Girish Karnad Death Anniversary: 19 मई 1938 को एक कोंकणी भाषी परिवार जन्में गिरीश कर्नाड की प्रारंभिक शिक्षा मराठी भाषा में हुई थी. उनकी पत्नी का नाम सरावथी गणपथी हैं.
Trending Photos
नई दिल्ली: गिरीश कर्नाड एक उम्दा लेखक, एक प्रयोगधर्मी नाटककार, एक सफल अभिनेता, एक संवेदनशील फिल्मकार ही नहीं,बल्कि सही मायने में एक सांस्कृतिक धरोहर थे. जिन्होंने अपनी प्रतिभा से सिनेमा,साहित्य और रंगमंच में तमाम नवसृजन किए. हर समकालीन मुद्दे पर अपनी स्पष्ट तार्किक विचार रखने वाले गिरीश कर्नाड ताउम्र लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर रहे. साथ ही आजीवन सांप्रदायिक शक्तियों की मुखालफत करते रहे.
हिंदी समानांतर सिनेमा को नवयथार्थवाद से जोडने के साथ-साथ उन्होंने कन्नड़ रंगमंच को एक वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई. गिरीश कर्नाड क्षेत्रीय भाषाओं के सबसे सफलतम नाटककारों में से थे, जिन्होंने पौराणिक आख्यानों के मिथकीय चरित्रों को केंद्रीय भूमिका में रखकर तमाम रचनाएं गढी. महाकाव्यों की कथाओं को आधार बनाकर उनको समकालीन परिस्थितियों से जोड, अपने नाटक के माध्यम से उन्होंने एक सामाजिक और राजनीतिक सुधारवादी दृष्टांत दिया. अपनी हर भूमिका से इतर वह एक कुशल वक्ता भी थे. जो एक साथ कई विषयों और भाषाओं पर समान अधिकार था. सिनेमा,संगीत,नाटक,साहित्य,समाज,धर्म,दर्शन, अर्थशास्त्र समेत राजनीति हर विषय पर उनकी एक अपनी एक अंतर्दृष्टि थी.
व्यक्तिगत जीवन
19 मई 1938 को एक कोंकणी भाषी परिवार जन्में गिरीश कर्नाड की प्रारंभिक शिक्षा मराठी भाषा में हुई थी. उनकी पत्नी का नाम सरावथी गणपथी हैं. इनके बेटे का नाम रघु कर्नाड और बेटी का नाम राधा कर्नाड हैं. इनकी मृत्यु 10 जून 2019 को हुई.
ये भी पढ़ें: क्या देश के मिलने वाला है एक और मुस्लिम राष्ट्रपति? जानिए कैसा रहा मोहम्मद आरिफ
शुरुआती जीवन
गिरीश कर्नाड को बचपन से ही नाटकों में रुचि थी. 1958 में धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद रोडस स्कॉलर के तौर पर इंग्लैंड चले गए और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लिंकॉन एवं मगडेलन कॉलेज से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया. इसके बाद वह शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट कॉलेज में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर पढ़ाने लगे. 1963 से 1970 तक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,चेन्नई में काम किया.
एक प्रयोगधर्मी नाटककार
गिरीश कर्नाड ने ऐतिहासिक और मिथकीय चरित्रों को केंद्रीय भूमिका में रखकर कन्नड रंगकर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कर्नाड ने अपना पहला नाटक ययाति 1961 में प्रकाशित कराया,उसके बाद अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में उसका अनुवाद और सफल मंचन हुआ. उनके ययाति समेत अन्य नाटक जैसे तुगलक,हयवदन, तलेदंड, नागमंडल,अंजु मलि्लगे,अग्निमतु माले और 'अग्नि और बरखा' आदि ने रंगमंच पर सफलता के नए मानदंड स्थापित किए.
एक सफल अभिनेता के रूप में
सन 1969 में, प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक यू आर अनंतमूर्ति के उपन्यास संस्कार पर आधारित,फिल्म संस्कार से अपनी फिल्मी यात्रा शुरू की. उसके बाद हिंदी समानांतर सिनेमा के मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी निशांत और मंथन में इन्होंने अविस्मरणीय भूमिका निभाई. फिल्म निशांत को नेशनल फिल्म अवार्ड समेत कई अन्य पुरस्कार मिले। इसके अलावा इन्होंने मुख्यधारा की कई व्यवसायिक हिंदी सिनेमा जैसे आशा,उत्सव,मेरी जंग, पुकार,इकबाल,डोर,शिवाय और चॉक एंड डस्टर आदि में भी काम किया. उनके द्वारा अभिनीत मशहूर कन्नड फिल्मों में तब्बालियू मगाने,ओंदानोंदु कलादाली,चेलुवी, कादु और कन्नुडु हेगादिती आदि हैं. बतौर निर्देशक इनकी प्रथम फिल्म वंशवृक्ष को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. इन्होंने उत्सव और गोधूलि जैसी फिल्म का निर्देशन भी किया. लोकप्रिय अभिनेता सलमान खान की फिल्म एक था टाईगर में इनके द्वारा निभायी गयी रॉ प्रमुख की भूमिका की काफी सराहना हुई थी. इसके बाद इस फिल्म के सीक्वल टाइगर जिंदा हैं में भी इन्होंने उत्कृष्ट अभिनय किया.
टीवी पर
दूरदर्शन पर प्रसारित, मशहूर अंग्रेजी लेखक आर के नारायण की पुस्तक मालगुडी डेज पर बने धारावाहिक में भी काम किया. इसके अलावा इन्होंने टर्निंग प्वाइंट नाम के साप्ताहिक विज्ञान कार्यक्रम के लिए एंकर की भी भूमिका अदा की.
कुशल प्रशासक
उन्होंने 1974 से 1975 तक फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट पुणे के निदेशक के अलावे संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली, नेशनल एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट नई दिल्ली के प्रशासक के रूप में अपनी सफल भूमिका का निर्वहन किया.
विवाद एंव आरोप
गिरीश कर्नाड अपने वक्तव्य से आजीवन विवादों में शामिल रहे. कभी बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने का, तो पत्रकार गौरी लंकेश की प्रथम बरसीं पर खुद को अर्बन नक्सल कहने का. खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले गिरीश कर्नाड हमेशा संप्रदायिक शक्तियों के निशाने पर रहे. 2012 में टाटा लिटरेचर फेस्टिवल में आयोजकों द्वारा वीएस नायपाल को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करने की सार्वजनिक आलोचना की। इसी प्रकार नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर को दोयम दर्जे का नाटककार बता दिया था. सन 2014 के आम चुनाव में उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी पर ऐतराज किया था.
ये भी पढ़ें: जामिया की पूर्व छात्रा की बड़ी कामयाबी, छह US यूनिवर्सिटीज ने भेजा 100% फैलोशिप का ऑफर
पुरस्कार और सम्मान
गिरीश कर्नाड को 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार,1974 में पद्मश्री, 1992 में पद्मभूषण और कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया.
और अंत
उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा विंग्स ऑफ़ फायर के ऑडियो बुक में अपनी आवाज दी. उनके निधन पर कर्नाटक सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर रखा था.
-ए. निशांत
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.
Zee Salaam Live TV: