बिना किसी घोषणा के और बिना कोई नोटिस जैसे आदेश-आज्ञा जारी हुए एक ही जगह पर लोग कैसे हजारों लाखों की संख्या में इकट्ठे हो सकते हैं?
गजट में मिलता है कमाई का जिक्र
ब्रिटिश काल के गजट में इसका तारीख वार जिक्र मिलता है कि अंग्रेजों ने माघ मेले समेत हर स्नान आदि पर नजर रखनी शुरू की. इसके साथ ही अंग्रेज सरकार इसके लिए शुल्क भी वसूलने लगी थी. गजट के मुताबिक, सरकार ने ध्यान दिया कि यह तो सरकारी कोष का एक बड़ा जरिया हो सकता है.
इसके लिए शुल्क से हुई आय को खर्च हुए धन से मिलाया जाता था और ब्रितानी हुकूमत ने खर्चों के ऑडिट की पुख्ता व्यवस्था भी की. दस्तावेजों के अनुसार, ब्रिटिश सरकार कुंभ के भी खर्च का ऑडिट करवाती थी और खर्च पर निगाह रखने के लिए अफसरों का पूरा पैनल होता था. यह पैनल सीधे उत्तर पश्चिम प्रांत के सचिव के आधीन हुआ करता था.
मुगल काल में मेले पर लगा था कर
ऐसा नहीं है कि सिर्फ अंग्रेजों ने ही माघ मेले की बहती गंगा में हाथ धोए. इससे बहुत पहले मुगल भी ऐसा कर चुके थे. तीर्थ यात्रा महसूल तो अकबर के जमाने तक था, जिसे जजिया कहते थे. अकबर ने इसे हटा दिया था, लेकिन औरंगजेब ने दोबारा ऐसे ही कर लगाए. इस तरह मुगल लंबे समय तक माघ मेला, कुंभ मेला और गंगा स्नान जैसे मौकों से अपना खजाना भरते आ रहे थे.
इसका सबसे बड़ा सबूत प्रयागराज के प्रयागवालों के रूप में मिलता है. प्रयागवाल वे ही लोग हैं जिनके जरिए ही मेला भरा जाता है. मुगलकाल में प्रयागवाल संगम किनारे मेले के लिए मिली जमीन के बदले लगान दिया करते थे.
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