Majaz Lakhnawi: कान्स मार्चे डू फिल्म 2023 में उर्दू अदब के मशहूर शायर मजाज लखनवी पर फिल्म 'मजाजः ए लाइफ इन पोएट्री’ दिखाई गई. इस फिल्म का निर्माण रेख्ता फाउंडेशन ने किया है.
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कान्सः उर्दू के मशहूर शायर मजाज लखनवी की जिंदगी और उनकी शायरी पर बनी एक फिल्म मो कान्स फिल्म 2023 समारोह में स्क्रीनिंग के लिए भारतीय प्रविष्टियों के तौर पर शामिल किया गया है. हुमा खलील द्वारा लिखित और निर्देशित 'मजाजः ए लाइफ इन पोएट्री’ का शनिवार को यहां प्रदर्शन किया गया था.
रेख़्ता फ़ाउंडेशन के संस्थापक खलील, जो अपनी बेहद लोकप्रिय वेबसाइट और पत्रों के एक मशहूर वार्षिक उत्सव के जरिए उर्दू जबान और अदब के प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं, उनकी योजना ऑडियो-विज़ुअल माध्यम का इस्तेमाल कर कवियों, शायरों और लेखकों के बारे में उनकी कहानियां बताने की है. वह उन तमाम लोगों पर ऐसी फिल्में बनाना चाहते हैं, जिन्होंने उर्दू भाषा के विकास में अपना योगदान दिया है. दो घंटे की यह फिल्म श्रृंखला में पहला शो खलील ने मजाज पर बनाया है.
यह एक इत्तेफाक ही है कि रेख़्ता फ़ाउंडेशन के लॉन्च के दसवें साल में 'मज़ाज़ः ए लाइफ़ इन पोएट्री' उनके कद्रदानों के देखने के लिए तैयार है. खलील कहते हैं, “हमने 2023 में फिल्म बनाना शुरू किया था और इस साल अप्रैल में फिल्म पूरी हो गई.’’
'मजाजः ए लाइफ इन पोएट्री' का प्रीमियर 11 मई को लंदन के नेहरू सेंटर में यूके एशियन फिल्म फेस्टिवल में किया गया था.
खलील ने कहा, “जिस बात ने मुझे मजाज़ की तरफ आकर्षित किया, वह यह है कि वह उर्दू के पहले लेखक और शायर थे जिन्होंने महिलाओं की बात की न कि सिर्फ उनकी सुंदरता और आकर्षण की. वह एक रोमांटिक शायर थे और जिस तरह से उन्होंने महिलाओं की बराबरी की बात की इस लिहाज से वह अपने दौर में एक क्रांतिकारी शायर भी थे.“ खलील के मुताबिक, मजाज ने अपनी कविताओं में अपने समुदाय की महिलाओं को पर्दा छोड़ने और स्वतंत्र होकर अपने अधिकार का दावा करने के लिए प्रोत्साहित किया.
मजाज ने एक प्रसिद्ध दोहे में महिलाओं को अपने 'आंचल’ (घूंघट) को विद्रोह के 'परचम’ (ध्वज) में बदलने की अपील की है. ग़ज़ल गायक अमरीश मिश्रा ने अपने पहले अभिनय कार्य में फ़िल्म में मज़ाज़ का किरदार निभाया है. मिश्रा ने मजाज की जिंदगी को एक शोधार्थी की नज़र से देखा है.
खलील कहते हैं, " मिश्रा इस भूमिका के लिए बिल्कुल फिट हैं. न सिर्फ उनका उच्चारण अचूक है, बल्कि वह मजाज़ की कविताओं को भी अपनी आवाज़ में सुनाते हैं."
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