नई दिल्ली: भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए सीटों की मारामारी को खत्म करने के लिए देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने नई कोशिश शुरू की है. देश के बड़े निजी हॉस्पिटल्स के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में मीटिंग की है. इस मीटिंग में देश 62 अस्पतालों ने हिस्सा लिया.
बाहर जाने को मजबूर हो जाते हैं मेडिकल के स्टूडेंट्स
देश से कई स्टूडेंट्स सरकारी मेडिकल कालेज में सीटें ना मिलने और प्राइवेट मेडिकल कालेज की ज्यादा फीस या वहां पढ़ाई का अच्छा इंतजाम ना होने की वजह से हर वर्ष बाहर जाने को मजबूर हो जाते हैं. लिहाजा देश में ही किफायती रेट्स पर मेडिकल की पढ़ाई हो सके, इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों से रिक्वेस्ट की जा रही है.
इस मीटिंग में जसलोक, ब्रिज कैंडी, कोकिला बेन, सत्य साई हॉस्पिटल्स,अपोलो, मेदांता और अमृता अस्पताल जैसे अस्पताल शामिल हुए.
क्या वजह है कि सरकार ने ये कदम उठाया है?
- विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई आसान और किफायती
- NEET का एंट्रेंस मुश्किल
- नीट के लिए 8 लाख स्टूडेंट करते हैं आवेदन
- कुल मेडिकल सीटें 1 लाख से भी कम
- सरकारी मेडिकल सीटें 50 हजार से कुछ ज्यादा
हर साल भारत के कई स्टूडेंट्स चीन रुस और यूक्रेन एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए चले जाते हैं, क्योंकि भारत के प्राइवेट मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की फीस और एडमिशन की डोनेशन मिलाकर खर्च 50 लाख से 1 करोड़ तक भी आ सकता है. जबकि यूक्रेन में रहना और पढ़ाई मिलाकर ये काम 35 लाख में हो सकता है.
हालांकि भारत में प्राइवेट कालेज में सरकारी कोटे की सीटें होती हैं, लेकिन उनमें एडमिशन इतना आसान नहीं है और मैनेजमेंट कोटे की सीटों की फीस बहुत ज्यादा है. देश के बड़े प्राइवेट अस्पताल भी अब मेडिकल कॉलेज खोल सकेंगे. इस कदम से भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स को आने वाले वर्षों में राहत हो सकती है.
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