नई दिल्ली. अमेरिका और चीन का ट्रेड वार कई देशों के लिए मुफीद था तो कई के लिए नुकसानदेह. लेकिन अब जबकि दोनों महाशक्तियों ने आपस में बात करके ट्रेड वार को विराम दे दिया है तो ये भारत जैसे दुनिया के कई विकासशील देशों के लिए एक अलार्म से कम नहीं क्योंकि अब ये दोनों आर्थिक महाशक्तियां एक नई आर्थिक मोर्चाबंदी को जन्म दे सकती हैं जिससे वैश्विक आर्थिक समीकरण बदल सकते हैं.
ट्रेड डील का प्रथम चरण हुआ पूरा
दोनों वैश्विक आर्थिक महाशक्तियों ने आपस में दोस्ती पक्की कर ली है और इस सिलसिले में ज़रूरी कागज़ात पर दस्तखत होने का प्रथम चरण भी पूरा हो गया है. फर्स्ट फेज़ के ट्रेड एग्रीमेंट पर दोनों पक्षों की तरफ से हस्ताक्षर हो गए हैं. अब इसके बाद जो चीज़ें सामने आएंगी वो दुनिया के दूसरे देशों के लिए चुनौती अधिक साबित हो सकती हैं, फायदेमंद कम.
आपस में एक दूसरे को देंगे फायदा
ज़ाहिर ही है इस ट्रेड डील का प्रथम लक्ष्य एक दूसरे के लिए व्यापारिक मुश्किलों को आसान करना है. इसलिए इस डील के फर्स्ट फेज़ में हुए समझौते के अंतर्गत अमेरिका चीन से आयात होने वाले सामान पर अपनी तरफ से लगाए गए नए टैरिफ वापस लेगा और इसके जवाब में चीन अमेरिका से ऐग्री प्रोडक्ट्स अधिक मात्रा में खरीदेगा.
पिछले साल हुई थी शुरुआत नई दोस्ती की
यूं तो अमेरिका को हमेशा चीन के आर्थिक विस्तारवाद से खतरा रहता है और चीन भी हमेशा अमेरिका के प्रति सशंक बना रहता है लेकिन पिछले साल दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापारिक शीत युद्ध ने विराम ले लिया और वर्ष 2019 के दिसंबर माह में ही नई दोस्ती की शुरुआत की भूमिका बन गई थी. इसी महीने दोनों देशों ने ट्रेड-एग्रीमेंट की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया था.
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