नई दिल्लीः ब्यूनस आयर्स में जैसे ही महिलाओं की मांग पूरी किए जाने का ऐलान हुआ, दशकों पुराने आंदोलन की जीत हुई. सीनेट के बाहर खड़ी हजारों महिलाओं ने पूरे उल्लास के साथ जश्न मनाया. आपस में गले मिलकर खुशियां बांटीं. आप जब जानेंगे इस खुशी के पीछे का राज़, जब आप इनकी मांग सुनेंगे तो आपको भी हैरानी होगी.


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बदलेंगे रूढ़िवादी लैटिन अमेरिकी देश?


क्या आप जानते हैं कि दुनिया के आधुनिक कहे जाने देशों में ही महिलाओं के सबसे पुराने और मूल अधिकारों को रौंदा जा रहा है? आप हैरान होंगे कि कई देशों में महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार नहीं है.


अबॉर्शन कराने वाली महिलाओं और उन लोगों को सज़ा दी जाती है जो गर्भपात करने में मदद करते हैं. चुकि वहां अबॉर्शन एक क्रिमिनल अपराध की श्रेणी में है, इसलिए महिलाओं को इसके लिए जेल तक की हवा भी खानी पड़ती है.



लैटिन अमेरिका और कैरेबिएन क्षेत्र के ज्यादातर देशों में अबॉर्शन को लेकर बेहद सख्त क़ानून हैं. 33 देशों में क्यूबा, उरुग्वे और गुयाना को छोड़कर बाक़ी देशों में गर्भपात पर पूरी तरह प्रतिबंध है.


इधर यूरोपीय देश पोलैंड में पिछले दिनों हंगामा बरपा, हज़ारों-लाखों लोग ख़ासकर महिलाएं, सड़कों पर उतर कर विरोध की आवाज़ बुलंद करने लगीं,...क्योंकि कैथोलिक बहुल पोलैंड में गर्भपात पर पहले से ही चल रहे प्रतिबंध को और सख्त कर दिया गया था.


इसके अलावा ब्राजील, चिली, आयरलैंड, नाइजीरिया, ईरान और फिलिपिन्स जैसे देशों में भी अबॉर्शन की इजाज़त बेहद सीमित है.


अबॉर्शन क़ानून पर अर्जेंटीना ने रचा नया इतिहास


कई देशों के साथ ही अर्जेंटीना में भी महिलाएं अबॉर्शन के अधिकारों के लिए आंदोलन कर रही थीं. उनकी ये मांग दशकों पुरानी रही है. जब अर्जेंटीना की राजधानी व्यूनस आयर्स में सीनेट ने गर्भपात को वैध बनाने वाला एक बिल पास कर दिया तो इसका ऐलान होते ही बाहर खड़ी हज़ारों महिलाएं झूम उठीं.



विधेयक के पक्ष में 38 जबकि विपक्ष में 29 वोट पड़े। आर्जेंटीन एक कैथोलिक देश है इसलिए यहां चर्च इस कानून का विरोध कर रहा था।


अर्जेंटीना बनेगा बदलाव का अगुवा!
सीनेट के पास किए गए विधेयक में 14 सप्ताह तक की गर्भवती महिला को गर्भपात का क़ानूनी अधिकार दिया गया है. यही नहीं, बलात्कार या गर्भवती महिला की जान को खतरा होने की स्थति में 14 सप्ताह के बाद भी गर्भपात को वैध करार दिया गया है.



अब अर्जेंटीना में पास हुए इस नए विधेयक के बाद धार्मिक रूप से बेहद रूढ़िवादी कई लैटिन अमेरिकी देशों पर महिलाओं की वर्षों पुरानी मांग को लेकर दबाव बढ़ेगा. महिलाओं की मां और उनके आंदोलन को बल मिलेगा, इससे आने वाले दिनों में बदलाव की नई इबारत लिखी जा सकती है.


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