नई दिल्ली:  इमरान खान ने पाकिस्तान का मुकद्दर तुर्की के हाथ गिरवी रखने की पूरी तैयारी कर ली है. इसी साजिश के तहत पाकिस्तानियों को तुर्की का मानसिक गुलाम बनाने की तैयारी की जा रही है.  


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सीरियल बने हथियार 


पहले एर्तुग्रुल ग़ाज़ी, अब युनूस एमरे. ये दोनों ही तुर्की में बनी वेब सीरीज़ है जो तुर्की के इतिहास से जुड़ी शख़्सियतों पर बनी है.  इमरान ख़ान ने इन दो सीरियल्स को पाकिस्तान में उर्दू भाषा में दिखाना ज़रूरी कर दिया है.  पाकिस्तान का राष्ट्रीय टीवी चैनल पहले से एर्तुग्रुल ग़ाज़ी दिखा रहा है. अब इमरान का फरमान आया है कि तुर्की के एक और सीरियल युनूस एमरे को भी उर्दू में अनुवाद कर के पाकिस्तान टीवी पर प्रसारित किया जाए, और पीटीवी ने इसकी तैयारी कर ली है.



 


ये सिर्फ दो सीरियल्स नहीं हैं बल्कि तुर्की की ISIS प्लानिंग का एक हिस्सा है.  यूनुस एमरे एक सूफी दरवेश थे. जिन पर आधारित तुर्की की ये टीवी सीरिज है.



अल्लाह को समर्पित एक महान सूफ़ी की इसी कहानी को इमरान अपने मुल्क वालों को दिखाना चाहते हैं. लेकिन इसके पीछे की सोच इस्लामिक साम्राज्यवाद की है. 


 


आजाद ख़यालात से इमरान को लगता है डर 


जिस पाकिस्तान की मनोरंजन इंडस्ट्री हिन्दुस्तान की रचनाओं पर निर्भर करती है, वहां अब तुर्की सीरियल्स की घुसपैठ हो चुकी है और इमरान ख़ान को ख़ौफ सता रहा है कि बॉलीवुड और हॉलीवुड के आज़ाद ख़यालातों से कहीं पाकिस्तान की अवाम आज़ाद सोच वाली ना बन जाए और हुकूमत को सवालों के घेरे में ना खड़ी करने लगे.  इसी वजह इमरान तुर्की के ISIS प्लान का हिस्सा बन चुके हैं. 



तुर्की की टीवी सीरीज एर्तुग्रुल 12वीं सदी के ओगुज़ तुर्क एर्तुग्रुल के जीवन पर आधारित है. जिसके बेटे उस्मान ग़ाज़ी ने ओटोमन साम्राज्य की स्थापना की थी. ये सीरियल मंगोलों, ईसाइयों पर हमले करने वाले मुस्लिम ओगुज़ तुर्कों की बहादुरी की कहानी पर आधारित है.


सवाल है कि तुर्की के इतिहास से आखिर पाकिस्तान का क्या लेना-देना और क्यों ओटोमन साम्राज्य के स्थापक की कहानी जबरन पाकिस्तान में अवाम को दिखाई जा रही है, इसके पीछे आखिर इमरान ख़ान की क्या सोच है


तुर्की का पाकिस्तान पर परोक्ष कब्जा


बात सिर्फ ऐतिहासिक कंटेट की नहीं है, ये एक ऐसी इंटरनेशनल साज़िश है जिसमें इमरान ख़ान फंस चुके हैं और अपने देश का सौदा तुर्की से कर चुके हैं. अब तुर्की के राष्ट्रपति रेज़ेप तय्यप एर्दोआं अब दो देशों पर शासन कर रहे हैं. एक तो तुर्की और दूसरा पाकिस्तान.


इमरान ख़ान की महात्वाकांक्षा उनको यहां तक ले आई है.  ये सिर्फ इस्लामिक संस्कृति को बचाने की कवायद नहीं है.  इस कवायद के पीछे एक बहुत बड़ी साज़िश है.  इस साज़िश की शुरुआत हुई थी 1994 में.  ऐसा नहीं है कि इस साज़िश का किसी को पता नहीं, दुनिया की बड़ी ताक़तें इस साज़िश को रोकने में लगी हुई हैं. 


तुर्की-पाकिस्तान के विनाशकारी गठजोड़ से डरी दुनिया


हाल ही में एक सीक्रेट मीटिंग हुई थी. सऊदी अरब के गुप्त दौरे पर पहुंचे थे इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से हुई.  इस बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी शामिल हुए.  इस बैठक का मकसद था इस्लामोफोबिया का राग अलापने वाले पाक पीएम इमरान ख़ान पर नकेल कसने और तुर्की राष्ट्रपति के आईसिस प्लान को फेल करना. इन दोनों की साज़िश पर अंकुश लगाने के लिए इज़रायली पीएम ने सऊदी प्रिंस से अमेरिका की मौजूदगी में गुप्त मीटिंग की. ताकि ना सिर्फ ईरान बल्कि तुर्की और पाकिस्तान की महत्वाकांक्षाओं को कुचला जा सके.



इस साज़िश में तुर्की बादशाह है और पाकिस्तान प्यादा है. इसी टीवी सीरीज़ की सोच से इसकी शुरुआत होती है.  उस्मान ग़ाज़ी ने जिस ओटोमन साम्राज्य की स्थापना की थी, उसमें इस्लामिक सोच को माननेवाले और नहीं माननेवाले दोनों तरह की रियासतें शामिल थीं. इसमें किसी की मर्ज़ी नहीं चली बल्कि सिर्फ उस्मान ग़ाज़ी के तख़्ते का फ़रमान बोलता था. 


तुर्की और पाकिस्तान जिस साज़िश का फलसफा लेकर चले हैं.  उसमें उसी ओटोमन साम्राज्य की झलक देखने को मिलती है. तुर्की भी चीन की तरह विस्तारवाद में यकीन करता है और यही वजह है कि मौजूदा वक़्त में तुर्की के राष्ट्रपति रेज़ेप तय्यप एर्दोआं इस्लामी देशों का नेता बनने की कोशिश में जुटे हैं. 


इमरान ख़ान भी इस सोच का हिस्सा बनते हैं क्योंकि उन्हें भी लगता है कि वो इस्लामिक देशों के वैश्विक नेता बन सकते हैं. इमरान से जब तुर्की टीवी सीरियल्स को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा था कि, ‘इसके ऊपर हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, इसके ऊपर एर्दोआं, महाथिर मोहम्मद और मैंने बैठकर सोचा था कि अपनी मुस्लिम दुनिया को एक विकल्प दें.  जो एक इस्लामोफोबिया फैल रहा है उसके लिए बताएं कि असल इस्लाम क्या है’. 


इस्लामिक दुनिया का अगुवा बनने की होड़


फ्रांस की मैगजीन शार्ली हेब्दो के कार्टून को लेकर हंगामा हुआ तो सबसे पहले  इस मुद्दे पर सीधे फ्रेंच प्रेसिडेंट को घेर लिया तो इमरान ख़ान भी पीछे रहने वाले नहीं थे. ये सोच बताती है कि दोनों ही नेता इस्लामोफोबिया को हथियार बनाकर इस्लामिक देशों का वैश्विक नेता बनने की फिराक में हैं. 


फ्रांस में जब उस कथित कार्टून को लेकर शार्ली हेब्दो पर हमला किया गया तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने सीधा हमला मुसलमानों पर कर दिया. इसके बाद दुनिया के सभी मुसलमानों का झंडा लिए तुर्की के राष्ट्रपति ने फ्रांस के राष्ट्रपति पर हमला बोल दिया. 


रेज़ेप तय्यप एर्गोआं ने मैक्रों को लेकर कहा कि, ‘मैक्रों को दिमागी इलाज की ज़रूरत है. एक देश के मुखिया को और क्या कहेंगे जो आस्था की स्वतंत्रता को नहीं समझता, जो उसके देश में रहनेवाले अलग-अलग आस्था के करोड़ों लोगों के साथ ऐसा सलूक करता है? सबसे पहले एक दिमागी जांच ज़रूरी है’


इमरान ख़ान ने भी आव देखा ना ताव और मौके को भुनाने के लिए फ्रांस पर ना सिर्फ आरोप मढ़ा बल्कि अपने बयान से ये भी दिखाने की कोशिश की कि दुनिया के सभी मुसलमानों देशों के नेता वही हैं. 


इमरान ने पाकिस्तान में बोलते हुए कहा था कि, ‘जो मैं हालात देख रहा हूं इस्लामोफोबिया के, जो भी फ्रांस में हुआ है. और मैंने आज सभी मुसलमान देशों के हेड ऑफ स्टेट्स को इसे लेकर चिट्ठी लिखी है. उन्हें समझना होगा कि हमारे इस्लाम पर अगर कोई चोट करता है तो दुनिया भर के मुसलमानों को कितनी तकलीफ होती है’


एर्दोआं ने तुर्की को बनाया कट्टरपंथी


- 11 जनवरी 2017 को तुर्की की संसद में सांसदों के बीच धक्का मुक्की हुई, क्योंकि एक संवैधानिक सुधार बिल को पटल पर रखा गया जिसके तहत तुर्की में संसदीय लोकतंत्र को इस्लामिक कट्टरपंथी प्रेसिडेंसी में बदलने की बात थी. ये रेज़ेप तय्यप एर्दोआं की अपने देश में आखिरी चाल थी.


- 27 मार्च 1994 को एर्दोआं को इस्तांबुल का मेयर चुना गया. शहर के कुछ कैफे में शराब को बैन कर दिया गया. एर्दोआं की कट्टरपंथी इस्लामिक समाज की सोच यहीं से वास्तविकता में सामने आई. 


- धर्मनिरपेक्ष समाज की बात तुर्की के संविधान में लिखी है लेकिन कट्टरपंथी बदलाव का लोगों ने स्वागत किया. असंवैधानिक इस्लामिक सोच की वजह से वेलफेयर पार्टी को अदालत ने असंवैधानिक करार दे दिया.  इस बीच में एर्दोआं के एक भाषण की वजह से दंगे हुए और उन्हें 4 महीने जेल में गुज़ारने पड़े. 



 - लेकिन 2001 में एर्दोआं ने जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी बनाई और साल 2002 में एर्दोआं की पार्टी जीत गई, साल 2007 में एक बार फिर एर्दोआं ने 46 फीसदी वोट से जीत दर्ज की. यहां से तुर्की का समाज और राजनीति दोनों धर्म निरपेक्ष और कट्टर इस्लामिक सोच में बंट गई लेकिन इसमें बहुतायत में एर्दोआं की इस्लामिक सोच को पसंद करने लगे. 


- साल 2011 में एर्दोआं ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. अगस्त 2014 में एर्दोआं तुर्की के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति बने. उनका कद घट चुका था. शांति वार्ताएं विफल होने लगीं, तुर्की इस्लामिक स्टेट और दूसरे आतंकी ग्रुप का गेटवे बन गया. 


- तुर्की में आतंकी वारदातें बढ़ने लगीं, सीरिया के शरणार्थी सीमाएं लांघने लगे और तुर्की की मुद्रा लुढ़कने लगी. जुलाई 2016 में मिलिट्री तख्तापलट की कोशिश की गई. 


- एर्दोआं ने देश में आपातकाल लगा दिया, हज़ारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, करीब डेढ़ लाख तुर्कियों को बिना बताए नौकरी से निकाल दिया गया और तुर्की पत्रकारों की दुनिया में सबसे बड़ी जेल बन गया. और इसी का असर रहा कि सत्ता की बागडोर राष्ट्रपति एर्दोगां के पास पहुंच गई


ज़ाहिर है एर्दोगां का इस्लामिक स्टेट का मिशन अपने देश से ही शुरू हुआ लेकिन दूसरी तरफ एर्दोआं इसे अगले मुकाम पर ले जाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्यादे की तलाश में थे और वो प्यादा मिला इमरान ख़ान के रूप में.


सऊदी अरब से पल्ला झाड़ रहा पाकिस्तान


सितम्बर 2019 तक पाकिस्तान के रिश्ते सऊदी अरब से और यूएई से बहुत अच्छे थे लेकिन अचानक रिश्तों के बीच में ऐसी बिजली गिरी कि आज सऊदी अरब इमरान ख़ान से 2 अरब डॉलर का कर्ज़ वापस मांग रहा है तो वहीं संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान के लिए ना सिर्फ विजिट वीज़ा पर बैन लगा दिया है.  बल्कि वहां पहले से रह रहे पाकिस्तानियों का वीज़ा भी रिन्यू नहीं कर रहा. 


बात सिर्फ दो सीरियलों की ही नहीं है.  ये कहानी है एक साज़िश की जिसमें इमरान ख़ान तुर्की के राष्ट्रपति के साथ शामिल हैं.  



ISIS जिस तरह से इस्लामिक राज स्थापित करने की सोच रखता है उसी तरह की सोच से ग्रसित हैं तुर्की के राष्ट्रपति रेज़ेप तय्यप एर्दोआं. एर्दोआं की ये सोच आज की नहीं है. सऊदी अरब तुर्की की इसी सोच से इत्तेफाक नहीं रखता. 


जब तक इमरान प्रधानमंत्री नहीं बने थे, तब तक पाकिस्तान सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और तुर्की के साथ समन्वय स्थापित करने में सफल रहा था.  लेकिन इमरान ख़ान के आने के साथ इस्लामिक सोच के चलते चीज़ें बदलने लगीं. जिसके बाद  ऐसा वक़्त आया कि जब सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को लगने लगा कि उनकी इस्लामिक लीडर की पहचान को इमरान ख़ान चुनौती दे रहे हैं


सितम्बर 2019 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा बुलाई गई. इसमें शामिल होने के लिए इमरान खान सऊदी अरब के प्रिंस के प्राइवेट जेट से अमेरिका पहुंचे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए इस्लामोफोबिया का मुद्दा उठाया. 


साथ ही तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक इंटनेशनल इस्लामिक टीवी चैनल शुरू करने का प्लान पेश कर दिया. ज़ाहिर है इमरान खुद को इस्लामिक देशों की लीडर दिखाने की कोशिश में थे. लेकिन ये बात सऊदी अरब को पसंद नहीं आई, हालात ये हुए कि बीच रास्ते से ही प्रिंस ने अपना प्राइवेट जेट वापस बुला लिया और इमरान को कमर्शियल फ्लाइट से पाकिस्तान वापसी करनी पड़ी


यहां से रिश्ते खराब होने लगे और हालात ये हो गए कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अपने हितों की रक्षा के लिए पाकिस्तान से कन्नी काटने लगे और भारत को तरजीह देने लगे. 


पाकिस्तान और तुर्की का गठजोड़ पूरी मानवता के लिए खतरनाक साबित होने वाला है. जिसे रोकने के लिए दुनिया भर के देशों को मिलकर कोशिश करनी होगी. 


 


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