Eid ul Fitr 2021: ईद तो एक महीने की इबादतों का सिला है, ईद रोज़ेदारों का तोहफ़ा है, ईद में ख़ुशियां मनाना तो रोज़ोदारों का हक़ है. लेकिन हालात मुख़्तलिफ़ हैं तो ईद भी मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में मनाइए. इस ईद किसी दूसरे के काम आइए.
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नई दिल्ली/ सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: ये कैसी ईद है, ना तो चांद का इंतेज़ार, ना दीदार का इंतेज़ार, ना दिलदार का इंतेज़ार, ना दिल बेक़रार और ना ख़ुशियों का इज़हार. अब ना चार मीनार, ना क़ुतुब मीनार, ना मै ख़्वार, ना ख़ुमार, ना राह हमवार ,रास्ते पुरख़ार . बस इतना समझ लीजिए कि इस ईद से दिल बेज़ार है , त्योहार के रोज़ भी वही रोज़ जैसी सुबह है, हम हैं और अख़बार है, अख़बार भी क्या अख़बार में तो सारा जहां बीमार है. ऐसा लगता है कि बहुत दूर हो जा चुका है ख़ुशियों का संसार
ख़ुशियों के इस आसमान पर ग़मों के घने बादलों का ऐसा साया है कि जश्न तो छोड़िए मुस्कुराने का भी दिल नहीं चाहता, मायूसी के इस माहौल में आप ही बताइए हम कैसे किस मुंह से किसी को ईद मुबारक कहें, इस मूज़ी वबा ने हमारे साथ क्या किया, हमारे अपनों के साथ क्या किया, हमसे हमारे क़ीमती और ख़ूबसूरत लम्हात छीन लिए. ईद तो आई है लेकिन क्या ये पहले की ईदों जैसी है, क्या हम सुबह सुबह नए लिबास में ख़ुशबुओं से मोअत्तर नमाज़े ईद के लिए घर से निकल सकते हैं. क्या हम सफ़ में बाजमात नमाज़ अदा कर सकते हैं. क्या हम गले मिल सकते हैं. क्या हम टोलियां बना कर एक दूसरे के घरों में ईद मुबारक कहने जा सकते हैं. क्या हम लंबे लंबे दस्तरख़्वान सजा कर लवाज़मात का लुत्फ़ उठा सकते हैं. क्या हमारे वो सारे अपने मौजूद हैं जिनसे हम ईदी लिया या दिया करते थे.
ऐसे कई सवालों का जवाब सिर्फ़ एक नहीं पर मुशतमिल है, इस वबा ने ज़िंदगियां छीन लीं, लोगों के रोज़गार छीन लिए, दो वक़्त की रोटी के साधन छीन लिए, जो हाथ दूसरों की मदद के लिए उठते थे वो अब ख़ुद हाथ फैलाए मदद का इंतेज़ार कर रहे हैं. कल तक जहां ख़ुशियों के मेले लगा करते थे आज वहां ग़मों के स्याह अंधेरे हैं.
ईद तो एक महीने की इबादतों का सिला है, ईद रोज़ेदारों का तोहफ़ा है, ईद में ख़ुशियां मनाना तो रोज़ोदारों का हक़ है. लेकिन हालात मुख़्तलिफ़ हैं तो ईद भी मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में मनाइए. इस ईद किसी दूसरे के काम आइए, किसी दर्दमंद के लिए मरहम बन जाइए, किसी ज़रुरतमंद की ज़रुरत पूरी कर दीजिए, किसी तंगदस्त के घर राशन का इंतेज़ाम करा दीजिए, किसी उजड़े कुंबे को मुस्कुराने का मौक़ा मुहैय्या करा दीजिए.
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