अयोध्याः अधिकमास को जब श्रीहरि ने अपना स्वयं का पुरुषोत्तम नाम प्रदान किया तो यह महीना समय चक्र में तीर्थ बन गया. इस तरह चौमासे के दौरान जब श्रीहरि विश्राम कर रहे होते हैं तब अधिक मास का होना खुद उनकी उपस्थिति का होना माना जाता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


ऐसे में श्रद्धालु हरिनाम जप, एकादशअक्षरी ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करते हैं जो विशेष फलदायी होता है. विष्णु मंदिरों के दर्शनों की महिमा भी अनंत है. श्रीहरि और उनके अवतारों को समर्पित मंदिर भी विशेष फल प्रदान करने वाले होते हैं. 


कीजिए कनक भवन अयोध्या के दर्शन
विष्णु मंदिर दर्शनों की इसी कड़ी में जी हिंदुस्तान आपको अयोध्या स्थित कनक भवन मंदिर के दर्शन करा रहा है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह स्थल त्रेता और द्वापर युग दोनों की ही चेतना को खुद में संजोए हुए है. श्रीहरि के दोनों ही अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण से इस मंदिर की महिमा जुड़ी हुई है. 




अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि के उत्तरपूर्व में स्थित एक दिव्य महल नुमा आकृति में स्थित है कनकभवन मंदिर.  यह मंदिर अपनी कलाकृति के लिए प्रसिद्ध है. पास ही हनुमान गढ़ी मंदिर है, जिससे यहां पहुंचना सहज है. मंदिर में श्रीराम अपने अनुजों और पत्नी देवी सीता के साथ विराजमान हैं.



इस मंदिर में श्रीराम और माता सीता स्वर्ण मुकुट पहने विराजित हैं. इसे सोने का घर भी कहा जाता है. यह मंदिर कुछ सौ दो सौ या हजार साल ही नहीं, बल्कि पांच हजार साल पुरानी सभ्यता का प्रतीक है. 


समय-समय पर हुआ जीर्णोद्धार
कनक भवन में जिस स्वरूप के दर्शन होते हैं साल 1891 में इसका पुनर्निर्माण 1891 में ओरछा की रानी ने कराया था. इसके पहले 2000 साल पहले सम्राट विक्रमादित्य ने इसका स्वरूप सुधरवाया था. जो कि हजारों साल तक यूं ही बिना किसी क्षति के खड़ा रहा.



समय के साथ आक्रंताओं के आक्रमण के कारण इसे भी कुछ हानि पहुंची, जिसे ही बाद में महारानी ओरछा ने बनवाया. विक्रमादित्य से भी करीब 3500 साल पहले खुद देवकी नंदन श्रीकृष्ण इसका जीर्णोद्धार करा चुके थे. वस्तुतः यह महल महारानी कैकेयी की इच्छा पर राजा दशरथ ने ही बनवाया था. इसकी दिव्य छटा देखकर महारानी कैकेयी ने इसे नाम दिया कनक भवन. 


यह भी पढ़िएः इस वजह से भगवान राम की शासन व्यवस्था पूरी सृष्टि के लिए आदर्श है



यह है कथा
रानी कैकेयी ने कनक भवन को माता सीता को मुंह दिखाई में दिया था. त्रेता युग में मिथिला में धनुष भंग के बाद जब राम-जानकी का विवाह किया जाना सुनिश्चित हो गया. तब उस रात प्रभु यह सोचने लगे कि अब जनकदुलारी अयोध्या जाएंगी. ऐसे में उनके लिए वहां अति सुंदर भवन होना चाहिए.



जिस समय श्रीराम के मन में यह कामना उठी, उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयी को स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पड़ा. 


माता सीता को मुंह दिखाई में मिला था कनक भवन
महारानी ने महाराज दशरथ से अपना सपना सुनाकर कहा, हे महाराज. मेरी इच्छा है कि आप मेरे स्वप्न के समान सुंदर वही दिव्य महल बनवा दीजिए. दशरथ जी के आग्रह पर देवशिल्पी विश्वकर्मा भवन बनाने के लिए अयोध्या आए. उन्होंने अति सुंदर निर्माण किया.



महारानी कैकेयी ने इसे कनक भवन का नाम दिया. फिर जब श्रीराम-सीता विवाह कर वापस आए तो माता कैकेयी ने वह भवन अपनी बहू सीता को मुंह-दिखाई में दिया. विवाह के बाद राम-सीता इसी भवन में रहने लगे. इसमें असंख्य दुर्लभ रत्न जड़े हुए थे. यह श्रीराम सीता का अन्तःपुर था. 


यह भी पढ़िएः  छत्तीसगढ़ का प्रयाग है राजिम तीर्थ, मलमास में यहां कीजिए राजीव लोचन के दर्शन


जब श्रीकृष्ण ने स्थापित किया कनक भवन मंदिर
मान्यता है कि द्वापर में श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी सहित जब अयोध्या आए थे तो एक युग पहले का कनक भवन टूट-फूट कर एक ऊंचा टीला बन चुका था. भगवान श्रीकृष्ण ने उस टीले पर परम आनंद का अनुभव किया. 




उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि इसी स्थान पर कनक भवन व्यवस्थित था. योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योग-बल द्वारा उस टीले से श्रीसीताराम के प्राचीन विग्रहों को प्राप्त कर वहां स्थापित कर दिया. दोनों विग्रह अनुपम और विलक्षण हैं. इनका दर्शन करते ही लोग मंत्रमुग्ध होकर अपनी सुध-बुध भूल जाते हैं. 


यह भी पढ़िएः मलमास विशेषः दर्शन करते ही मन-मंदिर में प्रकाश भर देते हैं चंबा के लक्ष्मीनारायण


देश और दुनिया की हर एक खबर अलग नजरिए के साथ और लाइव टीवी होगा आपकी मुट्ठी में. डाउनलोड करिए ज़ी हिंदुस्तान ऐप. जो आपको हर हलचल से खबरदार रखेगा...


नीचे के लिंक्स पर क्लिक करके डाउनलोड करें-

Android Link -