किस उम्र में हो मुस्लिम लड़की की शादी, शरियत नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगी तय !
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किस उम्र में हो मुस्लिम लड़की की शादी, शरियत नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगी तय !

Muslim Girls Minimum Age For Marriage: मुस्लिम लड़कियों की शादी कितने साल में होनी चाहिए यह अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगी. NCPCR और राष्ट्रीय महिला आयोग ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चनौती, जिसमें पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि यौन परिपक्वता की उम्र मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक मुस्लिम लड़की 15 साल के बाद शादी कर सकती है. वहीं, भारत के कानून में 18 साल से कम बच्चों को नाबालिग माना जाता है.  

 

किस उम्र में हो मुस्लिम लड़की की शादी, शरियत नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगी तय !

Muslim Girls Minimum Age For Marriage: मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक इस्लाम में 15 साल की लड़की की शादी को वैध माना गया है. हालांकि, पूरे देश की अलग-अलग अदालतों का इस पर अलग-अलग रुख है. लेकिन अब इस पर देश की सबसे बड़ी अदालत फैसला सुनाएगा. अब सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला सुनान है कि 15 साल उम्र की मुस्लिम लड़की को भी शादी की इजाजत दी जा सकती है या नहीं.  

सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
दरअसल, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने जून 2022 को 15 साल की मुस्लिम लड़की की शादी को वैध करार दिया था. यह फैसला मु्स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील के बुनियाद पर दिया गया था. इस दौरान हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक कहा था कि यौन परिपक्वता की उम्र मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र है. 

NCPCR और NCW ने अपने पक्ष में क्या-क्या कहा?
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग(NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि भारत में 18 साल तक की उम्र के बच्चियों को नाबालिग माना जाता है. इसलिए प्रोबेशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट और पॉक्सो क़ानून के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी कराना गैर-कानूनी है.

NCPCR ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम की उम्र में यौन सम्बन्धों के लिए सहमति नहीं दी जानी चाहिए, लिहाजा भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में पर्सनल लॉ के बजाए सेकुलर लॉ को तरजीह दी जानी चाहिए. वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग ( NCW) ने पक्ष रखते हुए कहा कि 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़कियों की शादी की इजाज़त गैर-कानूनी, मनमानी और भेदभावपूर्ण है. 

सुप्रीम कोर्ट का इस मामले पर अब तक का क्या है रुख?
सुप्रीम कोर्ट इससे पहले NCPCR की पिटीशन पर एक नोटिस जारी करते हुए कहा था कि 15 साल की मुस्लिम लड़की की शादी की इजाज़त वाले पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को मिसाल के तौर पर न लिया जाए. वहीं, पिछले दिनों सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय से इस मसले पर जल्द सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि इस मसले पर अलग-अलग हाईकोर्ट के अलग-अलग फैसले आ रहे हैं इसके चलते उलझन की हालत बन रही है.

इन फैसलों के खिलाफ अलग अलग पिटीशन्स दाखिल हो रही है. इसलिए बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़ी सभी पिटीशन्स पर एक साथ सुनवाई कर इस पर क्लैरिटी दे. तब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़  ने कहा था कि इस पर स्पष्टता की ज़रूरत है. हम जल्द इस पर विचार करेंगे.

शादी को लेकर देश का कानून क्या कहता है? 
भारत के कानून में 18 साल तक की उम्र के बच्चों का नाबालिग माना जाता है. वहीं, भारत में क़ानून के मुताबिक पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. इस लिहाज से प्रोबेशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट और पॉक्सो क़ानून के तहत 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी को गैर-कानूनी माना गया है. वहीं, दूसरी तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक यौन परिपक्वता ( Puberty) होने यानी 15-16 साल की मुस्लिम लड़की भी शादी कर सकती है.

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