डरावनी जानकारी: धरती के फेफड़े `अमेज़न जंगल` में कोरोना की घुसपैठ
ये खबर वाकई हर किसी के लिए काफी डरावनी है, क्योंकि धरती का फेफड़ा कहे जाने वाले अमेज़न जंगल में कोरोना वायरस ने घुसपैठ को अंजाम दे दिया है. इसी जंगल से पूरी दुनिया को तकरीबन 20 फीसदी ऑक्सीजन मिलता है...
नई दिल्ली: दुनिया का सबसे बड़ा रेन फॉरेस्ट 'अमेज़न जंगल' है. एक से बढ़कर एक खतरनाक जानवरों की मौजूदगी की वजह से अमेज़न के जंगल को दुनिया का सबसे डरावना जंगल कहा जाता है तो दूसरी तरफ दुनिया को लगभग 20 फीसदी ऑक्सीजन भी इसी जंगल से मिलता है. इसलिए अमेज़न जंगल को धरती का फेफड़ा भी कहते हैं, लेकिन इंसानों के फेफड़े पर अटैक करने वाले कोरोना वायरस ने अबकी बार धरती के फेफड़े पर हमला बोल दिया है.
अमेज़न जंगल में कोरोना वायरस की घुसपैठ
5.5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर में फैले अमेज़न जंगल में कोरोना वायरस घुसपैठ कर चुका है. दक्षिण अमेरिका महाद्वीप का अमेज़न जंगल 9 देशों में पसरा हुआ है. इस जंगल का करीब 60 फीसदी हिस्सा ब्राजील, 13 फीसदी पेरू, 10 फीसदी कोलंबिया और बाकी का हिस्सा इक्वाडॉर, गुयाना, वेनेज़ुएला, बोलिविया, सूरीनाम और फ्रेंच गुयाना में है.
आप ये सोच रहे होंगे कि कहीं बदलते वक्त के साथ कोरोना वायरस ने पेड़-पौधों को भी नुकसान पहुंचाना तो नहीं शुरू कर दिया. तो इसका जवाब ये है कि अमेज़न जैसा विशाल जंगल अगर सदियों सदियों से टिका हुआ है. दुनिया को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा है तो उसके पीछे इस जंगल के मूल निवासियों की मेहनत और प्रतिबद्धता है. और कोरोना वायरस ने अमेज़न के इन्हीं मूल निवासियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.
ब्राजील में कोरोना ने मचाया खूब तांडव
अमेज़न जंगल का सबसे बड़ा हिस्सा ब्राजील में पड़ता है और ब्राज़ील आज कोरोना वायरस के चंगुल में बुरी तरह से फंस चुका है. तीन लाख से ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं. तो 21 हज़ार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन मौत के इस आंकड़े में अमेज़न के जंगल में हुई मूल निवासियों की मौत ने ब्राज़ील के साथ साथ समूचे दक्षिण अमेरिका को मुश्किल में डाल दिया है. क्योंकि, अमेज़न के एक बड़े हिस्से में मूल निवासियों तक मॉर्डन मेडिकल सुविधाएं आज तक नहीं पहुंच पाई हैं. इसलिए खौफ पसरा हुआ है.
सवाल खड़ा किया जा रहा है कि कहीं कोरोना वायरस अमेज़न के मूल निवासियों की बड़ी आबादी को ख़त्म तो नहीं कर देगा?
दरअसल, अमेज़न जंगलों का अतीत भी इस आशंका को मजबूत करता है. इतिहास बताता है कि जब 1960 के दशक में वेनेजुएला की सीमा के पास रहने वाले अमेज़न जंगल के यानोमामी समुदाय के लोगों के बीच खसरा महामारी फैली थी तो संक्रमित लोगों में से 9 फीसदी की मौत हो गई थी. यही वजह है कि बड़ी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां अमेज़न के जंगल में रहने वाले मूल निवासियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
ब्राजील के बड़े शहरों में खूंखार वायरस ने दी थी दस्तक
शुरुआत में ब्राजील के बड़े शहरों जैसे साउ पाउलो में ही कोरोना ने दस्तक दी थी. लेकिन खबरें बता रही हैं कि वक्त के साथ साथ पूरे देश में यह किलर वायरस फैल चुका है. जिसमें अमेजन का इलाका भी शामिल है. ब्राजील के आदिवासियों में कोरोना वायरस का पहला मामला अमेजन इलाके में ही पाया गया था.
अमेज़न के जंगलों में रहने वाले समुदायों के पास संक्रमण से बचने के संसाधन काफी कम हैं. इनके पास न तो हैंड सैनिटाइजर हैं और न ही साबुन.. ऐसे में एक बार यह महामारी इनके बीच फैलती है तो अमेजन के पूरे आदिवासी इसकी चपेट में आ सकते हैं. इससे लाखों की तादाद में मौतें हो सकती है, क्योंकि ये आदिवासी एक-दूसरे के करीबी संपर्क में रहते हैं.
इन वजहों से संक्रमण फैलने में रफ्तार का खतरा
अमेज़न के जंगलों में रहने वाले आदिवासी आपस में खाने के सामान से लेकर बर्तन तक शेयर करते आए हैं. ये दोनों ही परिस्थितियां कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने की रफ्तार तेज कर देती हैं. इसलिए हेल्थ एक्सपर्ट्स दावा कर रहे हैं कि अमेज़न के इलाके और ब्राजील के दूसरे हिस्सों में रहने वाले मूल बाशिंदों का अस्तित्व कोरोना वायरस की वजह से ख़तरे में पड़ सकता है.
बहरहाल ब्राज़ील सरकार अभियान चलाकर अमेज़न के आदिवासियों को आपस में बर्तन इस्तेमाल ना करने और जिनमें कोरोना के लक्षण हैं, उन्हें अकेले में रहने के लिए जागरुक कर रही है. लेकिन चुनौती इसलिए ज्यादा है क्योंकि ब्राज़ील के अमेज़न क्षेत्र में मूल निवासियों के 400 से ज्यादा ऐसे भी समुदाय रहते है, जिनका दुनिया के बाक़ी हिस्सों से कोई वास्ता नहीं है.
हालांकि इन इलाकों में गैर-कानूनी तरीके से लकड़ी का कारोबार करने वाले, शिकारी और धार्मिक मिशनरी सक्रिय हैं.
अगर बाज़ार नहीं जाएंगे तो भूखमरी की समस्या
ब्राजील सरकार के साथ साथ अमेज़न जंगल के मूल निवासियों के संगठनों ने भी कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपनी तरफ से खास पहल की है. मूल निवासियों के कई संगठनों ने इस बात की अपील की है कि समुदाय के लोग शहरों में ना जाए लेकिन इन्हीं संगठनों के कई नेताओं का यह भी मानना है कि अगर वो बाज़ार नहीं जाएंगे तो भूखमरी की समस्या पैदा हो जाएगी. दरअसल अमेज़न जंगल में रहने वाले हजारों लोग पेंशन और सरकार की ओर से मिलने वाली नकद मदद लेने हर महीने वेनेजुएला और कोलंबिया के शहरों की तरफ जाते हैं.
हालांकि, अब मूल निवासियों ने आनन फानन में अपनी आदत को बदला है. कुछ समुदायों ने शिकार छोड़कर अनाज उपजाना शुरू कर दिया है और इस मुश्किल वक्त में आत्मनिर्भर होने के लिए कदम उठाया है पहले शिकार को बेचने के लिए भी उन्हें शहरों का रुख करना पड़ता था. लेकिन खेती के जरिए वो अभी भूखमरी की समस्या से निपटने पर जोर दे रहे हैं.
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ऐसा नहीं है कि अमेज़न के जंगल में रहने वाले मूल निवासी पहली बार किसी बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं. अमेज़न के जंगलों में हर साल आग लगने की हज़ारों घटनाएं होती हैं. पिछले दो साल में तो अमेज़न के जंगल में आग लगने की घटनाओं में 83 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है. 2019 में ही अमेज़न के जंगल में आग लगने की एक लाख से ज्यादा घटनाएं सामने आईं थी. .माना जाता है कि अमेज़न के मूल निवासी अपने पारंपरिक ज्ञान के बदौलत तमाम मुश्किलों का मुकबला करते आए हैं. इस बार उन्होंने कोरोना को हराने का हौसला दिखाया है.
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