'एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें', फिराक गोरखपुरी के शेर
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'एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें', फिराक गोरखपुरी के शेर

Firaq Gorakhpuri Poetry: फिराक गोरखपुरी उर्दू के मशहूर शायर थे. उनका असल नाम रघुपति सहाय था. वो 1 अगस्त 1896 ई. में गोरखपुर में पैदा हुए. फिराक को शायरी विरासत में मिली. उनके वालिद शायर थे.

 

'एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें', फिराक गोरखपुरी के शेर

Firaq Gorakhpuri Poetry: फिराक गोरखपुरी ने उर्दू और फ़ारसी की तालीम घर पर हासिल की. फिराक ने 20 साल की उम्र में पहली ग़ज़ल कही. फिराक काफी छोटे जब उनके वालिद का इंतेकाल हो गया. छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी और बेजोड़ शादी ने उन्हें बहुत परेशान किया. सियासी सरगर्मियों की वजह से उन्हें 18 माह जेल में रहना पड़ा. भारत सरकार ने उनको पद्म भूषण ख़िताब से सरफ़राज़ किया.

कोई समझे तो एक बात कहूँ 
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं 

तेरे आने की क्या उमीद मगर 
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं 

ये माना ज़िंदगी है चार दिन की 
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी 

हम से क्या हो सका मोहब्बत में 
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की 

तेरे आने की क्या उमीद मगर 
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं 

जो उन मासूम आँखों ने दिए थे 
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ 

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो 
तुम को देखें कि तुम से बात करें 

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें 
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं 

न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद 
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था 

बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम 
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई 

कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं 
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका 

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास 
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं 

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