कौन है पसमांदा मुसलमान? क्यों असराफ मुसलमान करते हैं इनकी मांगों का समर्थन!
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कौन है पसमांदा मुसलमान? क्यों असराफ मुसलमान करते हैं इनकी मांगों का समर्थन!

Who is Pasmanda Muslim? इस खबर में हम आपको बता रहे हैं कि पसमांदा मुसलमान कौन हैं? इसी के साथ यह भी बता रहे हैं कि भाजपा उन्हें क्यों साधना चाहती है?

कौन है पसमांदा मुसलमान? क्यों असराफ मुसलमान करते हैं इनकी मांगों का समर्थन!

Who is Pasmanda Muslim? भारतीय जनता पार्टी साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को साधने की लगातार कोशिश कर रही है. पिछले दिनों "मेरा बूथ सबसे मजबूत" प्रोग्राम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पसमांदा मुसलमानों के पिछड़ेपन का मुद्दा उठाया था और उन्हें भाजपा के साथ जोड़ने की कवायद की थी. प्रधानमंत्री मोदी के भाषण से पहले ही भारतीय जनता पार्टी पसमांदा मुसलमानों के बीच अपनी पैठ जमाने की कोशिश शुरू कर चुकी है. इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वी सी प्रोफेसर तारिक मंसूर को पहले उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य बनाया फिर भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी किस कदर पसमांदा मुसलमानों को अपनी तरफ मुतवज्जा करने की कोशिश कर रही है.

कौन है पसमांदा मुसलमान?

पसमांदा शब्द फारसी जबान का एक शब्द है. इसका मतलब होता है वह लोग जो पीछे छूट गए हों या जिन पर हाकिमों की तरफ से जुल्म और ज्यादती की गई हो. इसलिए जो पिछड़े मुसलमान हैं उनके साथ इस शब्द को जोड़कर पसमांदा मुसलमान शब्द को तैयार किया गया है. मुसलमानों के साथ पसमांदा शब्द पहली बार 100 साल पहले जोड़ा गया था. 19वीं सदी के दूसरे दशक में पिछड़े मुसलमानों ने अपने हक की बातों के लिए पसमांदा आंदोलन खड़ा किया था. बिहार के सारण जिले का बहुचर्चित मदरसा दारुल उलूम गौसिया बरकातीया के प्रधानाध्यापक मौलाना जहांगीर आलम मिस्बाही कहते हैं "इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए सबसे अहम किताब कुरान है और कुरान में कहीं जाति व्यवस्था का जिक्र नहीं है. कुरान में कबीलों का जिक्र है और वह कबीले वाले एक दूसरे के लिए बराबर हैं. दोनों एक दूसरे में शादी भी करते आ रहे हैं और इसका सबसे अच्छा उदाहरण हम तुर्की के सुल्तान रहे उस्मान गाजी और उनके वालिद आर्तगुल के वक्त को पढ़कर समझ सकते हैं. ऐसे में इस्लाम धर्म से जाति व्यवस्था को जोड़ना सही नहीं है. 

दूसरे धर्मों से आई जाति व्यवस्था

भारत में जो जाति व्यवस्था है वह गैर कौमों की नकल है. जानकारों का कहना है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के ज्यादातर मुसलमानों के पूर्वज हिंदू धर्म से इस्लाम धर्म में आए थे. इसलिए इन तीनों देशों में मुसलमान के अंदर जाति व्यवस्था हो गई. इसी जाति व्यवस्था का नतीजा पसमांदा समाज हैं.

पसमांदा समाज में मुसलमानों की कितनी जातियां?

सैय्यद ,शेख, पठान और मुगल को छोड़कर मुस्लिम समाज की लगभग सभी जातियां पसमांदा समाज का हिस्सा मानी जाती हैं. जैसे- कुंजड़े (राइन), जुलाहा (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), हजाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी/गद्दी), धोबी (हवाराती), लोहार-बढ़ाई (सैफी), दर्जी (इदरीसी) वगैरा. हालांकि धर्म परिवर्तन के बाद भी कुछ लोगों ने अपने नाम के आगे अपने पुराने धर्म के जाति को जोड़ कर रखा है. जैसे त्यागी, राजपूत, चौधरी और गुज्जर वगैरा. ऐसे लोगों को भी उनके जातियों के मुताबिक ही भागों में बांटा जाता है. जैसे त्यागी और राजपूत को असराफ मुसलमान तो गुज्जर और चौधरी को पसमांदा मुसलमान माना जाता है.

पसमांदा मुसलमान को भाजपा क्यों साधना चाहती है?

मुसलमानों की कुल आबादी की लगभग 85% जनसंख्या पसमांदा मुसलमान है और यह सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक रूप से बहुत पीछे हैं. इसी मौके का फायदा उठाकर भारतीय जनता पार्टी पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाकर अपने आप को मुस्लिम हितैषी साबित करना चाहती है. साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव में लगभग 100 मुस्लिम निर्णायक सीटों पर जीत सुनिश्चित करना चाहती है. इन्हीं कारणों से बीते दिनों पसमांदा समाज से ताल्लुक रखने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर को उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य नियुक्त किया और बाद में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया. 

पसमांदा मुसलमान के बारे में क्या सोचते हैं असराफ मुसलमान?

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर तारिक अबरार बताते हैं कि "मैं खुद पसमांदा समाज से ताल्लुक रखता हूं. हाल के दिनों में जिस तरह से मुसलमानों को पसमांदा और असराफ करके दो हिस्सों में विभाजित करने की कोशिश की जा रही है, यह बिल्कुल सही नहीं है. पसमांदा मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण असराफ मुसलमान हो ही नहीं सकता. हमारे बुजुर्गों ने जातिगत भेदभाव से आजादी के लिए धर्म परिवर्तन किया था, जो हमें हमारे नए धर्म में इज्जत से मिला. भारत का पसमांदा मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी मुसलमान बहुत पीछे हैं. पसमांदा मुसलमान की तादाद ज्यादा है, इसलिए उनमें पिछड़ेपन ज्यादा दिखाई देता है. हालांकि अगर अनुपात में देखा जाए तो असराफ और पसमंदा मुसलमान समान अनुपात में पिछड़े हुए हैं."

मुस्लिम बन सकते हैं सांसद विधायक

वहीं असराफ मुस्लिम बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले गुलाब खान उर्फ गुलाम गौस कहते हैं कि "हम एक पैगंबर की उम्मत हैं, हमारे लिए कोई जाति व्यवस्था नहीं है. हम एक दूसरे में शादी विवाह खान-पान और हर तरह के ताल्लुक बनाए रखते हैं. रहा सवाल भारतीय जनता पार्टी के मुस्लिम प्रेम का तो, हम भी चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से भारत के कई कानूनों में अपने बहुमत के दम पर बदलाव किया है. उसी तरह आरक्षण के कानून में भी बदलाव करते हुए और अपना पसमांदा मुसलमान प्रेम को सच साबित करते हुए भारतीय मुसलमानों को दलित का दर्जा दे दे और आरक्षित चुनावी क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का अधिकार दे दे. क्योंकि ज्यादातर रिजर्व चुनावी इलाके मुस्लिम बहुल हैं. जहां से बहुत आसानी से मुसलमान सांसद और विधायक बन सकते हैं."

पसमांदा मुसलमानों को मिले दलित का दर्जा

जामिया मिलिया इस्लामिया के पत्रकारिता के छात्र रहे और कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई के राष्ट्रीय संयोजक एसएम जीशान अहमद खान कहते हैं " भारतीय जनता पार्टी का पसमांदा मुस्लिम प्रेम वास्तविक प्रेम नहीं, एक छल है. भारतीय जनता पार्टी को पसमांदा मुसलमान से इतना ही प्रेम उबर रहा है, तो वह बराए मेहरबानी जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए दलित आरक्षण के तर्ज पर पसमांदा मुसलमानों को भी आरक्षण दे दे. जब देश के अहम चार धर्म में से दो धर्मों के लोगों को दलित का दर्जा प्राप्त है, तो दूसरे दो धर्मों के लोगों को दलित का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है?

रंगनाथ मिश्रा की सिफारिश नहीं हुई लागू

जब कांग्रेस की सरकार थी तब कांग्रेस ने इस मसले का हल निकालने के लिए रिटायर्ड जज जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था. ताकि रिजर्वेशन से वंचित ईसाईयों और पसमांदा मुसलमानों को रिजर्वेशन की कटेगरी में शामिल किया जा सके. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

-गुलाम रजा खान

यह लेखक के अपने विचार हैं. ज़ी सलाम इसकी तस्दीक नहीं करता है.

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