लद्दाख की चोटियों पर फहरा तिरंगा, तो अब बौखलाहट में क्या कर सकता है चीन? जानिए
चीन (China) को एक बात समझ आने लगी है कि भारत (India) से पंगा लेना हर बार महंगा ही पड़ता है. ऐसे में जब लद्दाख (Laddakh) की प्रमुख चोटियों पर लगातार तिरंगा फहर रहा है, तो अब चालबाज चीन बौखलाहट में कौन सा कदम उठाने वाला है? इस खास रिपोर्ट में देखिए..
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख स्थित पैंगोंग झील (Pangong Lake) के दक्षिणी किनारे की प्रमुख चोटियों पर भारतीय सेना की मोर्चेबंदी के बाद अब इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस यानी ITBP के कम-से-कम 30 जवानों ने कुछ और नए और अहम मोर्चों पर झंडा गाड़ दिया है. आईटीबीपी के जवानों ने रणनीतिक रूप से बेहद अहम ब्लैक टॉप एरिया के पास नई जगहों पर अपनी मोर्चेबंदी कर ली है.
ITBP के जवानों ने चीन को रुलाया
भारत के लिए यह कितनी बड़ी कामयाबी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तवितक नियंत्रण रेखा पर तैनात चीनी सैनिकों की हर हरकत इन आईटीबीपी जवानों की साफ-साफ पकड़ में आती रहेगी. लेकिन एक के बाद एक झटके के बाद चीन (China) का बौखलाना वाजिब है. ऐसे में आपको ये जानना जरूरी है कि अब चीन क्या कर सकता है?
अब क्या कर सकता है चीन?
पहला विकल्प- ऊंचाई पर मोर्चा जमाए भारतीय सैनिकों को हटाने की कोशिश
अब समझिए इसका नतीजा क्या हो सकता है. भारत-चीन के सैनिकों में संघर्ष हो सकता है. भारत मजबूत स्थिति में है क्योंकि भारतीय सैनिक ऊंचाई पर हैं. ऊंचाई पर बैठे जवानों का बल 10 गुना अधिक होता है.
दूसरा विकल्प- LAC के दूसरे इलाकों पर मोर्चा खोलने की करेगा भरपूर कोशिश
LAC पर किसी दूसरे इलाके में नया मोर्चा खोल सकता है. इस खतरे को देखते हुए लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक भारतीय सेना अलर्ट पर है.
नहीं भूलना चाहिए 1962 का युद्ध
निश्चित तौर पर साल 1962 की जंग भारत को नहीं भूलनी चाहिए. क्योंकि चीन (China) के रग-रग में पीठ पर छुरा घोंपना समाया हुआ है. आपको उस वक्त के हालात से रूबरू करवा देते हैं. ये युद्ध लद्दाख और North-East Frontier Agency यानी आज के अरुणाचल प्रदेश में McMahon Line पर हुआ था.
ये जंग 20 अक्टूबर 1962-21 नवंबर 1962 तक चली थी. चीन ने सैनिकों की 3 रेजिमेंट तैनात की थी. भारत ने सैनिकों की 2 डिवीज़न ही तैनात की थी. भारत को चीन से युद्ध की संभावना नहीं लग रही थी, लेकिन चीन (China) ने भारत की टेलीफोन लाइन को काट दिया था. इस युद्ध में भारत ने 43 हज़ार वर्ग किलोमीटर का इलाका खोया. यानी 1962 युद्ध के बाद लद्दाख में अक्साई चिन पर चीन ने कब्जा कर लिया.
अब आया चीन पहाड़ के नीचे!
पैंगोंग के दक्षिण किनारे से लेकर रेज़ांग ला तक भारत का नियंत्रण है. मतलब LAC पर पैट्रोलिंग प्वाइंट 27 से 31 के बीच भारत का नियंत्रण है. रेकिन ला और रेज़ांग ला हिल, 'मगर हिल' और गुरुंग हिल पर भी हिन्दुस्ताव का नियंत्रण है. ब्लैक टॉप पर चीन की चाल नाकाम करने से हिन्दुस्तान की ताकत को समझना आसान हो सकता है.
Black Top का रणनीति महत्व
चुशूल सेक्टर पर नजर रखी जा सकती है, इस इलाके में भारतीय सैन्य ठिकाने हैं. ये इलाका समतल है बड़े टैंक आसानी तैनात हो सकते हैं. चीन को फिंगर एरिया, देप्सांग, गोगरा से हटा भी सकते हैं.
आईटीबीपी (ITBP) जवान फुरचुक ला पास से गुजरते हुए ब्लैक टॉप तक पहुंचे. फुरचुक ला पास 4,994 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. अब तक आईटीबीपी की तैनाती सिर्फ पेंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर स्थित फिंगर 2 और फिंगर 3 एरिया के पास धान सिंह पोस्ट पर ही हुआ करती थी. कुल मिलाकर देखें तो अब हेलमेट टॉप, ब्लैक टॉप और येलो बंप पर आर्मी, आईटीबीपी और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की मोर्चेबंदी हो गई है और उन्हें इन सभी जगहों से सीधे चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के दक्षिणी छोर पर स्थित पोस्ट 4280 के साथ, पश्चिमी छोर पर स्थित डिगिंग एरिया और चुती चामला पर चल रही हर गतिविधी साफ-साफ दिख रही है.
आईटीबीपी ने एलएसी के पास अब तक 39 से ज्यादा जगहों पर स्थाई मोर्चेबंदी कर ली है, जहां इसके जवान डटे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक आईटीबीपी के जवान अच्छी-खासी संख्या में चुशूल और तारा बॉर्डर आउटपोस्ट्स के पास तैनात हैं. PLA के पोस्टों के ऊपर चोटियां पहले खाली थीं और उन पर किसी का कब्जा नहीं था. अब भारतीय सैनिकों ने यहां किलेबंदी कर दी है.
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पैंगोंग झील के दक्षिण छोर पर स्थित एक पहाड़ी पर चीन ने कब्जे की कोशिश की थी, मगर भारतीय जवानों ने नाकाम कर दी. उसके बाद 31 अगस्त को चीन ने उकसावे की कार्रवाई की और 1 सितंबर को फिर से घुसपैठ की कोशिश की, लेकिन चीन हर बार नाकाम रहा. उसकी नापाक हरकतों को देखते हुए अब भारतीय सेना ने इस इलाके में मोर्चेबंदी कर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या चीन इन सभी झटके पर क्या नई चालबाजी अपनाता है.
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