जम्मू-कश्मीर के मार्तंड सूर्य मंदिर में 700 साल बाद हुई पूजा, हुआ हनुमान चालीसा का पाठ

भारतीय सनातन परंपरा के गौरवों में से एक मार्तंड सूर्य मंदिर भारत में स्थित प्राचीन सूर्य मंदिरों में से एक है. आज ये मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि लगभग 700 सालों के बाद इस मंदिर में पूजा-अर्चना की गई. अनदेखी के कारण खंडहर में तब्दील हो चुके इस मंदिर को फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. रविवार को मार्तंड सूर्य मंदिर में नवग्रह अष्टमंगलम पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी भाग लिया. उन्होंने इस पूजा में शामिल होने के साथ यह भी कहा कि सरकार प्राचीन स्मारकों के रख-रखाव और उनके बचाव को लेकर प्रतिबद्ध है. मार्तंड सूर्य मंदिर जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है. बात करें इस मंदिर के इतिहास की, तो इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था. इसके बाद सन् 1389 और 1413 के बीच कई बार इसे नष्ट करने का प्रयास किया गया. इस मंदिर की कथाएँ महाभारत काल में पांडवों से भी जुड़ी हुई हैं. सूर्य मंदिर के आस-पास 80 से भी अधिक कई छोटे-छोटे मंदिर भी हुआ करते थे, लेकिन कई मुगल आक्रान्ताओं के हमले के बाद अब उन मंदिरों के अवशेष ही शेष बचे हैं. बताते हैं कि 15वीं शताब्दी में इस्लामी आक्रांताओं ने इस मंदिर को पूरी तरह से तबाह करने का निश्चय कर लिया था. लगभग के साल तक एक बड़ी फ़ौज इस मंदिर को तोड़ने में ही लगी रही, लेकिन यह मंदिर इतना मजबूत है कि आज भी इसके अवशेष काफी मजबूती से खड़े हुए हैं. इस मंदिर से मात्र तीन किलोमीटर कीई दूरी पर अनंतनाग के मट्टन में एक शिव मन्दिर स्थित है, जहां आज भी पूजा-अर्चना की जाती है. यहाँ जल के कुंड में शिवलिंग स्थित है. 15वीं शताब्दी के दौरान इस मन्दिर को पूरी तरह से नष्ट करने की सलाह एक ‘सूफी फकीर’ ने दी थी, जिसका नाम था मीर मुहम्मद हमदानी. वो कश्मीर के उस इलाके में रह रहे लोगों का धर्मांतरण कराकर उन्हें इस्लामी बनाना चाहता था. उस समय के बाद कई भूकंप आए, जिससे भी मंदिर को काफी क्षति पहुंची. हाल ही में इस मन्दिर में कई लोगों ने एक साथ पहुंचकर हनुमान चालीसा का पाठ भी किया था, जिसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. गौर करें तो इस मंदिर को साल 201 में आई हैदर फिल्म में भी देखा गया था. इस मंदिर में ही हैदर फिल्म के 'बिस्मिल' गाने को फिल्माया गया था. अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) की देख-रेख में है और लगातार इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है.

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