नई दिल्ली : पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालई इस्माइल ने पाकिस्तानी सरकार के सड़क-छाप रवैये की पोल खोल कर रख दी. उन्होंने कहा कि खाइबर पख्तुनख्वा के पश्तूनों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की उन्हें
सजा दी जा रही है. अब उन्हें सबक सिखाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने उनके पिता को आंतकवादी साजिश बता कर कैद कर लिया है और उनको यातनाएं दी जा रही है.
ट्वीट करके दी पिता के अपहरण की जानकारी
गुलालई ने ट्वीट कर ये जानकारी दी कि पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया है. उन्होंने लिखा कि पाकिस्तानी हुकूमत के आदेश पर मेरे पिता का अपहरण कर आतंकवाद के नाम
पर डराने की कोशिश की जा रही है. सरकार सेना के साथ मिलकर आवाज उठाने वाले लोगों को लगातार निशाना बना रही है.
Gulalai Ismail is a women's rights activist who managed to escape Pakistan to seek political asylum in the United States in September after being accused of treason. https://t.co/HfExcypOIL
— ANI (@ANI) October 25, 2019
पश्तून में अल्पसंख्यकों की आवाज हैं गुलालई
पश्तूनी मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालई इस्माइल पाकिस्तानी सेना और सरकार के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने को ले कर चर्चा में आईं थीं. पश्तुनों की पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ उठती आवाजों को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों का साथ लिया जा रहा है जो उन्हें यातनाए दे रहे हैं. उसी अत्याचार का विरोध करने वाली गुलालई इस्माइल को पाकिस्तानी सरकार ने राजद्रोह के आरोप के तहत दोषी बता कर आवाज को दबाना चाहा. गुलालई को जब पाकिस्तानी सेना की चाल को भांप लिया तब वह देश छोड़ कर अमेरिकी सरकार से राजनीतिक शरण की मांग करने लगी. गुलालई ने पाकिस्तानी सेना की पोल खोलते हुए कहा था कि सेना अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर जुल्म करती है.
यहां तक की महिलाओं का बलात्तकार भी करती है. आवाज उठाने पर या तो गायब करा दिया जाता है या हत्या करा दी जाती है.
आजादी की आवाज को दबा रही पाकिस्तानी हुकूमत
गुलालई इस्माइल के आवाज उठाने के बाद से ही लगातार उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी जा रही है. पाकिस्तानी सेना व आतंकी गिरोह के समर्थन से अब इमरान हुकूमत भी पश्तूनों की आजादी के आवाज को दबाने की कोशिश में लगी
हुई है. गुलालई इससे पहले सीड्स ऑफ पीस नेटवर्क और अवेयर गर्ल्स की अध्यक्षा के रूप में मानवाधिकार के हनन के खिलाफ काम कर चुकी हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि पाकिस्तानी सेना से बच के भागने के बाद गुलालई 6
महीने तक देश के सुदूर इलाकों में छिपी रहीं. इसके बाद कुछ दोस्तों की मदद से पहले श्रीलंका फिर अमेरिका जा पहुंची.
गुलालई अमेरिकी सरकार से लगातार राजनीतिक शरण की मांग कर रही हैं. लेकिन अमेरिका जिस तरह से बलूचिस्तान और पश्तूनों पर हो रहे अत्याचारों को नजरअंदाज करता आया है और ना ही मानवाधिकारों के हनन के मामले में कुछ
मदद कर पाया है. ठीक उसी तरह गुलालई को भी राजनीतिक शरण प्रदान करने के मामले में चुप्पी साधे हुए है.