नई दिल्ली: साल 2022 अगर याद किया जायेगा तो जिक्र रूस यूक्रेन का भी होगा और चीन (China) और ताइवान (Taiwan) का भी होगा. चीन जो हमेशा किसी न किसी फैसले से चर्चाओं में रहता है. आज एक बार फिर से चीन के साथ ताइवान का विवाद सुर्खियों में है.
ताइवान के साथ खड़ा है अमेरिका
विवाद तो साल 1949 से चला आ रहा जब चीन का गृह युद्ध समाप्त हुआ था, पर विवाद समय समय पर मामला शांत होता चला गया. आपको बता दें कि अमेरिका से नैन्सी पेलोसी ताइवान के दौरे पर लगभग 25 साल बाद अमेरिका का कोई इतना बड़ा नेता ताइवान के दौरे पर हैं और इसी दौरे से चीन की बौखलाहट बढ़ गई है.
इसी की वजह से चीन ने ताइवान के बॉर्डर पर युद्धाभ्यास किया पर नैन्सी ने अमेरिका का रुख साफ कर दिया और कहा है कि 'हम (अमेरिका) ताइवान का भी साथ में देंगे.' पेलोसी ने ये भी कहा कि हमारे कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल की यात्रा ताइवान के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता को दिखाती है.
क्या चीन सिर्फ माहौल बना रहा?
हालांकि रक्षा मामलों में जानकारों का ये मानना है की चीन सिर्फ माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है. चीन ने न सिर्फ मिलिट्री ड्रिल की धमकी दी, बल्की इसका बुरा नतीजा भुगतने की चेतावनी भी दी. आपको बता दें कि पेलोसी से पहले जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पूर्वी एशिया की अपनी पहली यात्रा पर गए थे, तो उस समय ही ये साफ कर दिया था कि चीन की तरफ से ताइवान पर होने वाले किसी हमले में अमेरिका उसकी रक्षा करेगा.
हलांकि चीन की तरफ से ताइवान को हर तरफ से घेरने की कोशिश शुरू हो चुकी है. प्राथमिकता चीन की ये होगी कि युद्ध हवा से ही हो, क्योंकि चीन हमेशा दावा करता है कि उसकी वायुसेना किसी भी युद्ध में दुश्मन पर भारी पड़ेगी.
विशेषज्ञों का भी मानना है कि चीन के पास हवा में दुश्मन पर भारी पड़ने का मौका है, चीन की वायुसेना के पास करीब 1600 लड़ाकू जहाज है जबकि ताइवान के पास सिर्फ 300 ही जहाज हैं, जबकि अमेरिका की बात करें तो ये आकड़ा 2700 है.
ताइवान ने अमेरिका के साथ डील की!
लेकिन ये सभी फाइटर जेट्स चीन को पूरे क्षेत्र में घेरने की ताकत रखते हैं. एरियल वॉर में चीन ने रूम की असफलताओं से सीख ली है, आपके बता दें कि ताइवान ने अमेरिका के साथ डील की है. जिसके तहत उसे खतरनाक स्टिंगर एंटी-एयरक्राफ्ट और पैट्रियट मिसाइल डिफेंस बैटरी हासिल हुई है.
हालांकि ये देखना अब बाकी है कि अमेरिका के तल्ख तेवर के सामने चीन का अब आगे क्या रूख रहता है, लेकिन एक बात तो साफ है कि चीन को रूस का साथ मिलने के बाद कुछ बड़ा करने की फिराक में चीन आगे बढ़ सकती है.
दूसरी ओर जर्मनी ने ताइवान के साथ का ऐलान करते हुए ये साफ कर दिया और चीन को ये संकेत दे दिया कि ताइवान अकेला नहीं है. ताइवान के साथ अमेरिका और जर्मनी का साथ है, अगर चीन कोई भी चालाखी करने की कोशिश करता है तो न अमेरिका चुप बैठेगा न ही जर्मनी..
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