नई दिल्ली: भारत के सैनिक अब पैंगोंग Lake के दक्षिणी किनारे पर ऊंची चोटियों पर बैठे हैं, जबकि चीन की सेना निचले इलाकों में है. लेकिन ये चीन की मुश्किलों की शुरुआत भर है. क्योंकि अब भारतीय सेना की पहली माउंटेन स्ट्राइक कोर लद्दाख में मोर्चे पर पहुंच गई है. इस कोर का गठन पहाड़ी इलाकों में चीन से लड़ाई के लिए ही किया गया है.
चीन के खिलाफ हमले के लिए तैयार है 'ब्रह्मास्त्र'
17 माउंटेन स्ट्राइक कोर को ब्रह्मास्त्र कोर का नाम दिया गया है. और अब चीन के खिलाफ ये ब्रह्मास्त्र हमले के लिए तैयार है. इसमें अत्याधुनिक अल्ट्रा लाइट वेट एम-ट्रिपल सेवन हॉविट्ज़र तोपें हैं जिन्हें शिनूक हेलीकॉप्टर के ज़रिए पहाड़ों पर तैनात किया जा सकता है. माउंटेन स्ट्राइक कोर के पास दुश्मन से लड़ने का हर घातक हथियार मौजूद है.
क्या है इस स्ट्राइक कोर की सबसे बड़ी खासियत?
इस कोर को इंडिपेंडेंट बैटल ग्रुप्स यानी आईबीजी में बांटा गया है और हर ग्रुप में 6 बटालियन तक हो सकती हैं जिसमें तोपखाना, टैंक, मिसाइल यूनिट्स, और सिग्नल जैसे सारे हथियार और सैन्य साजो सामान होते हैं और यही इस स्ट्राइक कोर की सबसे बड़ी खासियत है.
स्ट्राइक कोर का मतलब दुश्मन की सीमा की अंदर घुसकर ज्यादा से ज्यादा इलाके पर कब्जा करना होता है, ताकि बातचीत के समय अपना पलड़ा भारी रहे. इसके लिए फायरपावर होती है, माउंटेन स्ट्राइक कोर के पास टैंक, हेली, तोपखाना भी है.
इन हथियारों ने ब्रह्मास्त्र कोर को तेज़ी से दुश्मन के इलाक़े में घुसने की रफ्तार दी है. पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे के आसपास की ज़मीन ज्यादा समतल और चौड़ी है. इस इलाके में भारतीय सेना की हवाई पट्टी समेत कई जरूरी Military Infrastructure है और ये इलाका इतना समतल और चौड़ा है कि यहां बड़े टैंक और तोपों को आसानी से तैनात किया जा सकता है. ऐसी जगहों पर ब्रह्मास्त्र कोर लड़ाई जीतने की ताकत रखती है.
जब बेहद खामोशी से किया था बड़ा युद्धाभ्यास
तीन स्ट्राइक कोर है, तीनो पाकिस्तान के लिए तैयार किया गया है. दशक की शुरुआत में पहली बार चीन के खिलाफ सोचा गया और माउंटेन स्ट्राइक कोर के आधे हिस्से को सिक्किम और लद्दाख के लिए तैयार किया गया. तीन साल पहले ब्रह्मास्त्र कोर ने लद्दाख में बेहद खामोशी से एक बड़ा युद्धाभ्यास किया था और खुद को इस इलाके में लड़ने के लिए तैयार किया. यानी ये कोर अपने दुश्मन और युद्धभूमि दोनों को अच्छी तरह से पहचानती है.
1962 की गलतियां नहीं दोहराना चाहता है भारत
कुल मिलाकर भारत वर्ष 1962 में की गई गलतियों को नहीं दोहराना चाहता इसलिए भारत ने चीन की चाल को भांपते हुए पहले ही उन इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली, जिन पर चीन की नज़र थी. इस समय LAC पर तनाव बहुत बढ़ चुका है और चीन यहां पर स्थिति बदलने के लिए कोई भी कार्रवाई कर सकता है. लेकिन यहां भारतीय सेना का ब्रह्मास्त्र अब चीन का इंतजार कर रहा है.
सितंबर में लद्दाख का मौसम तेजी से बदलता है. ठंडी हवाओं की रफ्तार तेजी से बढ़ गई है, सर्दियां शुरु हो जाएंगी. सैनिक कार्रवाई मु्श्किल होगी. स्पेशल फोर्स और 17 माउंटेन स्ट्राइक कोर पर होगी.
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चीन की सेना की कमज़ोरियों के बारे में पूरी दुनिया को पता है. गलवान घाटी और पैंगोंग Lake इलाके में भारतीय जवानों की वीरता देखकर अब चीन को इसका एहसास भी हो गया होगा. असल में चीन को तो पहले से ही इस बात का अंदाजा है कि खासतौर पर पहाड़ों पर होने वाली लड़ाई में चीन, भारत के सामने टिक नहीं पाएगा. चीन के सैन्य विशेषज्ञ भी ये मानते हैं कि भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका से जो हथियार खरीदे, उससे भारत की ताकत और बढ़ गई है.
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