छत्तीसगढ़ का प्रयाग है राजिम तीर्थ, मलमास में यहां कीजिए राजीव लोचन के दर्शन

छत्तीसगढ़ के राजिम में  राजीव लोचन मंदिर, गरियाबंद के उत्तर-पूर्व में महानदी के दाहिने किनारे पर स्थित है. यहां महानदी से पैरी ओर सोंढ़ूर नाम की इसकी सहायक नदियां इससे मिलती हैं. इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 25, 2020, 02:48 PM IST
    • मंदिर में भगवान राम ने की थी अपने ईष्ट महादेव की पूजा
    • तीन नदियों के संगम के कारण प्रयाग जैसा पावन है राजिम तीर्थ
छत्तीसगढ़ का प्रयाग है राजिम तीर्थ, मलमास में यहां कीजिए राजीव लोचन के दर्शन

नई दिल्लीः अधिकमास में भगवान विष्णु के मंदिरों के दर्शन को निकला जी हिंदुस्तान इस कड़ी में आपको छत्तीसगढ़ ले चलता है. प्रदेश की राजधानी रायपुर मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर स्थित है राजिम तीर्थ. इस तीर्थ की मान्यता इतनी अधिक है कि इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहते हैं.

इस स्थान को पवित्र और प्रातः स्मरणीय बनाता है, यहां स्थापित राजीव लोचन मंदिर. इसके गर्भगृह में सकल जग के स्वामी श्री हरि विष्णु विराजते हैं. 

 

राजीव लोचन मंदिर, गरियाबंद के उत्तर-पूर्व में महानदी के दाहिने किनारे पर स्थित है. यहां महानदी से पैरी ओर सोंढ़ूर नाम की इसकी सहायक नदियां इससे मिलती हैं. महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है. इसलिए इसे प्रयाग की मान्यता भी दी जाती है. 

यह है मंदिर की मान्यता
संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने ईष्ट महादेव व कुल देवता सूर्यदेव की पूजा की थी. इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है.

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी. इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा. यहां स्थित संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है. जो कि मोक्ष का मार्ग बनते हैं. 

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विशिष्ट है मंदिर की संरचना
प्रतिवर्ष यहां पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है. राजीवलोचन मंदिर एक विशाल आयताकार प्राकार के मध्य में बनाया गया है. भू-विन्यास योजना में यह मंदिर-महामण्डप, अन्तराल, गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ, इन चार विशिष्ट अंगों में विभक्त है. नागर शैली के प्राचीन मंदिरों की तरह महामण्डप के प्रवेश-द्वार की अन्त: भित्ति (भीतरी भाग) कल्पलता से अलंकृत हैं.

लता की आकृतियों के बीच-बीच में विहार करते यक्षों की विभिन्न भाव-भंगिमाओं तथा मुद्राओं में मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं. कहीं-कहीं पक्षियों के भी मोहक मुद्राएं उकेरी गई हैं. यहां से कल्पलता अभिकल्प के बाँध को प्रारम्भ किया गया है. उसके नीचे हरि हंस का मोती चुगते हुए अत्यन्त ही मनोमोहक रूप उकेरा गया है. 

प्राचीन कला की कौशलता से भरा है मंदिर
यह मंदिर बाहर-भीतरी दोनों ओर से प्राचीन मूर्ति कौशल की सुंदरता से भरा पड़ा है. यहा खजुराहो जैसी प्रतिमाएं नहीं हैं, लेकिन अलंकरण उनसे मिलता -जुलता है. मंदिर की मूर्तियों में श्रृंगार की प्रधानता है. इसके साथ ही दीवारों पर पौराणिक आख्यान भी खुदे हुए हैं.

कहीं श्रीराम-लक्ष्मण की धनुर्धर जोड़ी है, कहीं नृत्य शिव, कहीं पर नृसिंह और वराह अवतारों का चित्रण भी है. एक भित्ति स्तंभ पर मकर आसीन मां गंगा विराजित हैं तो दूसरे पर कूर्मासीन माता यमुना भी हैं. 

मंदिर में हैं कई रहस्य
भगवान की मूर्ति यहां काले पत्थर की है. मंदिर में चारों कोनों से भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं. यहां सुबह श्रीहरि के बालरूप के दर्शन होते हैं, दोपहर में युवा और रात में वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं. मंदिर में स्थित शिवलिंग में सिक्का डालने पर वह बिल्कुल नीचे चला जाता है और उसकी प्रतिध्वनि भी सुनाई देती है.

माना जाता है कि श्रीहरि यहां विश्राम के लिए आते हैं. बताते हैं कि उनके लिए लगाए गए बिस्तर आदि पर सुबह सिलवट पड़ी होती है और भोग की थाली में उंगलियों के निशान भी मिलते हैं. 

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