लिबास से तय होगी तालीम? मज़हब के नाम पर होने वाले वाक्यात 'विद्या मंदिर के लिबास' को करते हैं तार-तार
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लिबास से तय होगी तालीम? मज़हब के नाम पर होने वाले वाक्यात 'विद्या मंदिर के लिबास' को करते हैं तार-तार

कोई भी दर्सगाह हो जब एक तालिबे इल्म किसी दर्सगाह में दाख़िल होता है तो सब कुछ पीछे छोड़कर सिर्फ़ एक तालिबे इल्म की हैसियत से ही दाख़िल होता है और इन तलबा का सिर्फ़ एक ही मज़हब होता है, "तालीम"....

लिबास से तय होगी तालीम? मज़हब के नाम पर होने वाले वाक्यात 'विद्या मंदिर के लिबास' को करते हैं तार-तार

नई दिल्ली: मुल्क की कोई भी तंज़ीम हो, कोई भी तालीमी इदारा हो, कोई भी स्कूल हो. कोई भी दर्सगाह हो जब एक तालिबे इल्म किसी दर्सगाह में दाख़िल होता है तो सब कुछ पीछे छोड़कर सिर्फ़ एक तालिबे इल्म की हैसियत से ही दाख़िल होता है और इन तलबा का सिर्फ़ एक ही मज़हब होता है, "तालीम", स्कूल-स्कूल नहीं बल्कि विद्या का मंदिर होता है किसी इबादतगाह से कम नहीं होता लेकिन कई बार कुछ ऐसे वाक़्यात होते हैं जिसमें मज़हब की बुनियाद पर किसी तालिबेइल्म को निशाना बनाया जाता है.

ये वाक़्यात तालीमी इदारे की शबीह को ख़राब कर देते हैं. कर्नाटक में एक के बाद एक कई वाक़्यात ने विद्या के मंदिर की रिवायतों के लिबास को तार तार किया है. 31 दिसंबर 2021 को पहला ऐसा कर्नाटक के उडुपी के गवर्नमेंट पीयू कॉलेज का सुर्ख़ियों में आया. जब कॉलेज ने 1985 के ज़वाबित का हवाला देते हुए मुस्लिम तालिबात को हिजाब पहन कर क्लास में दाख़िल होने से रोक दिया. कॉलेज की तालिबात ने फ़ैसले की जमकर मुख़ालिफ़त की.

तलबा के वफ़्द ने पहले केम्पस ऑफ इंडिया तलबा यूनियन से मुलाक़ात की और फिर कॉलेज के प्रिंसिपल से भी मुलाक़ात की, कोई भी हल ना मिलने के बाद एडीसी और डीडीपीओ से मुलाक़ात की, जिसके बाद डीडीपीओ ने कालेज के प्रिंसिपल को मुतनब्बेह किया. उस वक़्त तो प्रिंसिपल ने मसले के हल की यक़ीनदहानी कराई लेकिन अगले दिन फिर तालिबात को हिजाब के सबब क्लास में दाख़िल होने नहीं दिया. बात महकमए तालीम तक पहुंची. जिसके बाद जांच में इंकिशाफ़ हुआ कि जिस ज़ाब्ते के तहत तालिबात को क्लास में दाख़िल होने से रोका था, वो ज़ाब्ता कॉलेज के वजूद में आने से क़ब्ल वजूद में था और कॉलेज इंतज़ामिया अब इसे सख्ती से नाफ़िज़ कर रहा है.

देखिए कोई सताए हमें बताएं:

बता दें कि इस ज़ाब्ते को आईन के बुनियादी हुक़ूक़ कि खिलाफ़वर्ज़ी बताते हुए तालिबात अब क्लासिज़ नहीं ले रही हैं. कर्नाटक के वज़ीरे तालीम ने इस पूरे मामले को नोटिस में लिया और कॉलेज इंतज़ामिया से भी बात की. वज़ीरे तालीम के मुताबिक ये मामला पूरी तरह से कॉलेज से मुताल्लिक़ है और ऐसे में इसे फ़िरक़ावाराना रंग देना मुनासिब नहीं है.

ये मामला यहीं नहीं रुका, इस का असर चिकमंगलूरू के कोप्पा डिग्री कॉलेज में भी नज़र आया. जब हिन्दू तालिबात ने केसरिया रंग के स्कार्फ और शाल पहनकर क्लास अटेंड करने की इजाज़त का मुतालबा किया. साथ ही मुस्लिम तालिबात के क्लास में हिजाब पहनने का भी हवाला दिया. तालिबात के मुसलसल एहतिजाज के बाद कॉलेज इंतज़ामिया ने कॉलेज कैंपस में किसी भी ड्रेस कोड को फिलहाल ख़त्म कर दिया है और सबकी इत्तेफ़ाक़े राय से फ़ैसला लेने के लिए एक मीटिंग भी तलब की. इस मामले की शिकायत कर्नाटक माइनॉरिटी सेल के सद्र से भी की गई है. जी मीडिया ने इस मामले को ले कर अक़्लियती कमीशन के चेयरमैन से बात की तो उन्होंने कहा उडुपी के कॉलेज में ज़ाब्ता 1985 से है पर तालिबात को इस पर ऐतराज़ है.

उधर मंगलुरु के पेमपेल कॉलेज में भी तलबा ने केसरिया स्कार्फ़ पहन कर क्लास में दाख़िल होने की इजाज़त मांगी. कॉलेज इंतज़ामिया को मामले को संभालने के लिये खासी मशक्कत करनी पड़ी और फ़िलहाल मामला कुछ दिनों के लिये टल गया है. अक़्लियती कमीशन के चेयरमैन अब्दुल अज़ीम ने सिलसिलेवार तरीक़े से मुख़्तलिफ़ तालीमी इदारों में इस तरह के मामलात पर इज़हारे तश्वीश किया और कहा कि इस तरह के छोटे छोटे वाक़्यात कई बार बड़ी शक्ल इख़्तियार कर लेते हैं. साथ ही उन्होंने इस मामले के निपटारे के लिये रियासत के वज़ीरे तालीम को ख़त लिखा जिससे मामले का जल्द हल हो सके.

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