Whats App Artificaial Intelligence: पिछले कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर कई बड़ी खबरें आ रही हैं और इसे ही भविष्य माना जा रहा है. माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और बिंग ने पिछले दिनों अपने चैटबॉट्स लॉन्च किये जिसने न सिर्फ लोगों को हैरान किया बल्कि आने वाले समय में क्रांतिकारी बदलावों की झलक भी दिखा दी. हालांकि अब एक नई तकनीक का इस्तेमाल होने वाला है जिसके जरिये अब Whats app आपकी आंखों का टेस्ट कर उसमे होने वाली बीमारी का पता लगाएगा.
हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में G20 की बैठक आयोजित की गई जिसमें इस नई तकनीक को प्रदर्शित किया गया था. इस तकनीक को बनाने वाले स्टार्ट अप लागी (एआई) का दावा है कि उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और व्हाट्सऐप पर आधारित एक सिस्टम तैयार किया है जिसका इस्तेमाल कर के आंखों में होने वाली बीमारी का पता लगाया जा सकता है.
अब तक 1100 लोगों का किया जा चुका है टेस्ट
इस स्टार्टअप के को-फाउंडर प्रियरंजन घोष ने दावा किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर लोग आंख की परेशानी से जूझते हैं और सही समय में डॉक्टर या अस्पताल की मदद नहीं मिल पाने की वजह से स्थिति गंभीर हो जाती है. ऐसे में अगर कोई मोतियाबिंद से परेशान हैं या उसके बड़े-बुजर्गों को आंखों से जुड़ी परेशानी है तो अब बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं है. क्योंकि व्हाट्सऐप के जरिए अब इन बीमारियों का पता लगाया जा सकता है.
प्रियरंजन घोष ने कहा कि इसे 2021 में बनाया गया है और अभी यह विदिशा में चल रहा है. अब तक इससे 1100 लोगों की जांच की जा चुकी है. यह व्हाट्सऐप के माध्यम से सरल तरीके से जांच करता है. मरीज की आंख की फोटो खींचते ही मोतियाबिंद के बारे में पता चल जायेगा. इसके आधार पर मरीज डॉक्टर के पास जाकर सलाह ले सकता है.
व्हाट्सएप के साथ जोड़ा गया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
वहीं इस स्टार्टअप की डायरेक्टर निवेदिता तिवारी ने बताया कि यह एप्लीकेशन व्हाट्सऐप के साथ जोड़ी गई है, क्योंकि व्हाट्सऐप लगभग सबके पास है. आगे चलकर एप्लीकेशन (ऐप्स) भी लांच किया जाएगा. व्हाट्सऐप में एक नंबर क्रिएट किया है, जिसे कॉन्टैक्ट कहते हैं. इस कॉन्टैक्ट में हमने अपनी तकनीक को इंटीग्रेट किया है, जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कैटरेक्ट स्क्रीनिंग सॉल्यूशन कहा जाता है. इसे व्हाट्सऐप में जोड़कर अपने यूजर को कॉन्टैक्ट भेजते हैं.
कॉन्टैक्ट रिसीव होते ही व्यक्ति को बेसिक जानकारी पूछी जाती है. व्हाट्सऐप बॉट के माध्यम से नाम, जेंडर अन्य चीजें पूछी जाती है. यह सूचना देने के बाद आंखों की तस्वीर लेनी होती है. तस्वीर अच्छी हो इसके लिए उन्हें गाइड लाईन देते हैं. व्यक्ति अपना फोटो बॉट में भेज देता है. तस्वीर रिसीव होते ही बॉट रियल टाइम में बता देता है कि व्यक्ति को मोतियाबिंद है या नहीं. मोतियाबिंद ज्यादा मेच्योर है या कम या फिर मोतियाबिंद है या नहीं. इसके बाद रोगी डाक्टर से दवा और सर्जरी करवा सकते हैं.
जांच में है 91 प्रतिशत की एक्यूरेसी
यह पूरी प्रक्रिया ऑटोमेटिक है. यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक होती है. एआई तकनीक इंसान के सेंस को कॉपी करती है. इस तकनीक को बनाने के लिए हेल्थ केयर डेटा का प्रयोग करते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को तैयार करते हैं कि तस्वीर देख बता दे कि मरीज सकारात्मक है या नकारात्मक. यह जो परीक्षण का तरीका वो डाक्टर की तरह होता है. यह सब कुछ आटोमेटिक है. इसका ट्रायल हमने करीब 100 मरीजों में किया जिसमें 91 फीसद एक्यूरेसी आई है. फिर मध्यप्रदेश के विदिशा में तकरीबन 50 लोगों को प्रशिक्षित किया है.
अभी मध्यप्रदेश में चल रहा है इसका पायलट प्रोजेक्ट
अभी यह मध्यप्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है. जी 20 से साकारात्मक परिणाम आए हैं. जल्द ही इसका प्रयोग यूपी में होते हुए दिखेगा. यह बहुत सरल तरीके से प्रयोग कर सकते हैं. इसके परिणाम अच्छे होंगे. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व्हाट्सऐप द्वारा संचालित है. इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर नटेरन ब्लॉक में शुरू किया गया है. उसका बेसिक उद्देश्य है कि लोगो को जागरूक किया जाए. इस ब्लॉक में लोगों को जागरूक किया जा रहा है. यहां से ट्रैक होने के बाद रोगी का आपरेशन कराया जाता है. यह रिमोट इलाके के लिए काफी अच्छी चीज है.
वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉक्टर संजय कुमार विश्नोई का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व्हाट्सऐप एक अच्छी प्रक्रिया है. खासकर रिमोट इलाकों के लिए यह सुविधा अच्छी है. यह डेटाबेस है. दूर दराज इलाकों जहां सुविधा नहीं मिल पा रही है वहां के लिए यह बहुत कारगर है.
इसे भी पढ़ें- Discovery: वैज्ञानिकों ने की बड़ी खोज, प्रग्नेंसी से बचने के लिये अब पुरुषों को नहीं करानी होगी नसबंदी