नई दिल्ली. अर्मेनिया (Armenia) और अजरबैजान (Azerbaijan) की जंग से विश्व युद्ध (World war) का अलार्म बज गया है.. ये जंग दो मुल्कों के बीच है. लेकिन इसके पीछे एक खौफनाक साजिश है. दुनिया में तबाही लाने के लिए तीन देश साथ मिले हैं..वो तीनों ही (India) भारत के दुश्मन हैं. चीन-पाकिस्तान और तुर्की. जहरीला माओवाद और कट्टरपंथी इस्लामिक एजेंडा. यानी चीन दुनिया को खतरे में डालकर अपना मंसूबा पूरा करना चाहता है. जिसमें तुर्की और पाकिस्तान भी शामिल हैं.
भारत के दुश्मन मुल्कों में 'नापाक डील'
अब आपको समझाते हैं. कि दुनिया पर ऐसे विश्वयुद्ध का खतरा क्यों मंडरा रहा है.. जिसमें सीधे-सीधे दुनिया के एक बहुत बड़े हिस्से को इस्लामिक वर्ल्ड बनाने की तैयारी है.. जिसके लिए एक ऐसा गठजोड़ हो रहा है.. जो दुनिया के लिए सबसे घातक साबित होने वाला है.
तुर्की-पाकिस्तान और चीन का षडयंत्र
वो गठजोड़ है. इस्लामिक कट्टरपंथी एजेंडा और माओवादी जहरीली सोच. चीन और इस्लामिक राष्ट्रों का दुनिया के खिलाफ खतरनाक गठबंधन है. जिसके पीछे चीन की शातिर चाल है. इसमें वो इस्लाम और माओवाद के कॉकटेल से अपनी हुकूमत साबित करना चाहता है. फिर चाहे इस्लामिक मुल्कों को मोहरा बनाकर, अर्मेनिया और अजरबैजान जैसे कितने ही युद्ध क्यों ना कराने पड़ें. हांलाकि इसमें टर्की और पाकिस्तान का भी अपना मंसूबा है. ताकत के लिहाज से वो चीन से काफी पीछे हैं. इसलिए चीन की बात मानना दोनों की मजबूरी और जरूरत भी है. हथियारों से लेकर कर्ज तक का इंतजाम चीन करता है. इसके अलावा अमेरिका के खिलाफ भी चीन, टर्की और पाकिस्तान के साथ है.जिनपिंग वर्ल्ड लीडर बनने का सपना देख रहे हैं. वहीं एर्दोगन इस्लामिक मुल्कों का खलीफा बनने का ख्वाब देख रहे हैं. उधर इमरान खान पाकिस्तान को एशिया के मुसलमानों में दबदबा कायम करना चाहता है.यही वजह भी है. अर्मेनिया औऱ अजरबैजान की जंग में पाकिस्तान और टर्की आक्रामक हो चुके हैं.. दोनों साथ मिलकर दूसरे इस्लामिक देशों को भी अर्मेनिया के खिलाफ उकसा रहे हैं.
कट्टरपंथी एजेंडा+जहरीला माओवाद=वर्ल्डवॉर
जब तुर्की के तानाशाह पाकिस्तान के दौरे पर गए थे. उस वक्त रेड कारपेट बिछाया गया. खुद इमरान खान कार ड्राइव करके एर्दोगन को पाकिस्तान की पार्लियामेंट तक लेकर गए थे. इतनी गर्मजोशी तुर्की के लिए पाकिस्तान ने पहले कभी नहीं दिखाई. उसके बाद एर्दोगन ने पाक संसद को संबोधित किया. जिसमें पाकिस्तान की खूब तारीफ की. लेकिन असल मक्खन तो इमरान खान ने लगाया. जब एर्दोगन को इतना पॉपुलर बता दिया कि वो पाकिस्तान तक में चुनाव जीत सकते हैं..ये दौर आगे बढ़ा.. जब इमरान खान तुर्की जा पहुंचे.. वहां इमरान खान को एर्दोगन ने गोद में बिठा लिया. यानी यहां से तय हो चुका था. कि पाकिस्तान, एर्दोगन के खलीफा वाले एजेंडे में फंस चुका था. अब बारी थी. ये दो देश मिलकर कैसे दूसरे इस्लामिक देशों को झांसे में लें. जबकि यूएई लगातार इनकी मुखालफत में था. ऐसे में अर्बेनिया और अजरबैजान का युद्ध इनके लिए मौका लेकर आया.. जिसमें तुर्की ने आईएस के आतंकियों को भेज दिया और पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया. जाहिर है ऐसा करके इस्लामिक मुल्कों को ये मैसेज देना था. कि अगर किसी इस्लामिक देश पर संकट आए तो तुर्की-पाकिस्तान की तरह सारे इस्लामिक देश एक साथ मदद करेंगे.
चीन और इस्लामिक राष्ट्रों का खतरनाक गठबंधन
इमरान खान को तुर्की के साथ जाने की बड़ी वजह भारत का डर भी है. और चीन से दोस्ती भी. इस तरह से वो तुर्की और चीन दोनों से भारत के खिलाफ हथियार और मदद ले सकता है. दरअसल इस सारे खेल का बड़ा खिलाड़ी चीन है. जो कोरोना और अपनी विस्तारवादी सोच की वजह से अलग-थलग पड़ा हुआ है. अमेरिका और भारत से दुश्मनी ने उसे बर्बादी के कगार पर ला दिया है. ऐसे में वो इस्लामिक देशों को उकसाकर अपना एजेंडा साध रहा है. जहा पूरी दुनिया इस्लामिक एजेंडे को ध्वस्त करने में जंग की तरह जुट जाएगी. तब चीन अपने मंसूबे और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगा रहेगा. लेकिन रूस और अमेरिका के रहते ये इतना आसान नहीं
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