Chandigarh News: पंजाब राजभवन, चंडीगढ़ ने आज नए एनएएसी सुधारों पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों को प्रेरित करने और उन्हें शामिल करने की रणनीतियों पर चर्चा की गई, जिसमें ऐसे कॉलेज शामिल थे जिन्होंने कभी भी एनएएसी मान्यता के लिए आवेदन नहीं किया या फिर जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में यह प्रक्रिया बंद कर दी थी, और वे नए स्थापित विश्वविद्यालय जो एनएएसी मान्यता के अपने पहले दौर की तैयारी कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में राज्य भर में व्यापक शैक्षणिक उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए इन संस्थानों को फिर से शामिल करने के महत्व पर जोर दिया गया।


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इस अवसर पर मुख्य अतिथि पंजाब के राज्यपाल और यूटी चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया ने युवाओं को वैश्विक जरूरतों के अनुसार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और आधुनिक कौशल से लैस करने की आवश्यकता पर जोर दिया। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा प्रणाली को तेजी से बदलती दुनिया की मांगों को पूरा करने के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल रोजगार का मार्ग नहीं है, बल्कि एक परिवर्तनकारी शक्ति है जो किसी राष्ट्र की प्रगति को आगे बढ़ाती है।


अपने संबोधन में, कटारिया ने शिक्षा से जुड़ी भारत की ऐतिहासिक विरासत पर बात करते हुए नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे प्राचीन शिक्षण केंद्रों के वैश्विक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अपनी समावेशिता और उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध इन संस्थानों ने ऐसे मानक स्थापित किए हैं जो आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को प्रेरित करते हैं।


भारत की शैक्षिक नीतियों के विकास पर प्रकाश डालते हुए, राज्यपाल ने 1968, 1986 और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों (एनईपी) के परिवर्तनकारी प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बहु-विषयक शिक्षा, पाठ्यक्रम लचीलेपन और प्रौद्योगिकी के एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एनईपी 2020 की सराहना की, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 4 (एसडीजी 4) के साथ इसके संरेखण पर ध्यान दिया। कटारिया ने कहा कि एनईपी 2020 भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ संतुलन बनाते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल बढ़ाने के लिए एक प्रगतिशील दृष्टिकोण को दर्शाती है।


कटारिया ने पंजाब के ऐतिहासिक योगदान, विशेष रूप से हरित क्रांति के दौरान इसके नेतृत्व की सराहना की और एनईपी-2020 को लागू करने में भारत का नेतृत्व करने के लिए शैक्षिक सुधारों की अगुआई करने की राज्य की क्षमता पर भी विश्वास व्यक्त किया।


अपने संबोधन का समापन करते हुए श्री कटारिया ने मूल्य आधारित शिक्षा और संस्थागत जिम्मेदारी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि एनएएसी केवल एक मूल्यांकन उपकरण नहीं है; यह निरंतर सुधार की एक प्रक्रिया है जो संस्थानों को वैश्विक मानकों तक ले जाती है। शिक्षा को व्यवसाय के रूप में नहीं बल्कि एक मिशन के रूप में देखा जाना चाहिए, ताकि हमारे युवाओं को वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त बनाया जा सके।


पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत बैंस ने शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति और भविष्य को आकार देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने पंजाब की शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला, जिसका लक्ष्य राज्य को वैश्विक शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना है ताकि छात्रों को अध्ययन के लिए विदेशों में न जाना पड़े। श्री बैंस ने नवाचार और समावेशिता को बढ़ावा देने हेतु एक मंच के रूप में इस सेमिनार की प्रशंसा की और पंजाब को उच्च शिक्षा में अग्रणी बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की, जो 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण योगदान देगा।


एनएएसी की सलाहकार डॉ. के. रमा ने एनएएसी के मिशन और भविष्य की दिशा का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एनएएसी केवल ग्रेडिंग के बारे में नहीं है, बल्कि यह उच्च शिक्षा में निरंतर सुधार का एक उपकरण भी है। एनएएसी की 25 साल की यात्रा पर बात करते हुए, उन्होंने वर्तमान ग्रेडिंग प्रणाली से बाइनरी मान्यता मॉडल और परिपक्वता-आधारित मान्यता प्रणाली में बदलाव की योजना की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण प्रत्येक विश्वविद्यालय को एक संरचित प्रणाली से जोड़ेगा, जिससे स्पष्टता और समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।


डॉ. के. रमा ने परिपक्वता-आधारित ग्रेडिंग की अवधारणा भी पेश की, जो पाँच प्रगतिशील स्तरों पर काम करेगी। पहले चार स्तर स्थानीय और राष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर संस्थानों का मूल्यांकन करेंगे, जबकि पाँचवाँ स्तर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होगा, जिससे भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित होगी।


युवाओं में नशों की लत के महत्वपूर्ण मुद्दे संबंधी सेमिनार के दौरान डीजीपी चंडीगढ़, सुरेंद्र यादव ने संबोधित किया। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों को जागरूकता अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लेने और छात्रों को समग्र मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक कल्याण सुनिश्चित हो सके।


चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के उप-कुलपति प्रो. मनप्रीत सिंह मन्ना और प्रख्यात शिक्षाविद् आर.एस. बावा ने भी अपने दृष्टिकोण साझा किए कि कैसे एनएएसी के साथ जुड़ें और कैसे इसके समक्ष अपनी उपलब्धियों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करें।


सम्मेलन में राज्यपाल के अतिरिक्त मुख्य सचिव के. शिव प्रसाद, पंजाब के शिक्षा सचिव के.के. यादव, सेमिनार के समन्वयक ललित जैन, पंजाब के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों के कुलपति व उप-कुलपति, रजिस्ट्रार और प्रिंसिपल सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।