फिलिस्तीन में इंसानों की लाशों पर मौन अरब वर्ल्ड, मस्जिद अक्सा में यहूदियों के घुसने पर क्यों हो रहा बेचैन ?
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फिलिस्तीन में इंसानों की लाशों पर मौन अरब वर्ल्ड, मस्जिद अक्सा में यहूदियों के घुसने पर क्यों हो रहा बेचैन ?

Israel's Minister Al-Aqsa Mosque visit: इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर और उनके 2000 समर्थकों द्वारा पूर्वी यरूशलम में यहूदियों के लिए प्रतिबंधित अल अक्सा मस्जिद में प्रवेश करने, वहां नारे लगाने और मुस्लिम नमाजियों को पीटने के बाद अरब दुनिया में तनाव काफी बढ़ गया है. इस घुसपैठ के बाद फिलिस्तीनियों की मौत पर मौन अरब लीग मुखर होकर इसराइल की आलोचना कर रहा है. 

 फिलिस्तीन में इंसानों की लाशों पर मौन अरब वर्ल्ड, मस्जिद अक्सा में यहूदियों के घुसने पर क्यों हो रहा बेचैन ?

यरूशलम: पिछले 8 माह से फिलिस्तीन में रोज़ इस्राइली बमबारी में मारे जा रहे इंसानों की लाशों पर मौन पूरा अरब वर्ल्ड येरुसलम में अल अक्सा मस्जिद में यहूदियों के घुसने पर अचानक बेचैन हो रहा है. पूरी दुनिया के मुसलमान इसराइल के इस नए कदम की आलोचना कर रहे हैं. यहाँ तक कि अरब मुल्कों में आपस में बगावत रखने वाले देश भी इस मुद्दे पर एक सुर मिलकर इसराइल की आलोचना कर रहा है. 

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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यहूदियों ने अभी क्या किया है अल अक्सा मस्जिद में ? 
दरअसल, इजरायल के दक्षिणपंथी राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर ने पूर्वी यरूशलम में अति संवेदनशील माने जाने वाले और मुसलामानों के लिए पवित्र अल-अक्सा मस्जिद परिसर में अपने लगभग दो हज़ार समर्थकों और दक्षिणपंथी समूह के साथ घुसकर मस्जिद में यहूदी धर्म के मुताबिक पूजा- पाठ किया. इसके अलावा इन लोगों ने वहां मौजूद फिलिस्तीनी मुसलमानों के साथ मारपीट भी की.  मंगल को  मंत्री इतामार बेन-ग्वीर के कार्यालय ने खुद एक वीडियो जारी कर इसकी जानकारी दी थी, जिसमें बेन-ग्वीर को अपने समर्थकों के साथ परिसर में घूमते और नारे लगाते हुए देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों और विडियो में दर्जनों यहूदी इस स्थल पर प्रार्थना करते दिखाई दे रहे हैं. बेन-ग्वीर ने अपने एक ब्यान में कहा, "हमारी नीति  मस्जिद के अंदर यहूदियों को प्रार्थना करने की इजाज़त देने की है. हालांकि, इसराइल सरकार ने बेन-ग्वीर की इस हरकत से खुद को अलग कर लिया है और कहा है कि बेन-ग्वीर इस जगह पर कोई नई नीतियाँ लागू नहीं कर सकते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री सहित किसी भी मंत्री की कोई निजी नीति नहीं है. 

 

 मस्जिद में यहूदियों के प्रार्थना करने पर है पाबन्दी 
उल्लेखनीय है कि इस जगह पर यहूदी या किसी गैर-मुस्लिम श्रद्धालु को जाने की इज़ाज़त तो है, लेकिन उन्हें वहां प्रार्थना करने की इज़ाज़त नहीं होती है. ये एक अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि है, जिससे इसराइल बंधा हुआ है, लेकिन इसके बावजूद इसराइल के यहूदी यहाँ घुसपैठ करते रहते हैं, वो नमाजियों को परेशान करते हैं. उनके साथ मारपीट करते हैं.   

अमेरिका और अरब लीग ने की इसराइल के कार्रवाई की आलोचना 
इसराइल के मस्जिद में घुसने के ताज़ा विवाद पर फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता ने इसकी निंदा की है और उकसावे के इस नतीजे के बारे में चेतावनी दी है. वहीँ, जॉर्डन के विदेश मंत्रालय ने इसराइल के इस कार्रवाई को अंतर्राष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन" बताया है. इजरायल में अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने भी इसराइल के इस कदम की निंदा की है, जिसमें कहा गया कि एकतरफा कदम यरुशलम में यथास्थिति को खतरे में डालने वाला है. वहीँ दूसरी तरफ अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल-घीत ने इस्राइली मंत्री के इस कदम की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि "ये कट्टरपंथी स्थिति को चरम पर ले जाने वाला और जानबूझकर दुनिया भर के लाखों मुसलमानों की भावनाओं को भड़काने की कार्रवाई है. अबुल-घीत ने कहा कि अल-अक्सा पर हमला इजरायली पुलिस की सुरक्षा में हुआ है, जिसने पुराने शहर को एक सैन्य छावनी में बदल दिया और यहं मुसलमानों को नमाज़ पढने पर पाबंदी लगा दी गयी है.  इस बीच, मिस्र के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इजरायली गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार अंतरराष्ट्रीय कानूनों और अल-अक्सा में मौजूदा ऐतिहासिक और कानूनी स्थिति का उल्लंघन है. 
 

इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म के लोग अल अक्सा पर करते हैं अपना दावा 
दरअसल, अल-अक्सा मस्जिद का जिक्र इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्मों की किताबों में हैं. तीनों धर्मों के पैग़म्बर का इससे रिश्ता है. इसलिए मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों तीनों के लिए यह मस्जिद काफी अहमियत रखती है. ये मस्जिद लंबे अरसे से तीनों पक्षों के बीच टकराव और हिंसा का केंद्र रही है.अरब और दुनिया भर के मुसलमान सऊदी अरब की मक्का में स्थित मस्जिद के बनने के पहले अल अक्सा मस्जिद की तरफ ही अपना मुहं करके नमाज़ पढ़ते थे. मुसलमान मानते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद ( स.) को जब मेराज पर ले जाया गया था, यानी जब उनका सातवें आसमान पर ईश्वर से संवाद हुआ, तो उन्हें इसी जगह से ले जाया गया था. इस मस्जिद को बनाने वाले इब्राहिम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई सभी अपना पैगम्बर मानते हैं. ईसा भी यहीं पैदा हुए थे और उन्हें सूली पर भी यहीं चढ़ाया गया था. जबकि यहूदी इसे हज़रत दाऊद की जन्मस्थली मानते हैं. यहूदी और मुसलमान दोनों अपनी-अपनी धार्मिक किताबों में किये गए दावों के मुताबिक ये मानते हैं कि इस इलाके से मुसलमान और यहूदी दोनों का सफाया होगा और एक विशेष धर्म का कब्ज़ा होगा. इसके अलावा इसी मस्जिद के दो अन्य धरोहर हैकल सुलेमानी और ताबूते सफीना पर भी तीनों धर्मों के लोग अपना कब्ज़ा चाहते हैं. सभी का मानना है कि ये दो धरोहर जिनके पास होगा, वो देश और कौम दुनिया में तरक्की करेगा और उनका अधिपत्य स्थापित होगा. मुसलमान और ईसाई आज मानते हैं कि ये दोनों धरोहर आज इसराइल के पास है. यही वजह है कि दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे को मरने- मारने पर उतारू रहते हैं, और वो धार्मिक तौर पर भी इसे बुरा नहीं मानते हैं.  
 

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