विश्वविद्यालयों में प्रत्येक 10 में से एक छात्र किसी अन्य द्वारा लिखा गया असाइनमेंट जमा करता है, 11 फीसदी छात्र किसी अन्य का असाइनमेंट डाउनलोड कर उसे अपना बताकर जमा कर देता है.
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पर्थः यूनिवर्सिटीज में दोस्तों के असाइमेंट से नकल कर अपना असाइनमेंट तैयार करना न सिर्फ हिन्दुस्तान में चलन में है बल्कि ये एक वैश्विक समस्या दिखाई देती है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक सर्वे में यह तथ्य निकलकर सामने आया है. हाल तक, यह माना जाता था कि ऑस्ट्रेलिया में विश्वविद्यालयों के लगभग 2-4 प्रतिशत छात्र-छात्रा किसी अन्य के द्वारा लिखा गया असाइनमेंट जमा करते हैं, लेकिन नए अध्ययन में पता चला है कि असल आंकड़ा लगभग 8-11 प्रतिशत है. इसके साथ ही इस तरह की नकल करनेवाले 95 फीसदी छात्र-छात्रा पकड़ में भी नहीं आते हैं. जब छात्र अपना असाइनमेंट किसी अन्य से लिखवाने की व्यवस्था करते हैं तो उसे ‘‘कॉन्ट्रैक्ट चीटिंग’’ कहते हैं.
खतरनाक है ये प्रवृति
विश्वविद्यालयों में निबंध और रिपोर्ट जैसे असाइनमेंट से छात्र अपने द्वारा अर्जित ज्ञान का प्रदर्शन करने के साथ ही यह भी दिखाते हैं कि उन्हें अभी क्या सीखना है? यदि कोई अन्य व्यक्ति असाइनमेंट लिखता है तो इसका मतलब है कि छात्रों को वह जानकारी नहीं है जो उन्हें होनी चाहिए. इसके परिणाम काफी खतरनाक हो सकते हैं. क्या आप किसी ऐसी नर्स से इंजेक्शन लगवाना चाहेंगे जिसका दवा की खुराकों को मापने संबंधी असाइनमेंट किसी और ने लिखा हो?
4,098 विद्यार्थियों ने सर्वे में लिया हिस्सा
इस सर्वे में छह विश्वविद्यालयों और प्रबंधन जैसे पेशेवर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने वाले छह स्वतंत्र उच्च शिक्षा प्रदाताओं के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया था. कुल मिलाकर, 4,098 विद्यार्थियों ने सर्वे में हिस्सा लिया. सर्वेक्षण में सामने आईं चीजों के आधार पर अनुमान लगाया गया कि आठ प्रतशत छात्रों ने अपने लिए असाइनमेंट लिखवाने के वास्ते किसी अन्य को धन प्रदान किया और 11 प्रतिशत ने पहले से लिखे गए असाइनमेंट को इंटरनेट से डाउनलोड कर इसे अपने असाइनमेंट के रूप में जमा करने की बात स्वीकार की.
भाषाई आधार पर भी अलग-अलग आए नतीजे
कॉन्ट्रैक्ट चीटिंग की बात स्वीकार करने वालों में से अधिकतर छात्र ऐसे हैं जिनकी प्रथम भाषा अंग्रेजी नहीं है. प्रथम भाषा के रूप में जिन छात्रों की भाषा अंग्रेजी है, उनके मुकाबले ऐसे तीन गुना अधिक छात्रों ने कॉन्ट्रैक्ट चीटिंग की बात स्वीकार की जिनके लिए अंग्रेजी द्वितीय भाषा है. इससे जाहिर होता है कि उच्च शिक्षा प्रदाताओं को इस बात की जरूरत है कि वे अपने छात्रों के लिए अंग्रेजी क्षमता मानक सुनिश्चित करें. उन्हें उन छात्रों को अतिरिक्त भाषा सहायता उपलब्ध कराने की भी जरूरत है जिन्हें इसकी आवश्यकता है.
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