कटे होंठ और घुमावदार कान जैसी विकृति को ठीक करेगी बकरी की हड्डी, डॉक्टरों को मिली बड़ी सफलता

पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा संचालित एक मेडिकल कॉलेज के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने बकरी की कान की हड्डियों का उपयोग कर कम से कम 25 मनुष्यों में शारीरिक विकृतियों को ठीक करने में सफलता पाई है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 15, 2022, 05:51 PM IST
  • डॉक्टरों को मिली बड़ी सफलता
  • कटे होंठ का बकरी की हड्डी से होगा इलाज
कटे होंठ और घुमावदार कान जैसी विकृति को ठीक करेगी बकरी की हड्डी, डॉक्टरों को मिली बड़ी सफलता

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा संचालित एक मेडिकल कॉलेज के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने बकरी की कान की हड्डियों का उपयोग कर कम से कम 25 मनुष्यों में शारीरिक विकृतियों को ठीक करने में सफलता पाई है. आर जी कार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के चिकित्सकों और वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल एंड फिशरी साइंसेज के वैज्ञानिकों ने मानव की कान के बाहरी हिस्से में विकृति (माइक्रोटिया), कटे होंठ और दुर्घटना से हुई अन्य शारीरिक विकृतियों को ठीक करने के लिए बकरी की कान की हड्डियों (उपास्थि) का उपयोग किया.

कटे होठ होंगे ठीक

आर जी कार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो डॉ रूप नारायण भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘कटे होंठ और घुमावदार कान जैसी विकृतियों को ठीक कराने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत पड़ती है. यह प्रक्रिया न केवल खर्चीली है बल्कि मुश्किल भी है. ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें मानव शरीर प्लास्टिक और सिलकॉन प्रतिरोपण को लंबे समय तक सहेज कर नहीं रख पाते हैं.’’

बहुत कम खर्च में होगा इलाज

उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में इलाज का खर्च बहुत कम आएगा. पशु चिकित्सा सर्जन डॉ शमित नंदी और माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ सिद्धार्थ जोरदार ने कहा कि मानव शरीर के लिए सिलकॉन और प्लास्टिक प्रतिरोपण के आसानी से उपलब्ध एक विकल्प की 2013 से ही तलाश की जा रही थी. अनुसंधान के लिए परियोजना को केंद्र के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने वित्त उपलब्ध कराया.

पैसे की तंगी के कारण रह जाती है विकृतियां

बता दें कि आए दिन ऐसा देखने को मिलता है कि पैदा होते ही कुछ बच्चों के होठ कटे होते हैं या कान मुड़े होते हैं. इन बच्चों के इलाज के लिए परिजनों की ओर से लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं. कई बार ऐसा होता है कि पैसे के अभाव में माता-पिता बच्चों का इलाज नहीं करवा पाते हैं. जिसके कारण उम्र भर उनके बच्चों में ये विकृतियां रह जाती है.

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