मुफ्त में मिलेगा शादी में 100 किलो चावल और 10 किलो दाल, इस राज्य में बड़ी घोषणा
मुफ्त में चावल और दाल मिलने से सामूहिक भोज के लिए कर्ज न लेना पड़ेगा. इसके अलावा महाजनों और साहूकारों से लिया गया कर्ज भी वापस नहीं करना होगा.
रांची: आदिवासियों को राहत देने के लिए नई योजना का ऐलान किया गया है. जनजातीय समुदाय के परिवारों को शादी और श्राद्धकर्म में 100 किलो चावल और 10 किलोग्राम दाल मुफ्त में मिलेगी. ताकि सामूहिक भोज के लिए आदिवासियों को कर्ज न लेना पड़े. इसके अलावा महाजनों और साहूकारों से लिया गया कर्ज भी वापस नहीं करना होगा. झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने ये बड़ी घोषणाएं की हैं.
बैंक दें युवाओं को कर्ज
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को बैंकों से कर्ज के बंटवारे में युवाओं की अनदेखी पर भी चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि सुस्त बैंकिंग कार्यप्रणाली के कारण आज युवा कर्ज के अभाव में हुनमंद होने के बावजूद मजदूरी करने को विवश हैं.
हेमंत सोरेन को भी लोन नहीं देंगे बैंक
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने मंगलवार को यहां झारखंड जनजातीय महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कहा, ‘‘मैं अपने समाज को जानता हूं, अपने राज्य के लोगों को समझता हूं. मुझे पता है कि बैंक से लोन लेना मेरे युवा साथियों के लिए कितना कठिनाई पूर्ण रहता है. देश में बैंकों की स्थिति तो यह है कि हेमन्त सोरेन भी अगर लोन लेने जाए तो उसे पहली दफा में नकार देंगे. हमारे युवा हुनरमंद होते हुए भी मजदूरी करने को विवश हैं.’’
गाड़ी का मालिक बन रहा है
सोरेन ने कहा, ‘‘हमने स्थिति को बदलने की ठानी है. अब गाड़ी चलाने जानने वाला गाड़ी का मालिक बन रहा है. हम अपने आदिवासी लोगों को साहूकारों महाजनों के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं. मिशन मोड में कार्यक्रम चलाकर हम किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा रहे हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए राशि उपलब्ध करवाने को लेकर गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लेकर आ रहे हैं.’’
हेमंत सोरेन ने कहा कि जनजातीय समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, जिसे कोई झुका नहीं सकता, कोई डरा नहीं सकता और न ही कोई हरा सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो आदिवासियों को बचाना होगा, जल, जंगल, जीव-जंतु सभी अपने आप बच जाएंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं?’’
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