2024 में महाराष्ट्र, झारखण्ड और 10 राज्यों के 31 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप- चुनाव के पहले भाजपा के फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा देकर हिन्दू वोटर्स को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन इन नारों से भाजपा के ही कुछ नेता और सहयोगी दल नाराज़ हैं. इससे इस नारे की कामयाबी संदिग्ध हो गयी है.. पढ़े पूरी रिपोर्ट
Trending Photos
नई दिल्ली: आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज़ाद भारत के संसदीय राजनीति में ऐसे बहुत से नारे गढ़े गए जो भारतीय राजनीति के इतिहास में जिन्दा जावेद हो गए. उन नारों ने अवाम में जोश भरने का काम किया. उन्हें बड़े पैमाने पर एकजुट और प्रेरित किया. भारत की संसदीय राजनीति में उन नारों को गढ़ने वाले नेताओं का नाम यहाँ की अवाम काफी इज्ज़त से लेती है. वहीँ, देश में 2024 में महाराष्ट्र, झारखण्ड और 10 राज्यों के 31 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप- चुनाव के पहले भाजपा के फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा दिया है, वो नारा भी इतिहास बन सकता है, चाहे भाजपा इस चुनाव में जीते या हारे. विपक्ष जहाँ इस नारे का विरोध कर इसे विध्वंसक बता रहा है, वहीँ सत्ता पक्ष इस नारे से गदगद है. वह इसे एक सफल चुनावी हथियार के तौर पर देख रहा है.. वहीँ कुछ भाजपा नेताओं सहित सरकार के सहयोगी दलों और उसके नेताओं ने योगी के इस नारे से खुद को अलग कर लिया है. इस तरह ये नारा भाजपा के लिए एक दो धारी तलवार साबित हो सकता है, जो पार्टी को शिकस्त भी दे सकता है और जीत भी दिला सकता है. भाजपा के इस जीत और हार से देश के अवाम के मूड का भी एक बार फिर टेस्ट हो जाएगा कि जनता का मन साम्प्रदायिक राजनीति और बयानबाज़ी से उब चुकी है, या अभी भी उहें इससे खादपानी मिल रहा है?
भाजपा नेताओं ने हाथों- हाथ लिया ये नारा
उत्तर प्रदेश के एक जन सभा के दौरान योगी आदित्यनाथ द्वारा दिया गया ' बटेंगे तो कटेंगे' का या नारा रातों- रात हिट हो गया. इस नारे को तमाम भाजपा नेताओं ने दिल से स्वीकार किया..यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा शर्मा, और गिरिराज सिंह समेत तमाम छोटे- बड़े नेताओं ने इसे अपना लिया. झारखण्ड और महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव और १० राज्यों के उप- चुनावों के चुनाव प्रचार में भी इस नारे का भाजपा नेताओं ने खूब प्रचार किया. पार्टी के उत्साही कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव वाले दोनों राज्यों समेत उप- चुनाव वाले राज्यों में भी योगी की तस्वीरों के साथ ' बटेंगे तो कटेंगे' नारों वाले बड़े-बड़े पोस्टर और होर्डिंग्स लगा दिए.
साधू- संतों ने भी किया समर्थन
योगी का दिया गया ये नारा सत्ता पक्ष, पार्टी कार्यकर्त्ता, समर्थकों और वोटर्स के साथ ही साधू- संतों को भी बेहद पसंद आया है. आम तौर पर सरकार के कुछ फैसलों पैर साधू- संतों में आपस में नाइत्तेफाकी भी होती है लेकिन इस नारे पर सभी साधू संतों ने भी अपनी मुहर लगा दी है. संघ के सरबराह मोहन भगवत ने भी मथुरा में योगी के इस नारे पर अपनी सहमति जाता दी है..
नारे से भाजपा के सहयोगी दलों ने किया किनारा
योगी के इस नारे से भाजपा के साथ सरकार में सहयोगी जदयू और तेलगुदेशम पार्टी ने इससे खुद को अलग कर लिया है. महाराष्ट्र में अजीत पवार ने भी इस नारे से किनारा कर लिया है.. अजित पवार ने साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र ने कभी भी सांप्रदायिक विभाजन को स्वीकार नहीं किया. वहीँ भाजपा की ही नेता पंकज मुंडे ने इस नारे से खुद को दूर कर लिया था, लेकिन जब उनसे पार्टी लाइन की याद दिलाई गई तो वो अपने बयान से पलट गयी और उन्होंने कहा कि पार्टी की लाइन ही मेरी लाइन है. इससे साफ़ जाहिर होता है कि भाजपा के नेता योगी के इस बयान से इत्तेफाक न रखने के बाद भी आला कमान के डर से इस नारे का समर्थन कर रहे हैं. वहीँ जदयू ने साफ़ तौर पर कहा है कि वो भले ही सरकार में भाजपा के साथ है, लेकिन उसकी विचारधारा ऐसे नारों का सर्मथन नहीं करती है. ऐसे नारे समाज को जोड़ते नहीं बल्कि बांटते हैं, लोगों के बीच आपसी विभाजन पैदा करते हैं.
भाजपा के काउंटर में विपक्ष ने दिया एक हैं तो सेफ है का नारा
उधर, विपक्षी दल और INDIA गठबंधन के दल और उसके नेता लगातार योगी के इस नारे का विरोध कर रहे हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव योगी के काउंटर में 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा दिया है. अखिलेश ने कहा है कि इनकी नीव हैं नकारात्मक राजनीति पर पड़ी है.. भारत के इतिहास में इतना हिंसक और नकारात्कम नारा किसी ने नहीं दिया था. ये नारा हार के डर से हताशा में दिया गया है. ये दोनों राज्यों सहित उत्तर प्रदेश का उपचुनाव भी हार रहे हैं.
नारों के बहाने भजपा का एक तीर से दो शिकार
योगी के इस नारे को भाजपा इसलिए भुना रही है, क्यूंकि इससे उसका दो मकसद पूरा हो रहा है. एक तो 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा देकर वो कांग्रेस और INDIA गठबंधन के हिन्दुओं के कास्ट सर्वे के खिलाफ माहौल बना रही है, क्यूंकि इस सर्वे से भाजपा की राजनीति का जनाधार ही खिसक सकता है. इसलिएये सन्देश देना ज़रूरी है कि हिन्दू आपस में बटेंगे तो कटेंगे.. भाजपा इस नारे से महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का समर्थन कर रहे INDIA गठबंधन को कमजोर करना चाह रही है. इसके साथ ही बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद हुई हिंसा में हिन्दू अल्पसंख्यकों को कट्टरपंथी तत्वों द्वारा निशाना बनाये जाने की याद दिलाकर भारत में भी मुसलमानों से हिन्दुओं को खौफ दिलाया जा रहा है. बांग्लादेश के बहाने भारत के मुसलमानों का खौफ दिखाकर हिन्दू वोटर्स को भाजपा के समर्थन में एकजुट किया जा रहा है. भाजपा हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में अपनी सीटें खो दी है, जब की पार्टी ने जीत के लिए लव जिहाद और हिन्दू मुसलमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा था. इसलिए इस बार भी ये गारंटी नहीं है कि 'बटेंगे तो कटेंगे' नारा भी सफल होगा.. हो सकता है पार्टी को इससे हार का भी सामना करना पड़ सकता है.
बटेंगे तो कटेंगे के असली मतलब से कोसों दूर हैं भाजपा और उनके समर्थक
इस मामले वरिष्ट पत्रकार और एशियाई मामलों के जानकार हामिद किदवई कहते हैं, " भारत मिली-जुली संस्कृति वाल देश आज से नहीं हजारों साल से रहा है. यहीं कभी किसी को खतरा नहीं हुआ है, और जब कभी हुआ भी तो वो सियासत की वजह से हुआ है. इतिहास गवाह है कि हम जब-जब बंटे हैं तब-तब कटे हैं. हमारी घरेलु झगड़ों का विदेशियों ने फायदा उठाया है. अगर देश के अंदर हिन्दू- मुस्लिम समाज बंटेगा तो इसका सीधा फायदा हमारा पड़ोसी मुल्क चीन, और अमेरिका की गोद में बैठा पाकिस्तान और बांग्लादेश उठाएगा.. देश में घुसपैठ और आतंकवाद बढेगा. विदेशों में हमारी छवि खराब होगी.. इससे विदेशी निवेश और ग्लोबल व्यपार को नुक्सान होगा.. हमारी तरक्की की रफ़्तार और राह प्रभावित होगी.