'कामाख्या मंदिर के लिए औरंगजेब ने दी जमीन', AIUDF विधायक के दावे पर बवाल; CM बिस्वा सरमा ने दी चेतावनी
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'कामाख्या मंदिर के लिए औरंगजेब ने दी जमीन', AIUDF विधायक के दावे पर बवाल; CM बिस्वा सरमा ने दी चेतावनी

Kamakhya Temple: ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अमीनुल इस्लाम के इस  बयान पर असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा (Hemanta Biswa Sharma) ने सख्त एतराज़ जताया है. 

'कामाख्या मंदिर के लिए औरंगजेब ने दी जमीन', AIUDF विधायक के दावे पर बवाल; CM बिस्वा सरमा ने दी चेतावनी

गुवाहाटी: असम की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अमीनुल इस्लाम ने मुगल शासक औरंगजेब के हवाले से एक दावा किया, जिससे स्टेट में नया बवाल शुरू हो गया. विधायक अमीनुल इस्लाम ने बयान दिया है कि औरंगजेब ने 400 मंदिरों के लिए जमीन दान की थी. इनमें से ही एक मंदिर गुवाहाटी का प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya Temple) भी है

सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने जाताया सख्त एतराज़
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अमीनुल इस्लाम के इस  बयान पर असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा (Hemanta Biswa Sharma) ने सख्त एतराज़ जताया है. उन्होंने कहा है कि क विधायक जेल में है. अगर इस तरह का बयान फिर से कोई देगा तो वह भी जेल भेज दिया जाएगा. 

'मैं वही कह रहा हूं, जो देश ने मुगल शासन के दौर में देखा'
मंगलवार को एएनआई से बात करते हुए अमीनुल इस्लाम ने कहा, 'मैं वही कह रहा हूं, जो देश ने मुगल शासन के दौर में देखा था. एक इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि औरंगजेब ने 400 से ज्यादा मंदिरों के लिए जमीन दान की थी.'

'सीएम को मुझे धमकाने की बजाय असम साहित्य सभा को धमकी देनी चाहिए'
अपने दावों को लेकर ऐतराज पर उन्होंने कहा कि सीएम को मुझे धमकाने की बजाय असम साहित्य सभा को धमकी देनी चाहिए, जिसने किताब  'पवित्र असम' छापी है. उन्होंने कहा कि 'पवित्र असम'  के मुताबिक औरंगजेब के दरबार के एक अधिकारी ने जमीनों के दान का आदेश दिया था.

'भारत में जिस किसी ने भी हुकूमत की है उसने सेकुलरिज्म का पालन किया'
AIUDF के विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा कि सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि इंडिया 1947 के बाद से एक सेक्युलर देश बना है. इस पर मैंने कहा है कि भारत में जिस किसी ने भी हुकूमत की है उसने सेकुलरिज्म का पालन किया है. हिंदू शासकों के दौर में मुस्लिम वर्ग के लोग अपनी आस्था के लिए आजाद थे और ऐसी ही स्थिति मुस्लिम शासकों के दौर में भी थी.'

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