Akbar Allahabadi Poetry: अकबर इलाहाबादी की पैदाइश 16 नवंबर 1846 ई. को इलहाबाद में हुई. उन्होंने 9 सितंबर 1921 को वफात पाई. आज पेश हैं उनके चुनिंदा कलाम.
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Akbar Allahabadi Poetry: अकबर इलाहाबादी ने मौजूदा वक्त की बदतर हालत पर चोट की है. उन्होंने उन्हें भी बहुत खरी खोटी सुनाई है जो कौम के दर्द के नाम पर अपनी जेबें भरते हैं. उनके कलाम में उत्तरी भारत में रहने-बसने वालों की तमाम मानसिक व नैतिक मूल्यों, तहज़ीबी कारनामों और हुकूमती कार्यवाईयों के भरपूर सुराग़ मिलते हैं.
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है
मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
पोलाओ खाएँगे अहबाब फ़ातिहा होगा
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर
पहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर ले
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
इस गुलिस्ताँ में बहुत कलियाँ मुझे तड़पा गईं
क्यूँ लगी थीं शाख़ में क्यूँ बे-खिले मुरझा गईं