क्या एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला पूर्व पति से गुजारा-भत्ता पाने की हकदार है, क्या कहता है कानून ?
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क्या एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला पूर्व पति से गुजारा-भत्ता पाने की हकदार है, क्या कहता है कानून ?

Divorced Muslim woman entitled to maintenance until she remarries says Allahabad HC : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाते हुए एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के पति को अपनी पूर्व पत्नी को दूसरी शादी होने तक उसे गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया है. 

अलामती तस्वीर

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक फैसले में कहा है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला (Divorced Muslim woman) भी अपने पूर्व पति से अपने लिए गुजारा-भत्ता पाने के लिए उस वक्त तक हकदार है, जब तक कि उसकी कहीं दूसरी शादी नहीं हो जाती (Muslim woman entitled to maintenance until she remarries) है या वह कर लेती है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें पहले गुजारा भत्ता के भुगतान के लिए एक निर्धारित समय-सीमा तय की गई थी.
जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की बेंच एक मुस्लिम महिला जाहिदा खातून से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसके पति नरुल हक ने 11 साल की शादी के बाद 2000 में उसे तलाक दे दिया था.

निचली अदालत ने गलती की है 
हाईकोर्ट ने 15 सितंबर, 2022 को गाजीपुर परिवार अदालत के प्रधान न्यायाधीश के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता ज़ाहिदा खातून सिर्फ ’इद्दत’ की अवधि के लिए भरण-पोषण की हकदार थी, जिसे तलाक की तारीख से लेकर तीन महीने और 13 दिनों के वक्फे के तौर पर परिभाषित किया जाता है.  हाईकोर्ट ने कहा, “हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि प्रधान न्यायाधीश, परिवार अदालत, गाजीपुर ने फैसला देने में इस बात की गलती की है कि अपीलकर्ता सिर्फ इद्दत की अवधि के लिए गुजारे-भत्ते की हकदार है.

गुजारा-भत्ता का प्रावधान भी शामिल है
इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा है कि नीचली अदालत ने डेनियल लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ (2001) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पढ़ने और समझने में गलती की है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मुस्लिम पति द्वारा तलाकशुदा पत्नी के भविष्य के लिए उचित और उचित प्रावधान करने के लिए उत्तरदायी है ठहराया गया था, जिसमें स्पष्ट रूप से उसके गुजारा-भत्ता का प्रावधान भी शामिल है. यह प्रावधान इद्दत की अवधि से आगे तक के लिए भी है. 

इद्दत अवधि से आगे भी भरण पोषण करने के लिए बाध्य है पूर्व पति 
हाईकोर्ट ने फिर से इस मामले को वापस सक्षम अदालत को भेज दिया ताकि तीन महीने के अंदर गुजारा भत्ते की रकम और पति द्वारा कानून के अनुसार अपीलकर्ता को संपत्तियों की वापसी का निर्धारण किया जा सके. शीर्ष अदालत ने 2001 के फैसले में कहा था कि एक मुस्लिम पति अपनी तलाकशुदा पत्नी को इद्दत अवधि से आगे भी भरण पोषण करने के लिए बाध्य है. जाहिदा खातून ने 21 मई, 1989 को हक से शादी की थी. उस समय, हक बेरोजगार था, लेकिन बाद में उसे राज्य डाक विभाग में नौकरी मिल गई. फिर  28 जून 2000 को उसने जाहिदा को तलाक दे दिया और 2002 में दूसरी महिला से शादी कर ली थी.

Zee Salaam

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