अजमेर दरगाह नहीं है महादेव मंदिर..., कोर्ट से हिन्दू पक्ष को लगा झटका, सुनवाई से किया इंकार
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अजमेर दरगाह नहीं है महादेव मंदिर..., कोर्ट से हिन्दू पक्ष को लगा झटका, सुनवाई से किया इंकार

Ajmer News: अजमेर की एक अदालत ने हिन्दू संगठन के उस पिटीशन पर सुनावई करने से ंइंकार कर दिया, जिसमें उन्होंने सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को "भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर" घोषित करने की मांग की थी. ये पिटीशन हिंदू सेना ने सिविल जज की अदालत में दायर की थी.

अजमेर दरगाह नहीं है महादेव मंदिर..., कोर्ट से हिन्दू पक्ष को लगा झटका, सुनवाई से किया इंकार

Ajmer News: अजमेर की अदालत को हिन्दू संगठन को करारा झटका लगा है. यहां की एक स्थानीय अदालत ने बुधवार को मशहूर सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को "भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर" घोषित करने की मांग करने वाली एक पिटीशन पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. अदालत ने इस दौरान कहा कि इस मामले की सुनवाई करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.

दरअसल, हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपने वकील के जरिए सिविल जज की अदालत में पिटीशन दायर की थी. गुप्ता ने दावा किया था कि यह दरगाह मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है और इसलिए इसे भगवान श्री संकटमोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाना चाहिए. पिटीशन में यह भी मांग की गई है कि जिस एक्ट के तहत दरगाह संचालित होती है उसे अमान्य करार दिया जाए और यहां पर हिंदुओं को पूजा का हक दिया जाए. साथ ही  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को उस दगराह का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया जाए.

गुप्ता के वकील शशिरंजन ने कहा कि वादी ने दो साल तक रिसर्च किया है और उनके निष्कर्ष हैं कि वहां एक शिव मंदिर था जिसे "मुस्लिम राजाओं" ने ध्वस्त कर उसी जगह पर दरगाह बनवाई थी. उन्होंने बताया कि सिविल जज की अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. हालांकि,  मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को की जाएगी. हिंदू सेना के वकील ने कहा, "मैं अगली सुनवाई से पहले मुकदमे को ट्रान्सफर्ड करने के लिए जिला अदालत में आवेदन दायर करूंगा." 

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अजमेर दरगाह ने की निंदा
दूसरी तरफ, अजमेर दरगाह के खादिमों की अगुआई करने वाली संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सेक्रेटरी सैयद सरवर चिश्ती ने मुकदमे की कड़ी निंदा की. उन्होंने कहा कि ये कम्युनलिज्म के बुनियाद पर समाज को बांटने की  जानबूझकर की गई कोशिश है.

चिश्ती ने अजमेर में दरगाह के रूहानी अहमियत के बारे में बताते हुए कहा, "अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की पाक दरगाह दुनिया भर के मुसलमानों और हिंदुओं, खासकर बर्रे सगीर में काबिले एहतराम है. इसमें कोई शक नहीं है कि दक्षिण पंथी ताकतें सूफी दरगाह पर नजर डालकर मुसलमानों को अलग-थलग करने और मजहबी सद्भाव को बिगाड़ने का टारगेट बना रही हैं." 

"पीएम मोदी की चुप्पी ने ऐसे ताकतों को बढ़ावा दिया है"
चिश्ती ने कोर्ट में दायर पिटीशन को मुसलमानों के खिलाफ काम करने वाले एक बड़े ‘इकोसिस्टम’ का हिस्सा बताया. उन्होंने कहा, "पिछले एक दशक से मुस्लिम मजहब के खिलाफ लगातार कोशिशें की जा रही हैं. भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और घरों को ध्वस्त करने जैसे मुद्दों पर पीएम की चुप्पी ने ऐसी ताकतों को बढ़ावा दिया है. मैं महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर के मूल्यों में यकीन रखने वाले हमारे देश के लोगों से दरख्वास्त करता हूं कि वे ऐसी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ खड़े हों. हमें अपने प्यारे और महान मुल्क इन विभाजनकारी लोगों से बचाना चाहिए."

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