Aala Hazrat: फाजिल-ए-बरेलवी इमाम अहमद रजा खां (आला हजरत) का आज 106वां उर्स है. उन्होंने देश-दुनिया में दीनी रोशनी फैलाई. आज आला हजरत से जुड़े रोचक कहानियां जानने के लिए पूरी खबर पढ़ें.
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Aala Hazrat: फाजिल-ए-बरेलवी इमाम अहमद रजा खां (आला हजरत) ने देश-दुनिया में दीनी रोशनी फैलाई. इसके साथ ही वह एक सच्चे देशभक्त भी थे. वह अंग्रेजों से बेहद नफरत करते थे. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद छेड़ा था. आज यानी 29 दिसंबर को आला हजरत का 106वां उर्स शुरू हो रहा है. इस मौके पर आज हम आला हजरत से जुड़े रोचक कहानियां बताने जा रहे हैं.
कौन थे आला हजरत
आला हजरत का जन्म 1857 की क्रांति से एक साल पहले यानी 14 जून 1856 को बरेली के मोहल्ला जसोली में हुआ था. उनके पूर्वज कंधार (अफगानिस्तान) से आए थे. इतिहासकारों के मुताबिक आला हजरत के परिवार के बुजुर्ग मुगल शासन के दौरान भारत आए थे. उनके दादा हुजूर मौलाना रजा अली खां किसी युद्ध के सिलसिले में रोहिलखंड आए थे. इसके बाद यहीं बस गए. अहमद रजा खां के पिता नाकि अली खान एक आलिम के साथ इलाके के नवाब भी थे. वो सूफी अकीदे का पालन करते थे. अहमद रजा खान ने दीं और तमाम तरह के इल्म अपने वालिद से सीखा था. उन्होंने किसी मदरसे से विधिवत तौर पर कोई तालीम नहीं ली थी. हनफी सुन्नी मुस्लिम थे और कादरिया सिलसिला के अनुनायी थे. अपने स्वाध्याय और आला ख्याल की वजह से वो कम उम्र में ही इस्लाम, दीन, दर्शन जैसे विषयों के माहिर बन गए. वो एक आला दर्जे के मुफक्किर थे, जिनकी मकबूलियत भारत सम्मिलित( बांग्लादेश, पकिस्तान के साथ ही) अन्य शियाई देशों में फ़ैल गयी. उनके मानने वालों में पीर और उनके मुरिदैन भी शामिल थे. सुन्नी हनफी अहमद रजा खां ने बरेलवी मसलक को फरोग देने में अहम् किरदार निभाया था. उन्होंने बरेली में एक मदरसा कायम किया था. इस मदरसे के पास आउट तालिबइल्म और अहमद रजा खां के विचारों से इत्तेफाक रखने वाले लोग बरेलवी कहलाने लगे. अहमद रजा ने १०० से भी अधिक किताबें लिखी हैं.
हालांकि , कई मुद्दों पर मुसलामन के दूसरे फिरके के उलेमा अहमद रजा खान के नज़रिए से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. कुछ मुद्दों पर तो उनमें आपस में बड़ा टकराव है. ये टकराव बाद के दिनों में और बढ़ता गया. अहमद रजा की मौत के बाद उनके अनुयायी और कट्टर हो गए. वो इस्लाम के दूसरे फिरके पर सवाल उठाते हैं, इस्लाम से गुमराह बताते हैं.
बादशाह अकबर से भीड़ गए थे आला हजरत
आला हजरत ने 13 साल की उम्र में आलिम-ए-दीन से ग्रेजुएशन किया था. उन्होंने अपना पहला फतवा 14 साल की उम्र में लिखा था. उनकी लिखी 1100 किताबें छप चुकी हैं. फतवा रिजविया भी 24 जिल्दों में उपलब्ध है. उनका उर्स सफर की 27 तारीख को मनाया जाता है.
अंग्रेजों से करते थे नफरत
आला हजरत के वालिद मुफ्ती नकी अली खां भी अपने पिता की तरह अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे. कई बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए. जैसे ही उन्हें अंग्रेजी सेना के आने की भनक लगती तो वह मस्जिद में चले जाते थे. अंग्रेज वहां जाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते थे. आला हजरत ने अंग्रेजों के खिलाफ फतवे भी जारी किए थे. आला हजरत अंग्रेजों से इतनी ज्यादा नफरत करते थे कि वह महारानी विक्टोरिया का अपमान करने के लिए लेटर पर हमेशा टिकट उल्टा टिपकाते थे.जिससे अंग्रेज नाराज हो गए और लार्ड हेस्टिंग जनरल ने आला हजरत का सर कलम करने के लिए पांच सौ का ईमान रखा था.
अंग्रेजों के कार्यक्रम में मुसलमानों को जाने से रोक दिया
अंग्रेज समय-समय पर कार्यक्रम का आयोजन भी करते थे, जिसमें भीड़ उमड़ पड़ती थी, लेकिन, आला हजरत ने भाषण देकर मुसलमानों को उनमें जाने से रोक दिया. उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों ने हमारे देश के साथ विश्वासघात किया. विदेशी लोग व्यापार के बहाने आए और शासक बन गए. वे हमारे देश के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं.
आला हजरत इस चीज के थे खिलाफ
इसके अलावा आला हजरत अंग्रेजों के शासन के दौरान कोर्ट जाने के सख्त खिलाफ थे. उन्होंने हमेशा मुकदमों में स्टांप पेपर पर करोड़ों रुपये खर्च करने का विरोध किया. आला हजरत की कई किताबें इस्लामी समस्याओं का समाधान हैं. वे मुसलमानों के बीच आपसी झगड़ों को सुलझाते थे.